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सुशासन तिहार में कम्पलेन -क्या जांच होगी?
कोरबा, छत्तीसगढ़।
कोरबा वन मंडल में राज्य कैम्पा मद से संचालित नरवा विकास योजना के तहत हुए करोड़ों रुपये के निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार और घटिया गुणवत्ता की गंभीर शिकायतें सामने आई हैं। सामाजिक कार्यकर्ताओं और ग्रामीणों की शिकायतों के आधार पर हुई पड़ताल में यह उजागर हुआ है कि कई निर्माण कार्य अधूरे हैं, कई सिर्फ कागजों पर ही दिखाए गए हैं, और जहां कार्य हुए हैं, वहां निर्माण मानकों की खुली धज्जियाँ उड़ाई गई हैं।
जांच में सामने आए घोटाले के तीन बड़े स्थान-साथ मे अन्य का पड़ताल जारी
1. जीरापानी नाला (कक्ष क्रमांक OA 1224, 1225, P 922–927)
- स्वीकृत राशि: ₹1.64 करोड़
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स्वीकृति पत्र: CEO CAMPA रायपुर, क्रमांक 109, दिनांक 25.11.2022
- जमीनी हकीकत:
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ब्रश वुड चेक डैम, लूज बोल्डर चेक डैम और कंटूर ट्रेंच जैसे कार्य अधूरे या अनुपस्थित पाए गए।
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तालाब की खुदाई मैन्युअल रूप से होनी थी, लेकिन जेसीबी मशीन से कराई गई।
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निर्माण में जंगल की रेत, कमजोर गिट्टी और लोकल बोल्डर का इस्तेमाल – जो निर्धारित मानकों के विपरीत है।
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स्टॉप डैम की लंबाई, चौड़ाई और गहराई स्वीकृत मानकों से कम है।
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2. बरदरहा नाला (कक्ष क्रमांक P 1153)
- स्वीकृत राशि: ₹16.68 लाख
- स्वीकृति पत्र: क्रमांक 94A, दिनांक 08.06.2021
- गंभीर लापरवाही:
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तालाब गहरीकरण का कार्य मशीन से कराया गया, जबकि यह मैन्युअल होना था।
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निर्धारित गहराई और चौड़ाई का पालन नहीं किया गया।
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कई जल संरचनाएं मौके पर नहीं मिलीं, यानी काम सिर्फ कागजों पर हुआ।
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3. वीजाखर्रा नाला, हाथीमुड़ा गांव (कक्ष क्रमांक P 1068)
- स्वीकृत राशि: ₹54.11 लाख
- स्वीकृति पत्र: क्रमांक 94A, दिनांक 08.06.2021
- मुख्य शिकायतें:
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₹50 लाख की लागत वाला स्टॉप डैम तय मानकों से घटिया बना है।
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21 लूज बोल्डर चेक डैम अधूरे या गायब।
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गेबियन संरचना पहले ही क्षतिग्रस्त हो चुकी है – सीमेंट और सामग्री की गुणवत्ता बेहद खराब।
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गुणवत्ता का हाल — एक साल में ही जर्जर
सभी निर्माण कार्य मार्च 2024 तक पूरे होने थे, लेकिन अधिकांश संरचनाएं एक वर्ष के भीतर ही टूट-फूट का शिकार हो चुकी हैं। ग्रामीणों ने बताया कि जगह-जगह से डैम की पपड़ी उखड़ गई है। इससे स्पष्ट होता है कि निर्माण सामग्री की गुणवत्ता बेहद घटिया थी।
आरोप – “सिर्फ कागजों में काम हुआ है”
स्थानीय लोगों का आरोप है कि कई निर्माण कार्य केवल कागजों में दिखाए गए हैं, जबकि जमीनी हकीकत में वे कहीं नजर नहीं आते। यह सीधा इशारा करता है कि योजनाओं के नाम पर सरकारी राशि का दुरुपयोग किया गया।
मांगें और संभावित कार्रवाई
सामाजिक कार्यकर्ताओं और ग्रामीणों ने की हैं ये मांगें:
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इन परियोजनाओं की उच्च स्तरीय जांच कराई जाए।
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भ्रष्ट अधिकारियों और ठेकेदारों पर आपराधिक कार्रवाई हो।
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अधूरे और घटिया कार्यों की राशि वसूली की जाए।
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भविष्य में सभी योजनाओं का नियमित सामाजिक ऑडिट कराया जाए।
क्या कहता है विभाग?
अब तक वन विभाग की ओर से कोई स्पष्ट बयान नहीं आया है। हालांकि, सूत्रों के अनुसार मामला राज्य CAMPA मुख्यालय रायपुर तक पहुंच चुका है और जांच की तैयारी चल रही है।
निष्कर्ष
सरकारी योजनाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही की बात करने वाली सरकार के लिए यह मामला एक गंभीर चेतावनी है। यदि इन मामलों की समय रहते निष्पक्ष जांच नहीं होती, तो इससे ना केवल पर्यावरणीय योजनाओं की विश्वसनीयता पर सवाल उठेगा, बल्कि सरकारी धन की बर्बादी का यह सिलसिला और आगे बढ़ सकता है।
