- जब भी अपनों ने उठाये सवाल राहुल और ज्यादा हुए मजबूत
- सलमान खुर्शीद और शशि थरूर का विश्वासघात या फिर राजनीतिक मजबूरी
- जो भी गया वह डूब गया चाहे गुलाम नबी आजाद हो या फिर दूसरे नेता
- खुद को पीएम मोदी के उत्तर के तौर पर फिक्स कर चुके हैं राहुल गांधी
- बीजेपी की फ्रेंडली राजनीति
नई दिल्ली। राहुल गांधी को ताजा चुनौती एक बार फिर उनके अपने दे रहे हैं। दिग्गज शशि थरूर और अलग-थलग पड़े सलमान खुर्शीद को आगे कर बीजेपी ने एक तगड़ा राजनीतिक हमला कांग्रेस पर किया है। हालांकि राहुल गांधी इस तरह की चीजों को लंबे समय से फेस कर रहे हैं और पहले से ज्यादा मजबूत होकर निकले हैं। शशि थरूर और सलमान खुर्शीद जैसे नेताओं की पीएम नरेंद्र मोदी के प्रति नरमी और पार्टी लाइन से हटकर दिये जा रहे बयानों को एक बड़ा राजनीतिक संदेश के तौर पर देखा जा रहा है।
क्योंकि हाल ही में राहुल गांधी ने ब्रांड मोदी को डैमेज किया है, राहुल के सवाल सरकार को असहज कर रहे हैं और राहुल गांधी ने खुद को मोदी नहीं तो कौन के उत्तर के तौर पर फिक्स कर दिया है। ऐसे में एक बार फिर राहुल को खुद उनके वरिष्ठ नेताओं के वक्तवयों के जरिये पीछा करने की मुहिम बीजेपी द्वारा शुरू कि गयी है। केरल के तिरुवनंतपुरम से सांसद शशि थरूर पिछले कुछ महीनों से उस वर्ग में गिने जा रहे हैं जिसे कांग्रेस का तटस्थ बुद्धिजीवी गुट कहा जा सकता है। वे न तो गांधी परिवार के अंध समर्थक रहे हैं और न ही उनके विरोधी लेकिन लोकसभा चुनाव के दौरान उनकी चुप्पी और कभी-कभी मोदी सरकार की प्रशंसा ने कांग्रेस खेमे में चिंता जरूर बढ़ा दी थी। अब विदेशों में उनके बयान कांग्रेस के लिए मुसीबत खड़ी कर रहे हैं। थरूर द्वारा मोदी की विदेश नीति को समझदारी भरी कहना या फिर अयोध्या राम मंदिर के विषय में गैर-विवादित टिप्पणी देना इन सबने उन्हें उन चेहरों में शुमार कर दिया है जो बीजेपी फ्रेंडलीनजर आने लगे हैं।
राहुल गांधी के लिए व्यक्तिगत चुनौती
निश्चित ही ये घटनाएं राहुल गांधी के नेतृत्व के लिए गंभीर संकेत हैं। ये सवाल उठ रहे हैं कि क्या वे पार्टी को न केवल चुनावी बल्कि वैचारिक रूप से भी एकजुट कर पा रहे हैं? थरूर और खुर्शीद जैसे नेता अगर सत्तापक्ष से सामंजस्य बना रहे हैं तो क्या कांग्रेस की विचारधारा उतनी लचीली हो गई है कि कोई भी नेता दो नावों की सवारी कर सके? यह चीजें आज की सबसे पेचीदा राजनीतिक मॉडल यह बन गयी हैं कि कांग्रेस की सदस्यता रखो लेकिन मोदी की प्रशंसा करो, ताकि विकल्प खुले रहें। यह रणनीति उन नेताओं के लिए फायदेमंद हो सकती है जो सत्ता से संवाद तोडऩा नहीं चाहते लेकिन पूर्ण रूप से भाजपा में भी नहीं जाना चाहते।
सलमान खुर्शीद का विचलन या नई राजनीतिक भाषा?
सलमान खुर्शीद जिन्हें कभी कांग्रेस का धर्मनिरपेक्ष चेहरा कहा जाता था हाल ही में मोदी सरकार की योजनाओं और पीएम मोदी की राष्ट्रीय नेतृत्व क्षमता की तारीफ़ करते देखे गए। ख़ासकर जब उन्होंने पीएम मोदी की वैश्विक स्वीकार्यता और भारत की साख बढ़ाने की बात की तो ये संकेत देना शुरू हो गया कि कांग्रेस के भीतर अभी कुछ लोग और बाकी है जो गांधी परिवार से दूरी और मोदी के प्रति नरमी को एक रणनीतिक निवेश मान रहे हैं।
यूपीए सरकार ने नौ सर्जिकल स्ट्राइक कीं पर राजनीतिकरण नहीं किया : सुरजेवाला
कांग्रेस सांसद शशि थरूर द्वारा मोदी सरकार की सर्जिकल स्ट्राइक की प्रशंसा करने वाली टिप्पणियों को लेकर उठे विवाद के बीच, कांग्रेस ने कहा कि राजनीतिक नेतृत्व ने हमेशा सशस्त्र बलों को आतंकी शिविरों या आतंकवादियों को बेअसर करने की स्वतंत्रता दी है। साथ ही कहा कि इन शक्तियों का राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। कांग्रेस सांसद रणदीप सुरजेवाला ने इस बात पर जोर दिया कि कांग्रेस के कार्यकाल के दौरान कम से कम नौ ऐसे सर्जिकल स्ट्राइक का दस्तावेजीकरण किया गया है। हालांकि, कांग्रेस का मानना है कि सत्ताधारी पार्टी या किसी और के लिए राजनीतिक लाभ के साधन के रूप में सशस्त्र बलों का उपयोग करना अपवित्र है। हाल ही में पनामा में प्रवासी समुदाय के एक कार्यक्रम में थरूर ने विवाद को हवा दी। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि यह भारत के सैन्य रुख में बदलाव का प्रतीक है।
देश में राजनीतिक मतभेद बढ़ रहे हैं : खुर्शीद
पूर्व विदेश मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने देश के भीतर बढ़ते राजनीतिक विभाजन पर चिंता व्यक्त की, खासकर ऐसे समय में जब आतंकवाद के खिलाफ भारत के रुख को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उजागर किया जा रहा है। जनता दल (यूनाइटेड) के सांसद संजय कुमार झा के नेतृत्व में सर्वदलीय संसदीय प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा खुर्शीद ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कहा कि देश में राजनीतिक मतभेद बढ़ रहे हैं। जब आतंकवाद के खिलाफ़ एक मिशन पर, भारत का संदेश दुनिया तक पहुँचाने के लिए, यह दुखद है कि घर में लोग राजनीतिक निष्ठाओं की गणना कर रहे हैं। क्या देशभक्त होना इतना मुश्किल है? खुर्शीद ने राजनीतिक मतभेदों के बावजूद राष्टरीय मामलों में एकता की आवश्यकता की ओर इशारा करते हुए पोस्ट किया। कांग्रेस नेता की यह टिप्पणी मोदी सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटाने के फैसले का समर्थन करने के बाद आई है। खुर्शीद वर्तमान में आतंकवाद में पाकिस्तान की भूमिका को उजागर करने के उद्देश्य से एक प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा हैं, जो हाल ही में पहलगाम आतंकी हमले और ऑपरेशन सिंदूर के बाद आया है। हालांकि खुर्शीद ने अपने पोस्ट में सीधे तौर पर किसी व्यक्ति का नाम नहीं लिया, लेकिन उनकी टिप्पणी प्रतिनिधिमंडल की संरचना को लेकर उनकी अपनी पार्टी के भीतर आलोचना के जवाब में लगती है। कांग्रेस ने पहले कुछ पार्टी सदस्यों के साथ सर्वदलीय कार्य से बाहर रखे जाने पर असंतोष व्यक्त किया था।
राहुल ने विदेश नीति पर उठाये थे सवाल
आखिर बीजेपी ने थरूर को ही क्यों चुना? दरअस्ल राहुल के विदेश नीति पर उठाये गये सवाल सीधे बीजेपी को चुभ गये। ग्लोबली जो सवाल राहुल ने पूछे थे उन सवालों पर बीजेपी असहज हो गयी। राजनीति में सवाल का जवाब देने के बाजाए अक्सर कुछ नये सवाल खड़े कर दिये जाते हैं। बीजेपी भी यही कर रही है। जब विदेश नीति पर बीजेपी सकंट में दिखी तो किसी ऐसे व्यक्ति जो खुद कांग्रेस से आता हो और विदेश नीति का चाणक्य कहा जाता हो। वह अगर सरकार की विदेश नीति की तारीफ न भी करे सिर्फ डिफेंड कर दे तो भी उसकी बात अलग होती है यही हुआ। थरूर के एक बयान ने विदेश नीति पर उठ रहे धुएं को हटा दिया।
