नई दिल्ली: दिल्ली की एक अदालत ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता और दिल्ली के कैबिनेट मंत्री कपिल मिश्रा की जांच के तरीके को लेकर दिल्ली पुलिस को फटकार लगाई.
द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, यह मामला 2020 के विधानसभा चुनाव से पहले एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर कथित रूप से सांप्रदायिक रूप से ध्रुवीकरण करने वाले संदेश पोस्ट करने के लिए मिश्रा के खिलाफ दर्ज एफआईआर से संबंधित है.
राउज एवेन्यू कोर्ट के अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट वैभव चौरसिया ने कहा कि अदालत ने 20 मार्च, 2024 से लेकर पिछले एक साल तक मिश्रा के एक्स हैंडल से सबूत इकट्ठा करने के लिए दबाव बनाने की कोशिश की, लेकिन उसके प्रयास व्यर्थ रहे.
न्यायिक मजिस्ट्रेट ने कहा कि उन्होंने पुलिस से 8 अप्रैल 2025 तक लगभग 10 बार प्रासंगिक विवरण एकत्र करने को कहा था.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, यह मामला मिश्रा के ट्वीट पर है, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने शाहीन बाग में एक ‘मिनी पाकिस्तान’ बनाया है, जहां नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध में शांतिपूर्ण धरना दिया जा रहा है, और तत्कालीन विधानसभा चुनाव ‘भारत और पाकिस्तान’ के बीच मुकाबला होगा.
दिल्ली पुलिस की आलोचना करते हुए न्यायाधीश ने कहा कि मामले की जानकारी देने के लिए पुलिस की ओर से कोई भी मौजूद नहीं है.
हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, अदालत ने कहा कि, ‘अदालती निर्देशों के संबंध में जांच एजेंसी के लापरवाह रवैये पर कोई भी सख्त टिप्पणी करने से पहले यह अदालत मामले की स्थिति और जांच एजेंसी की ओर से अपर्याप्त स्पष्टीकरण न दिए जाने के संबंध में पुलिस आयुक्त के संज्ञान में लाने के लिए बाध्य है.’
लाइव लॉ के अनुसार, मार्च में दिल्ली हाईकोर्ट ने मामले में मिश्रा के खिलाफ निचली अदालत की कार्यवाही पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था, मिश्रा की पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया था और कहा था कि ‘पाकिस्तान’ शब्द को उन्होंने अपने कथित बयानों में बहुत ही कुशलता से इस्तेमाल किया था, ताकि नफरत फैलाई जा सके, चुनाव अभियान में होने वाले सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के प्रति बेपरवाह होकर, केवल वोट हासिल करने के लिए.
अदालत की ताजा टिप्पणियां उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों में उनकी भूमिका की जांच के लिए मिश्रा के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए जाने के दो महीने बाद आई हैं. दिल्ली पुलिस ने एफआईआर की मांग वाली याचिका का विरोध किया था.
उसने कहा था कि सांप्रदायिक हिंसा में मिश्रा की कथित भूमिका की पहले ही जांच की जा चुकी है और इसमें कुछ भी आपत्तिजनक नहीं पाया गया.
