नई दिल्ली: भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बीआर गवई ने साफ कहा है कि उन्होंने सेवानिवृत्ति के बाद सरकार से कोई भी पद या जिम्मेदारी नहीं लेने का फैसला किया है. उन्होंने कहा कि जजों द्वारा सेवानिवृत्ति के तुरंत बाद सरकारी पद स्वीकार करना या चुनाव लड़ने के लिए इस्तीफा देना, गंभीर नैतिक सवाल खड़े करता है और जनता की निगाह में संदेह पैदा करता है.
सीजेआई ने यह बात मंगलवार (3 जून) को यूके सुप्रीम कोर्ट में एक गोलमेज चर्चा के दौरान कही, जिसकी मेज़बानी यूके सुप्रीम कोर्ट के अध्यक्ष लॉर्ड रीड ऑफ ऑलरम्यूर ने की थी.
मुख्य न्यायाधीश गवई ने बताया कि संविधानिक अदालतों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली कैसे अस्तित्व में आई. उन्होंने यह स्वीकार करते हुए कि ‘कॉलेजियम प्रणाली की आलोचना हो सकती है’, कहा कि ‘कोई भी समाधान न्यायिक स्वतंत्रता की कीमत पर नहीं होना चाहिए.’ उन्होंने यह बात ज़ोर देकर कही कि ‘जजों को बाहरी दबाव से मुक्त होना चाहिए.’
सेवानिवृत्ति के बाद जजों द्वारा सरकारी नौकरी स्वीकार करने को लेकर चल रही बहस का ज़िक्र करते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘अगर कोई न्यायाधीश सेवानिवृत्ति के तुरंत बाद सरकार से कोई और नियुक्ति स्वीकार करता है, या चुनाव लड़ने के लिए पद से इस्तीफा देता है, तो यह गंभीर नैतिक सवाल खड़े करता है और और जनता में शक उत्पन्न होता है.’
उन्होंने कहा, ‘किसी जज का चुनाव लड़ना न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर सवाल खड़े कर सकता है, क्योंकि यह हितों के टकराव जैसा लग सकता है या सरकार के प्रति झुकाव दिखाने की कोशिश मानी जा सकती है.’
उन्होंने यह भी कहा कि ‘सेवानिवृत्ति के बाद की नियुक्तियों का समय और स्वरूप न्यायपालिका की साख को नुकसान पहुंचा सकता है, क्योंकि इससे यह धारणा बन सकती है कि जज अपने फैसले भविष्य में मिलने वाले सरकारी पदों या राजनीतिक अवसरों के प्रभाव में दे रहे थे.’
सीजेआई गवई ने कहा, ‘इसी कारण मेरे कई साथी जजों और मैंने सार्वजनिक रूप से यह वचन दिया है कि हम सेवानिवृत्ति के बाद सरकार से कोई पद स्वीकार नहीं करेंगे. यह प्रतिबद्धता न्यायपालिका की विश्वसनीयता और स्वतंत्रता को बनाए रखने का प्रयास है.’
उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि ‘न्यायपालिका के भीतर भी भ्रष्टाचार और कदाचार के कुछ मामले सामने आए हैं.’ उन्होंने कहा कि ‘ऐसे मामलों का न्यायपालिका की साख पर नकारात्मक असर पड़ता है और पूरे तंत्र की ईमानदारी पर लोगों का विश्वास डगमगाता है.’
सीजेआई ने कहा, ‘इस विश्वास को दोबारा स्थापित करने का रास्ता तेज, निर्णायक और पारदर्शी कार्रवाई में निहित है.’ उन्होंने कहा, ‘भारत में जब भी ऐसे मामले सामने आए हैं, सुप्रीम कोर्ट ने हमेशा तत्काल और उचित कदम उठाए हैं.’
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के जजों की संपत्ति को सार्वजनिक करने की पहल की सराहना की. उन्होंने इसे ‘पारदर्शिता के ज़रिए जनता के विश्वास को मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम’ बताया. उन्होंने कहा कि इससे ‘उत्तरदायित्व की भावना बढ़ती है और नैतिक नेतृत्व का उदाहरण स्थापित होता है.’
सीजेआई गवई ने कहा कि ‘सुप्रीम कोर्ट ने खुद माना है कि जज भी सार्वजनिक पदाधिकारी होते हैं और उन्हें जनता के प्रति उत्तरदायी होना चाहिए.’ उन्होंने बताया कि ‘कोर्ट के पास एक समर्पित पोर्टल है, जहां जजों द्वारा की गई संपत्ति घोषणाएं सार्वजनिक की जाती हैं. इससे यह दिखता है कि जज भी दूसरे सिविल अधिकारियों की तरह जांच के दायरे में आने को तैयार हैं.’
