दिल्ली: वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं – यह उनका पहला लोकसभा चुनाव और 40 से अधिक वर्षों में बाद पहला चुनाव है.
मंगलवार को कांग्रेस की घोषणा का मतलब है कि चार बार के राज्यसभा सांसद शर्मा, भाजपा के हिमाचल के पार्टी उपाध्यक्ष राजीव भारद्वाज से मुकाबला करेंगे. हिमाचल प्रदेश में चुनाव के आखिरी चरण में 1 जून को मतदान होगा.
शर्मा, जो पिछले महीने तब सुर्खियों में आए थे जब उन्होंने पार्टी के मुख्य चुनावी मुद्दों में से एक – जाति जनगणना – का विरोध किया था. उन्होंने पहली बार 1982 में हिमाचल विधानसभा चुनाव लड़ा था. लेकिन वह जीत नहीं सके. भारतीय जनता पार्टी के दौलत राम ने शिमला विधानसभा सीट से उनको लगभग 3,000 वोटों से हराया.
तब से, शर्मा ने एक लंबा सफर तय किया है. 1984 में राज्यसभा के लिए चुने जाने से लेकर अंतत केंद्रीय मंत्री बनने तक और गांधी परिवार के सबसे करीबी विश्वासपात्र के रूप में जगह बनाने से लेकर पार्टी के सबसे मुखर आंतरिक आलोचकों में से एक बनने तक, आनंद शर्मा ने अपने राजनीतिक जीवन में बहुत कुछ देखा है.
राज्यसभा सदस्य, मनमोहन सिंह सरकार में केंद्रीय मंत्री
शर्मा जब पहली बार राज्यसभा के लिए चुने गए तब उनकी उम्र 31 वर्ष थी, जो सदन में चुने जाने की उम्र के लिए न्यूनतम आयु से केवल एक वर्ष अधिक थी.
लेकिन वह 2004 में उस साल सुर्खियों में आए जब लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की जीत हुई. विदेश मामलों के राज्य मंत्री से लेकर कैबिनेट मंत्री के रूप में वाणिज्य, उद्योग और कपड़ा मंत्रालय का कामकाज देखने तक, उन्होंने मनमोहन सिंह सरकार में विभिन्न पदों पर कार्य किया.
2004 में ही वे राज्यसभा से दूसरी बार सांसद बने, जहां वे 2022 तक रहे.
शर्मा कांग्रेस की छात्र शाखा, नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई) के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं और अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत में, हिमाचल प्रदेश युवा कांग्रेस के अध्यक्ष और भारतीय युवा कांग्रेस के प्रमुख रहे हैं.
क्या हैं विवाद
मार्च में जब कांग्रेस कार्य समिति की बैठक हुई थी, उस दिन कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को लिखे अपने पत्र में, शर्मा ने जाति जनगणना का विरोध किया था. जो कि एक ऐसा चुनावी वादा है जिसे कांग्रेस नेता राहुल गांधी का मजबूत समर्थन प्राप्त है. शर्मा, जो स्वयं सीडब्ल्यूसी सदस्य हैं, ने कहा कि इस तरह का कदम “पहचान की राजनीति (Identity Politics)” का समर्थन करने जैसा होगा और उन्होंने पार्टी से “क्षेत्रीय और जाति-आधारित संगठनों के कट्टरपंथी रुख को त्यागने” का आग्रह किया.
19 मार्च को लिख पत्र में शर्मा ने कहा, “मेरे विचार में, जाति जनगणना हर समस्या का समाधान नहीं है. इससे न ही बेरोजगारी और न ही प्रचलित असमानताओं का समाधान हो सकता है. लंबे समय चली आ रही इस महत्वपूर्ण और संवेदनशील विषय पर नीति से मौलिक विचलन के प्रमुख दीर्घकालिक राष्ट्रीय निहितार्थ हैं. एक समावेशी दृष्टिकोण वाली पार्टी के रूप में, कांग्रेस को राष्ट्रीय सर्वसम्मति के निर्माता के रूप में अपनी भूमिका को पुन प्राप्त करने और एक सामंजस्यपूर्ण समाज का निर्माण करने का प्रयास करना चाहिए.”
यह पहली बार नहीं था कि शर्मा पार्टी लाइन के खिलाफ गए थे. वह उन 23 वरिष्ठ नेताओं में शामिल थे, जिन्होंने अगस्त 2020 में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर पार्टी में सुधार की मांग की थी. इस ग्रुप में अंत में ग्रुप ऑफ 23 या G23 के रूप में जाना जाने लगा.
पिछले कुछ वर्षों में शर्मा ने कांग्रेस के कुछ अन्य फैसलों का भी कड़ा विरोध किया है. उदाहरण के लिए, 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों के दौरान, उन्होंने प्रभावशाली मौलवी अब्बास सिद्दीकी के नेतृत्व वाली क्षेत्रीय पार्टी, इंडियन सेक्युलर फ्रंट के साथ गठबंधन करने के पार्टी के फैसले का विरोध किया. इसे सोशल मीडिया पर ले जाते हुए, उन्होंने लोकसभा में कांग्रेस के नेता और पार्टी की पश्चिम बंगाल इकाई के प्रमुख अधीर रंजन चौधरी की आलोचना की.
दिसंबर 2020 में, शर्मा ने सार्वजनिक रूप से COVID-19 संकट से निपटने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार की सराहना की.
शर्मा ने फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) की 93वीं वार्षिक बैठक में बोलते हुए कहा था, “चुनौती के बावजूद, हम पूरी तरह से नहीं हारे, हमने एक राष्ट्र के रूप में धैर्य के साथ जवाब दिया. इसका श्रेय हमारे लोगों, हमारे समाज और सरकार को जाता है. हम सभी एक ऐसी स्थिति का जवाब देने के लिए एक राष्ट्र के रूप में एकजुट हुए, जो हमसे परे थी. और समान रूप से, मैं कहूंगा कि मुझे गर्व है कि यह देश आज न केवल वेंटिलेटर, पीपीई किट, मास्क का निर्माण करने की स्थिति में है, बल्कि निर्यात भी कर रहा है.”
इस बीच, अगस्त 2020 के पत्र के बाद, शर्मा ने पाया कि पार्टी में उन्हें दरकिनार कर दिया गया है. हालांकि, पिछले साल जब उन्हें सीडब्ल्यूसी में फिर से शामिल किया गया तो यह सब बदल गया.
इसके बावजूद, माना जाता है कि शर्मा इस साल की शुरुआत में हिमाचल में राज्यसभा चुनाव के लिए उनकी अनदेखी किए जाने की वजह से नाराज़ थे. हालांकि, पार्टी के उम्मीदवार अभिषेक मनु सिंघवी भी क्रॉस वोटिंग के कारण हार गए.
कांगड़ा संसदीय सीट के बारे में
कांगड़ा लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत 17 विधानसभा सीटें आती हैं. इनमें से 11 पर कांग्रेस का कब्जा है.
2019 में, भाजपा के किशन कपूर ने कांग्रेस के पवन काजल को 4.7 लाख से अधिक वोटों से हराया.
शर्मा और भाजपा के उनके प्रतिद्वंद्वी भारद्वाज दोनों ब्राह्मण हैं. राजनीतिक दलों के अनुमान के मुताबिक, ब्राह्मण कांगड़ा की आबादी का लगभग 20 प्रतिशत है.
1998 के बाद से, कांग्रेस ने केवल एक बार 2004 में यह सीट जीती थी, जब उसके उम्मीदवार चंदर कुमार लगभग 18,000 वोटों से जीते थे.
कांग्रेस की घोषणा का मतलब है कि पार्टी ने हिमाचल प्रदेश की सभी चार लोकसभा सीटों के लिए अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है. जहां विक्रमादित्य सिंह मंडी में अभिनेता कंगना रनौत से मुकाबला करेंगे, वहीं विनोद सुल्तानपुरी और सतपाल रायजादा को क्रमश शिमला और हमीरपुर से मैदान में उतारा गया है.