जयपुर: पिछले कुछ समय से राजस्थान के बाड़मेर और जैसलमेर ज़िलों के शांत निवासी सहसा आक्रोशित हो उठे हैं. ओरण और चारागाहों के लिए आरक्षित मानी जाती सार्वजनिक ज़मीन सौर ऊर्जा निर्मित करने वाली निजी कंपनियों को दी जा रही है. इस भूमि पर इस इलाके का जनजीवन और पशुधन टिका हुआ था. लेकिन पिछले वर्षों में राजस्थान सरकार ने ढेर सारी ज़मीन इन कंपनियों को दे दी है, जिसकी वजह से पशुओं के चारे की कमी हो गयी है और लोगों को तमाम दिक्कतें आ रही हैं.
जनता को आ रही इन दिक्कतों के साथ कुछ गंभीर प्रशासनिक और नीतिगत समस्याएं भी हैं.
बेहिसाब ज़मीन आवंटन
पहली समस्या है, ज़मीन का आबंटन. विधानसभा में प्रस्तुत दस्तावेजों के अनुसार, पिछले वर्षों के दौरान पूरे राज्य में 1,57,343 बीघा भूमि विभिन्न कंपनियों को सौर ऊर्जा संयंत्रों के लिए दी जा चुकी है.
2018 से 2023 के बीच जैसलमेर में 70,500 बीघा ज़मीन कंपनियों को दी गई, जिनमें अकेले अडानी रिन्युएबल एनर्जी पार्क लिमिटेड को 42,500 बीघा भूमि आवंटित हुई.
इसके अतिरिक्त 8 मार्च, 2024 को कैबिनेट की बैठक में बीकानेर में करीब 8,500 बीघा विभिन्न सोलर परियोजनाओं के लिए आवंटन की घोषणा हुई. 16 जून, 2024 को बीकानेर में 2450 मेगावाट के तीन और फलोदी ज़िले में 500 मेगावाट के सोलर प्लांट्स के लिये करीब 56 हजार बीघा भूमि का आवंटन हुआ. अडानी के अलावा यह ज़मीनें लार्सन एंड टूब्रो, एस्सेल सौर्य ऊर्जा, एसबीई रिन्युएबल एनर्जी, वंडर सीमेंट जैसी कंपनियों को दी गई हैं.
राजस्थान सरकार ने 2015 से 2024 तक अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में 13.12 लाख करोड़ रुपये के समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए हैं.
विधानसभा में प्रश्नों के जवाब के दौरान प्रस्तुत सरकारी दस्तावेजों और मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार भाजपा सरकार ने अपने करीब सवा साल के कार्यकाल में 19,931 मेगावाट के अक्षय ऊर्जा के प्रोजेक्ट के लिए कंपनियों को 32 हजार हेक्टेयर जमीन आवंटित की. यह पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार में स्वीकृत प्रोजेक्ट से तीन गुना ज्यादा है.
सूत्रों के अनुसार अभी पाइपलाइन में चल रहे 40 प्रोजेक्ट्स के लिए सवा दो लाख हेक्टेयर भूमि की और ज़रूरत है. मौजूदा सरकार में कंपनियों को स्वीकृत प्रोजेक्ट व आवंटित जमीन स्वीकृति की स्थिति इस टेबिल से समझी जा सकती है:
अनुसूचित जातियों/जनजातियों की ज़मीन लेने की कवायद
ज़मीन हासिल करने की इस होड़ ने हाशिये के समुदायों पर गहरा संकट पैदा कर दिया है. राजस्थान का काश्तकारी अधिनियम, 1955 राज्य सरकार या किसी नामित प्राधिकारी की स्वीकृति के बिना गैर-एससी/एसटी व्यक्तियों या संस्थाओं को एससी/एसटी कृषि भूमि की बिक्री, उपहार या हस्तांतरण पर रोक लगाता है. लेकिन अब इस कानून को बदलने की प्रक्रिया चल रही है.
30 नवंबर, 2024 की कैबिनेट की मीटिंग में घोषणा हुई कि सौर ऊर्जा कंपनियां अगर एससी एसटी समुदाय की भूमि लेना चाहें तो वर्तमान क़ानूनी बाधाएं दूर की जा सकती हैं. पिछले दिसंबर राजस्थान के कानून मंत्री जोगाराम पटेल ने बताया कि काश्तकारी अधिनियम की धारा 42 बी के प्रावधानों के कारण अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसान अपनी कृषि भूमि को अक्षय ऊर्जा परियोजना के विकासकर्ता को लीज पर नहीं दे सकते हैं. इसे देखते हुए मंत्रिमंडल ने राजस्थान भू-राजस्व (ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि भूमि का अकृषि प्रयोजनार्थ संपरिवर्तन) नियम, 2007 में संशोधन को मंजूरी दी है.

उन्होंने यह भी बताया कि इस संशोधन के बाद एससी-एसटी वर्ग के काश्तकारों की कृषि भूमि का सोलर फार्म, सोलर प्लांट, सोलर पावर प्लांट, विंड फार्म, विंड पावर प्लांट के लिए परिवर्तन हो सकता है.
दलित लेखक और कार्यकर्ता भंवर मेघवंशी का कहना है, ‘यह बदलाव निजी कंपनियों के हित में हो रहा है, लेकिन इसे दलित किसानों के हित में बताया जा रहा है. अगर दलित किसानों के हाथों से उनकी ज़मीन निकल गईं तो फिर उनके पास न भूमि रहेगी और न पैसा.’
क्या यह आवंटन वैध है?
बाड़मेर-जैसलमेर में चारागाहों और ओरण की सार्वजनिक भूमियां राजस्व रिकॉर्ड में समुचित तरह से दर्ज नहीं थीं. इन पर कभी किसी ने व्यक्तिगत अधिकार नहीं जताया. इस भूमि पर स्थानीय लोगों के पशु चरते थे और उनके चारे की व्यवस्था होती थी. यह इलाके स्थानीय समुदायों के लिए जीवनरेखा बने हुए हैं.
चूंकि स्थानीय समुदाय के पास ऐसी ज़मीनों के सरकारी दस्तावेज़ नहीं हैं, इसलिए पटवारी, नायब तहसीलदार और एसडीएम कानूनी पेचों का फायदा उठाकर, सरकारी रिकॉर्ड से इनकी अनुपस्थिति बताकर इन ज़मीनों को कंपनियों को दिया जा रहा है. इसके खिलाफ़ जगह-जगह आंदोलन शुरू हो गए हैं.
बाड़मेर के बइया में कई महीनों से किसान आंदोलित हैं. इसी तरह नेचसी, चीता, जेराब, बिंजोता आदि गांवों में भी लोग आंदोलित हैं. ऐसे ही एक प्रमुख आंदोलनकारी भूपसिंह बताते हैं, ‘नेपसी गांव में बहुत बड़ा तालाब है और वहां सबसे अधिक विदेशी पक्षी आते हैं और उनकी हर साल गणना होती है, लेकिन इस क्षेत्र को भी सौर कंपनियों को दिया जा रहा है.’
बीकानेर में छतरगढ़ इलाके के बहुत से सरकारी कर्मचारी पिछले साल जांच में इसके दोषी पाए गए कि उन्होंने सार्वजनिक ज़मीन को कंपनियों को देने में मदद की.
बाड़मेर की शिव तहसील के वकील ब्रजमोहन कुमावत बताते हैं, ‘यहां हजारों किसान परेशान हैं. पटवारी के पास जाओ तो कहता है कि गिरदावर से मिलो, गिरदावर नायब तहसीलदार का नाम लेता है, नायब कहता है तहसीलदार से मिलो, तहसीलदार एसडीओ पर डालता है. एसडीओ कहते हैं कि यह मामला तो पुलिस का है. वहां जाओ. पुलिस अदालत में भेज देती है. अदालत कहती है कि रेवेन्यू के मामले रेवेन्यू वाले लोग तय करेंगे.’
सोनड़ी गांव के सवाईराम कुम्हार की पत्नी तुलसीदेवी का खेत घूंघा के लालसो की ढाणी में खसरा नंबर आठ है. उनकी 18 बीघा जमीन के अंदर से सर्विस लाइन डाल दी है, खंभे गाड़ दिए हैं और वे परेशान हैं.
एडवोकेट कुमावत बताते हैं, ‘हमारे यहां पैमाइश का एक स्थानीय प्रचलित तरीका है,लेकिन कंपनियों के लोग पैमाइश का प्राइवेट जीपीएस सिस्टम लेकर आते हैं और बिना पटवारी, नायब, तसहीलदार या एसडीओ के खेत में कहीं से भी तारबंदी कर डालते हैं.’
इस इलाके में दशकों से पर्यावरण संरक्षण जुड़े कार्यकर्ता भुवनेश जैन के खेत में कुछ दिन पहले बिना किसी सूचना के हाइटेंशन लाइन के तार वाले खंभे गाड़ दिए गए.
एडवोकेट कुमावत का कहना है कि ऐसे ढेरों मुकदमे अदालतों और थानों में चक्कर खा रहे हैं.

कंपनियां बनाम भूमिहीन
एक ओर सरकार निजी कंपनियों को ज़मीन देने के लिये तत्पर है, भूमिहीन अभी भी अपने लिये टुकड़ा भर ज़मीन की प्रतीक्षा कर रहे हैं.
पिछली विधानसभा में जैसलमेर के तत्कालीन विधायक रूपाराम के एक सवाल के जवाब में तत्कालीन उपनिवेशन मंत्री शाले मोहम्मद का जवाब था कि 99,763 भूमिहीनों ने जमीनें चाही थीं, लेकिन उनमें से 96,182 अर्जियां आज भी फाइलों में बंद हैं.
रूपाराम का कहना था, ‘इन भूमिहीनों की पात्रता तक अफसरों और सरकारों ने पिछले बीस साल में तय नहीं की, जबकि कंपनियों को 20 दिन से भी कम समय में ज़मीनें मिल जाती हैं.’
रेगिस्तान अपनी ही बिजली से वंचित
एक अन्य समस्या यह है कि इन सौर परियोजनाओं की बहुत कम बिजली राजस्थान को मिल पा रही है. इन कंपनियों के साथ राज्य के अक्षय ऊर्जा निगम का बिजली की आपूर्ति के लिये कोई अनुबंध नहीं हुआ है. अभी तक जितने प्रोजेक्ट लगे हैं, उनमें से 74 प्रतिशत सस्ती बिजली दूसरे राज्यों में सप्लाई हो रही है.
भादरेस के किसान रवींद्रसिंह चारण बताते हैं, ‘हमारे चारागाहों पर बने पावर प्लांट हमें एक यूनिट बिजली भी नहीं देते.’ किसानों की मांग है कि उनकी ज़मीन पर बने संयत्रों से पैदा हो रही बिजली उन्हें दी जाए.
ऊर्जा मंत्री हीरालाल नागर द वायर हिंदी को बताते हैं, ‘यह कंपनियों के पावर पर्चेज एग्रीमेंट पर आधारित है. अगर किसी कंपनी ने किसी अन्य राज्य को बिजली देने का एग्रीमेंट किया हुआ है तो वह बिजली उसे ही जाती है. यह ऊर्जा नीति के अनुसार होता है.’
राजस्थान में सोलर रेडिएशन 22 प्रतिशत है, जो देश के अन्य राज्यों की तुलना में काफी बड़ा आंकड़ा है. लेकिन इसके बावजूद इस राज्य को अपनी ही बिजली नहीं मिल पा रही.
10 मार्च, 2025 को विधानसभा में प्रस्तुत दस्तावेज के अनुसार प्रदेश में कुल बिजली उत्पादन 14,108 मेगावाट होता है. इसमें सौर ऊर्जा 997 मेगवाट और पवन अर्जा 1148 मेगावाट है. कुल बिजली उत्पादन में से 5,138 मेगावाट निजी या अन्य क्षेत्र का है. यानी सरकारी ऊर्जा उत्पादन 9508 मेगावाट है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार निजी क्षेत्र की बिजली प्रदेश को न के बराबर मिलती है.
भ्रष्टाचार का आगमन: सामाजिक विघटन का आरंभ
राजस्थान में अब तक जैसलमेर, बाड़मेर में नियुक्ति का मतलब था काला पानी, लेकिन अब इन जिलों में सोलर और पवन ऊर्जा की कंपनियों के आने के बाद अचानक से सरकारी कर्मचारी यहां नियुक्ति चाह रहे हैं. बाड़मेर में ज़मीन के पंजीकरण से संबंधित तमाम क़ानूनी सलाहकारों और दलालों की फौज खड़ी हो गई है.
एसीबी के पुलिस महानिदेशक डॉ. रवि प्रकाश मेहरड़ा द वायर को बताते हैं, ‘राजस्थान एसीबी ने बालोतरा के दूधवा के एक सहायक प्रशासनिक अधिकारी आशीष रंजन विश्वास को होली के दिन स्टांप वेंडरों, डीडराइटरों और पंजीयन दलालों से एक प्रतिशत राशि वसूल करते गिरफ्तार किया. उससे दो लाख 29 हजार रुपये भी मिले.’
राजस्थान एसीबी की अपनी इंटेलिजेंस ब्रांच भी है और उसमें प्रदेश के सभी जिलों से भ्रष्ट अधिकारियों के बारे में जानकारियां आती रहती हैं. इस ब्रांच के सूत्रों के अनुसार किसी समय प्रदेश का गंगानगर जिला टॉप पर था; लेकिन अब उसकी जगह बाड़मेर ने ले ली है.
राज्य सरकार में प्रशासनिक अधिकारियों के तबादलों की जानकारी रखने वाले कई लोगों का कहना है कि अब गंगानगर के बजाय सबसे अधिक दिलचस्पी उस बाड़मेर में है, जो कभी कर्मचारियों अधिकारियों के लिए काला पानी था.
जमीन की बिक्री के दौरान जैसलमेर की भणियाणा तहसीलदार सुमित्रा चौधरी को 15 लाख रुपये लेते हुए रंगे हाथों 17 फरवरी 2025 को गिरफ्तार किया गया.
इससे पहले पांच फरवरी को बालोतरा जिले की सिणधरी तहसील के पटवारी किशनाराम को कृषि भूमि को कमर्शियल करवाने के लिए 30 हजार रुपये की रिश्वत लेते हुए पकड़ा गया. जैसलमेर में जोधपुर डिस्कॉम का एक इंजीनियर कबीराराम जैसलमेर के एक किसान से 30 हजार लेते हुए गिरफ्तार हुए थे. काला पानी समझे जाने वाले इलाके में अब घूसखोरी की इफ़रात मची है.
कंपनियों के आगमन से पश्चिमी राजस्थान की परंपराएं और रवायतें बदल रही हैं. इन इलाकों में सोने के जेवर बाहर रह जाते थे, लेकिन पानी के कुओं के ताले लगाए जाते थे. आज लोग छोटी-छोटी रिश्वत ले और दे रहे हैं और भ्रष्टाचार की नई इबारतें लिख रहे हैं.
जैसलमेर में सोलर कंपनियों को लेकर पोकरण के तत्कालीन एसडीएम प्रभजोतसिंह गिल ने जिला कलेक्टर प्रतापसिंह नाथावत पर आरोप लगाया है कि साकड़ा क्षेत्र में एक कंपनी के सोलर टावर लगाए जाने के मामले में जिला कलेक्टर उन पर कंपनी का पक्ष लेने के लिए दबाव बना रहे हैं. यह विवाद इतना गहरा गया कि राजस्थान प्रशासनिक अधिकारियों की एसोसिएशन ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कहा कि कलेक्टर नाहक गिल पर दबाव बना रहे हैं. इस प्रकरण में गिल का तबादला कर दिया गया. इस प्रकरण ने प्रशासनिक निष्पक्षता और व्यावसायिक हस्तक्षेप पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.
इसी तरह बाड़मेर जिले के एसडीएम अनिल कुमार जैन पर आरोप लगा है कि उन्होंने अपने परिवार के नाम से 2,350 बीघा भूमि कंपनियों को बेच दी और सीलिंग कानून का भी ध्यान नहीं रखा. अनिल जैन इन आरोपों से इनकार करते हैं, लेकिन यह प्रकरण न केवल राजस्थान विधानसभा में उठ चुका है, इसे बाड़मेर सांसद उम्मेदाराम ने लोकसभा में भी उठाया है.
इस तरह राजस्थान का यह इलाका एक विकट सामाजिक-सांस्कृतिक संकट की ओर बढ़ रहा है.
