उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए अभी करीब 2 साल का वक्त है….. इससे पहले सभी राजनीतिक दल अपनी तैयारियां में जुट गए हैं….. इस बीच बीजेपी के लिए नई मुसीबत खड़ी हो गई है…. बीजेपी के सहयोगी दलों ने बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है…. और विधानसभा चुनाव 2027 को लेकर बड़ी- बड़ी बयानबाजी कर रहे है…. जिससे बीजेपी की मुसीबत बढ़ती जा रही है…. बीजेपी जबसे सत्ता में आई है…. तभी से सवालों के घेरे में है…. विपक्ष बीजेपी की नीतियों और कामों को लेकर शुरू से ही योगी बाबा पर हमलावर है….. और उनकी नाकानी को गिना रहा है…..
आपको बता दें कि भारतीय जनता पार्टी 2017 और 2022 के विधानसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई…… वहीं अब 2027 के लिए अपनी तैयारियों को और मजबूत करने में जुटी है…… पार्टी ने अपने विधायकों के पिछले पांच साल के कार्यकाल का ऑडिट शुरू किया है……. ताकि उनके प्रदर्शन के आधार पर टिकट वितरण की रणनीति तैयार की जा सके……. यह कदम बीजेपी की उस रणनीति का हिस्सा है……. जिसके तहत वह अपने जनाधार को और मजबूत करना चाहती है……. लेकिन सवाल यह है कि क्या यह ऑडिट बीजेपी को 2024 के लोकसभा चुनावों में मिली हार से सबक लेने में मदद करेगा……. 2024 में बीजेपी को उत्तर प्रदेश में केवल 33 सीटें मिलीं……. जो 2019 के 62 और 2014 के 71 सीटों के मुकाबले एक बड़ा झटका था……
वहीं इस हार के पीछे कई कारण थे……. जिनमें से एक था सहयोगी दलों और सामाजिक समीकरणों का सही प्रबंधन न कर पाना…… निषाद समाज का उत्तर प्रदेश में लगभग 200 विधानसभा सीटों पर प्रभाव है…… जिसने बीजेपी के प्रति अपनी नाराजगी को 2024 के लोकसभा चुनाव में स्पष्ट रूप से दिखाया….. संजय निषाद ने भी इस बात को स्वीकार किया कि मछुआ समाज को अनुसूचित जाति आरक्षण का लाभ न मिलना….. उनकी हार का एक बड़ा कारण था… संजय निषाद, निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं…… जिन्होंने पिछले साल से सहारनपुर से सोनभद्र तक संविधान अधिकार यात्रा शुरू की है…… बता दें कि इस यात्रा का उद्देश्य निषाद, कश्यप, माला, और अन्य मछुआ समुदायों को उनके संवैधानिक अधिकारों के प्रति जागरूक करना….. और उन्हें एकजुट करना है…… संजय निषाद का दावा है कि उत्तर प्रदेश की 200 विधानसभा सीटों पर निषाद समाज का प्रभाव है….. जहां इस समुदाय के 50,000 से अधिक वोट हैं…….
इस यात्रा के दौरान संजय निषाद ने न केवल निषाद समाज को संगठित करने की कोशिश की……. बल्कि बीजेपी को भी कई बार कठघरे में खड़ा किया…… और उन्होंने बीजेपी को सलाह दी कि वह ‘विभीषणों’ यानी उन नेताओं से सावधान रहे…… जो दूसरे दलों से आकर पार्टी में शामिल हुए हैं……. उनका इशारा उन नेताओं की ओर था…… जो बीजेपी में शामिल होने के बाद भी अपनी पुरानी विचारधारा या निष्ठा को पूरी तरह नहीं छोड़ पाए…… बता दें कि संजय निषाद का यह बयान बीजेपी के लिए एक चेतावनी है…… क्योंकि 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी के भीतर आंतरिक असंतोष…… और बाहरी नेताओं के एकता की कमी ने नुकसान पहुंचाया…..
वहीं संजय निषाद का सबसे चौंकाने वाला बयान और बीजेपी को हैरान करने वाला है कि उनकी पार्टी 2027 के विधानसभा चुनाव में 100 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है…… और उन्होंने यह भी कहा कि बीजेपी को उन सीटों पर निषाद पार्टी को मौका देना चाहिए……. जहां वह कभी जीत नहीं पाई…….. यह मांग न केवल बीजेपी के लिए एक चुनौती है…… बल्कि गठबंधन की एकता पर भी सवाल उठाती है……. निषाद पार्टी एनडीए का हिस्सा है……. और हाल के उपचुनावों में भी कटेहरी और मझवां सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने की मांग की थी….. लेकिन बीजेपी ने इन सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे…….
इस मांग के पीछे संजय निषाद की रणनीति साफ है…… वह निषाद समाज को यह संदेश देना चाहते हैं कि उनकी पार्टी उनके हितों की सबसे बड़ी पैरोकार है…… साथ ही वह बीजेपी पर दबाव बनाना चाहते हैं…… ताकि उनकी पार्टी को गठबंधन में अधिक महत्व और सीटें मिलें….. लेकिन यह रणनीति बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है……. यदि बीजेपी निषाद पार्टी की मांगों को स्वीकार करती है…… तो उसे अपनी परंपरागत सीटों पर समझौता करना पड़ सकता है…… वहीं यदि वह इन मांगों को नजरअंदाज करती है……. तो निषाद समाज का समर्थन खोने का खतरा है……. जो पहले ही 2024 में बीजेपी से नाराज दिखा……
दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी और कांग्रेस भी 2027 के लिए अपनी रणनीति को तेज कर रहे हैं…… सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने दावा किया है कि 2027 में उनकी पार्टी के नेतृत्व में पीडीए की सरकार बनेगी……. सपा ने 2024 के उपचुनावों में भी मजबूत प्रदर्शन किया….. और कई सीटों पर बीजेपी को कड़ी टक्कर दी….. कांग्रेस भी इस बार उत्तर प्रदेश में अपनी स्थिति को मजबूत करने की कोशिश में है…… प्रियंका गांधी ने बुलंदशहर से शुरू की गई वोट यात्रा के जरिए निषाद समाज सहित अन्य पिछड़े….. और दलित समुदायों को लुभाने की कोशिश की है…… कांग्रेस ने 2024 के उपचुनाव में 5 सीटों पर दावेदारी की थी….. और 2027 में 200 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने की योजना बना रही है……. यह सपा-कांग्रेस गठबंधन बीजेपी के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है……. खासकर तब जब निषाद समाज जैसे महत्वपूर्ण वोट बैंक का समर्थन बीजेपी से छिटक रहा हो……
वहीं बहुजन समाज पार्टी में आकाश आनंद की वापसी ने भी सियासी समीकरणों को बदल दिया है…… बसपा 2022 के विधानसभा चुनाव में केवल एक सीट जीत पाई थी……. अब आकाश आनंद के नेतृत्व में नई ऊर्जा के साथ मैदान में उतर रही है…… आकाश आनंद की रैलियां और बसपा की नई रणनीति दलित वोटों को एकजुट करने की कोशिश का हिस्सा हैं…… यदि बसपा निषाद समाज और अन्य पिछड़े वर्गों को अपने साथ जोड़ने में सफल होती है….. तो यह बीजेपी और सपा दोनों के लिए नुकसानदायक हो सकता है……
आपको बता दें कि बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने सहयोगी दलों को संतुष्ट रखने की है…… संजय निषाद का बीजेपी को ‘विभीषणों’ से सावधान रहने का बयान पार्टी के भीतर आंतरिक असंतोष को उजागर करता है…… 2024 के लोकसभा चुनाव में संतकबीरनगर सीट पर निषाद पार्टी के प्रवीण निषाद की हार ने भी बीजेपी….. और निषाद पार्टी के बीच तनाव को बढ़ाया……. संजय निषाद ने इस हार के लिए बीजेपी के कुछ नेताओं को जिम्मेदार ठहराया….. लेकिन कोई कार्रवाई न होने से उनकी नाराजगी और बढ़ गई……
इसके अलावा बीजेपी को सामाजिक समीकरणों को साधने की भी चुनौती है…… निषाद समाज जो पहले सपा और बसपा का गढ़ रहा…… अब बीजेपी के साथ है….. लेकिन यह समर्थन स्थायी नहीं है…… यदि निषाद समाज को एससी आरक्षण का लाभ नहीं मिलता…… तो वह फिर से सपा या अन्य विपक्षी दलों की ओर जा सकता है…… संजय निषाद की संविधान यात्रा इस बात का संकेत है कि वह निषाद समाज को एकजुट रखने….. और बीजेपी पर दबाव बनाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं……
