नई दिल्ली: समलैंगिक रिश्ते को लेकर मद्रास हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि सिर्फ शादी ही परिवार बनाने का एकमात्र तरीका नहीं है. ऐसे जोड़ों के लिए ‘चुने हुए परिवार’ की अवधारणा को एलजीबीटीक्यूआईए+ कानून में मान्यता मिल चुकी है. यानी अगर लोग चाहें तो बिना शादी के भी एक परिवार की तरह रह सकते हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक, अपनी महिला साथी के साथ जाने की इच्छा रखने वाली एक महिला को राहत देते हुए मद्रास उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि एलजीबीटीक्यूआईए+ न्यायशास्त्र में यह तथ्य अच्छी तरह से स्थापित है कि परिवार के लिए शादी ही एकमात्र तरीका नहीं है.
जस्टिस जीआर स्वामीनाथन और जस्टिस वी. लक्ष्मीनारायणन की बेंच एक 25 वर्षीय महिला की उनकी महिला साथी द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें परिवार ने महिला को उनकी इच्छा के विरुद्ध कैद में बंद रखा था.
न्यू इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार पीठ ने कहा, ‘हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि कैद में लिए गए व्यक्ति को याचिकाकर्ता (महिला साथी) के साथ जाने का अधिकार है और उसे उनके परिवार के सदस्यों द्वारा उसकी इच्छा के विरुद्ध उन्हें बंद नहीं रखा जा सकता है.’
अदालत ने महिला के परिवार के सदस्यों को ‘उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करने’ से भी रोक दिया.
अदालत ने महिला और उनकी साथी को आवश्यकतानुसार पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करने के लिए क्षेत्राधिकार वाली पुलिस को आदेश भी जारी किया. अदालत ने कहा, ‘विवाह परिवार बनाने का एकमात्र तरीका नहीं है. ‘चुने हुए परिवार’ की अवधारणा अब एलजीबीटीक्यूआईए+ न्यायशास्त्र में अच्छी तरह से स्थापित और स्वीकृत हो चुकी है.’
अदालत ने कहा कि सुप्रिया चक्रवर्ती बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने भले ही समलैंगिक जोड़ों के बीच विवाह को वैध नहीं बनाया हो, लेकिन वे भली तरह से परिवार बना सकते हैं.
कोर्ट ने महिला को उनके माता-पिता के साथ जाने के लिए मजबूर करने को लेकर पुलिस की आलोचना की.
पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता ने कहीं भी अपने रिश्ते की वास्तविक प्रकृति के बारे में उल्लेख नहीं किया है, लेकिन खुद को एक करीबी दोस्त बताया है. कोर्ट ने कहा कि वह उनकी झिझक को समझता है क्योंकि समाज अभी भी रूढ़िवादी है.
पीठ ने वेल्लोर जिले के गुडियाथम, पुडुचेरी के रेड्डीयारपालयम और कर्नाटक के जीवन बीमा नगर की पुलिस की भी आलोचना की, क्योंकि उन्होंने याचिकाकर्ता द्वारा भेजे गए जरूरी संदेशों का जवाब नहीं दिया और उनकी महिला साथी को उनके माता-पिता के साथ जाने के लिए मजबूर किया.
