September 8, 2024 6:49 am

लेटेस्ट न्यूज़

राममंदिर, 370 जैसे वादों को पूरा करने के बाद भी भाजपा बहुतम पार नही कर सकी, INDIA को कैसे फायदा हुआ ये जाने

लोकसभा चुनाव के नतीजे आने जारी हैं। रुझानों के स्थिर होने के बाद अब जो तस्वीर सामने आ रही है, उसके मुताबिक भाजपा को इस चुनाव में बड़ा नुकसान हुआ है। पार्टी इस बार अपने दम पर 272 सीटों यानी बहुमत के जादुई आंकड़े को भी पार नहीं कर पा रही है।

हालांकि, एनडीए को इस चुनाव में 290 से 300 सीटों के बीच मिलती दिख रही हैं। उधर इंडिया गठबंधन ने सभी अनुमानों को धता बताते हुए करीब 230 से 240 सीटों पर जबरदस्त बढ़त हासिल की।

इस बीच सवाल यह है कि आखिर बीते दो लोकसभा चुनावों में मजबूत प्रदर्शन, बीते पांच साल के कार्यकाल में राम मंदिर और जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का वादा पूरा करने के बावजूद आखिर क्यों इस बार भाजपा को आम चुनाव में बहुमत नहीं मिला। साथ ही एक कौतूहल इस बात पर भी है कि आखिर तमाम एग्जिट पोल और अनुमानों के बावजूद इंडिया गठबंधन ने अपने प्रदर्शन को कैसे बेहतर किया। आइये जानते हैं…

1. क्षेत्रीय दलों के दम से घटीं भाजपा की सीटें
गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव में विपक्षी दलों के इंडिया गठबंधन ने जीत हासिल की है। मजेदार बात यह है कि जहां एनडीए गठबंधन में भाजपा सबसे बड़ी और मुख्य पार्टी रही। वहीं, इंडी गठबंधन में कांग्रेस के नेतृत्व के बावजूद इससे जुड़े क्षेत्रीय दल अपने राज्यों में काफी मजबूत रहे। जहां एनडीए में सिर्फ कुछ क्षेत्रीय दल- आंध्र प्रदेश में तेदेपा (16 सीट) और बिहार में जदयू (12 सीट), लोजपा (5 सीट) और महाराष्ट्र में शिवसेना (7 सीटें) ही अपने दम पर भाजपा से अलग पहचान कायम रखने में सफल हुए।

दूसरी तरफ, इंडी गठबंधन की तरफ से तमिलनाडु में द्रमुक को 20 से ज्यादा सीटें और टीएमसी को करीब 30 सीटें हासिल हुई हैं। इसके अलावा समाजवादी पार्टी ने यूपी में करीब 40 सीटें, आम आदमी पार्टी ने पंजाब में 3, माकपा को चार, शिवसेना (उद्धव बालासाहेब) को 9 सीटें, राकांपा-एसपी को 7 सीटें और राजद को 4 सीटें मिलती दिख रही हैं। इसके अलावा कई अन्य छोटे दल भी इंडी गठबंधन के साथ रहे, जिनकी छिटपुट सीटों से इंडी गठबंधन को जबरदस्त फायदा हुआ।

3. एक होकर चुनाव लड़ने का असर
इंडी गठबंधन ने जहां कई बड़ी-छोटी पार्टियों को साथ लाकर भाजपा के खिलाफ एक मजबूत मोर्चा तैयार किया। दूसरी तरफ अपने नेतृत्व का एलान न कर के भी इंडी गठबंधन ने न सिर्फ खुद को टूटने से बचाए रखा, बल्कि अलग-अलग पार्टियों के नेताओं को एक मंच पर आवाज बुलंद करने का बराबर का मौका दिया। ऐसे में सत्तासीन एनडीए गठबंधन ने कई मौकों पर नेतृत्व की कमी को लेकर इंडी गठबंधन पर निशाना साधा। खासकर भाजपा ने इसे ‘पांच साल में पांच प्रधानमंत्री/हर एक साल में देश का एक पीएम’ का फॉर्मूला बताते हुए हुए खिचड़ी गठबंधन करार दे दिया।

4. अलग-अलग लड़कर भी बाद में साथ आने का विश्वास
इंडी गठबंधन के मंच पर तो सारे विपक्षी दल के बड़े चेहरे एक साथ दिखे, वहीं कुछ राज्यों में इनके बीच कोई एकजुटता नहीं दिखी। उदाहरण के तौर पर दिल्ली में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने सीटें साझा करने का फॉर्मूला निकाल लिया। दोनों ही पार्टियों के नेताओं ने भी इंडी गठबंधन की बैठकों में हिस्सा लिया। लेकिन पंजाब में यही दोनों पार्टियों अलग-अलग उतरीं। इसके बावजूद चुनाव में दोनों ही पार्टियों को कुल-मिलाकर फायदा ही हुआ। कुछ यही हाल इंडी गठबंधन की बैठकों में साथ दिखने वाली कांग्रेस और लेफ्ट पार्टी के गठजोड़ का भी हुआ। दोनों ही दल जहां केंद्र में तो साथ लड़ने का आह्वान करते रहे, वहीं बंगाल और केरल में दोनों ही दल आपस में मुकाबला करते नजर आए।

दूसरी तरफ इंडी गठबंधन के सूत्रधार मानी जा रहीं ममता बनर्जी ने बंगाल में कांग्रेस के साथ सीट बंटवारे के फॉर्मूले पर एकमत न होने की बात कहते हुए अलग चुनाव लड़ने का फैसला किया। बंगाल में भाजपा को एकतरफा तौर पर हराने के बाद टीएमसी का यह फैसला भी सही साबित हुआ है।

5. तीन प्रमुख राज्यों में प्रदर्शन
लोकसभा चुनाव के रुझानों/नतीजों पर गौर किया जाए तो एनडीए को सीटों के लिहाज से तीन सबसे राज्य- उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में भारी नुकसान हुआ है। जहां उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में भाजपा को 33 सीटें मिलती दिख रही हैं, तो वहीं महाराष्ट्र में पार्टी को 10 सीटें आ रही हैं। दूसरी तरफ पश्चिम बंगाल में भी पार्टी को 12 सीटें मिलती दिख रही हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि 2019 में भाजपा को यूपी में 62 सीटें मिली थीं। वहीं, महाराष्ट्र में पार्टी को 23 और बंगाल में भाजपा ने 18 सीटें हासिल की थीं। इस बार इन तीनों राज्यों में ही भाजपा नीत एनडीए को बड़ा नुकसान हुआ है।

6. हिंदी पट्टी में सीटें घटने से हुआ नुकसान
इतना ही नहीं हिंदी पट्टी की बात करें तो भाजपा को काफी नुकसान उठाना पड़ा। जहां यूपी में पार्टी के प्रदर्शन में गिरावट आई, वहीं हरियाणा में भाजपा को 2019 की 10 सीटों के मुकाबले इस बार सिर्फ छह सीटों पर ही बढ़त मिल पाई। इसके अलावा राजस्थान में जहां पिछली बार भाजपा को 24 सीटें मिली थीं, तो वहीं इस बार पार्टी को 14 सीटें ही मिल पाईं। बिहार में 2019 में भाजपा को 15 सीटें मिली थीं तो इस बार वह 12 सीटों पर ही रह गई। झारखंड में भी भाजपा ने पिछली बार 11 सीटें हासिल की थीं तो वहीं यहां भी उसकी सीट घटकर आठ रह गई हैं।

कई मुद्दों पर अस्पष्ट रुख, पिछले वादों पर ज्यादा भरोसा
इस लोकसभा चुनाव में एक और बड़ा मुद्दा भाजपा का कई मामलों में अस्पष्ट होना भी रहा। खासकर पिछले कुछ महीनों में पार्टी ने बेरोजगारी, महंगाई और अन्य कई मुद्दों पर गोलमोल जवाब दिए। इतना ही नहीं जातिगत जनगणना, मराठा आरक्षण, चुनावी बॉन्ड, कृषि कानून, एलएसी पर चीन से टकराव और नई न्याय संहिता के कई मुद्दों पर भी पार्टी ने बीच-बचाव करते हुए ही बयान जारी किए। ऐसे में देश से जुड़े इन अहम मुद्दों पर भाजपा का अस्पष्ट रुख उसे महंगा पड़ गया।

राम मंदिर-अनुच्छेद 370 के अलावा नए वादों की कमी
भाजपा के लिए 2019 में दो बड़े वादे- अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की कोशिशें जारी रखना और जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने के प्रयासों ने जनता को अपनी तरफ खींचा था। हालांकि, इस बार पार्टी अपने इन्हीं दो वादों को पूरा करने के नाम पर वोट मांगती नजर आई। यहां तक कि भाजपा के घोषणापत्र में भी इस बार नए वादों की काफी कमी देखी गई। पार्टी ने अधिकतर वही वादे दोहराए, जिन्हें वह पहले कई मौकों पर आगे बढ़ाने की बात कह चुकी है। ऐसे में नए वादों की कमी के चलते वोटरों का ध्यान उन पार्टियों की ओर गया, जिन्होंने नए वादों को प्राथमिकता दी।

महंगाई और बेरोजगारी अहम मुद्दे रहे इण्डिया गठबंधन के लिए

Khabar 30 Din
Author: Khabar 30 Din

Leave a Comment

Advertisement
  • AI Tools Indexer
  • Market Mystique
  • Buzz4ai