खबर 30 दिन न्यूज़ नेटवर्क-अब्दुल सलाम क़ादरी
सवाईमाधोपुर।
देश के सबसे सुरक्षित माने जाने वाले रणथंभौर टाइगर रिजर्व (RTR) में अब बाघों की सुरक्षा गहरी चिंता का विषय बन गई है। बीते एक साल में यहां से 26 बाघ-बाघिन लापता हुए हैं, जिनमें से सिर्फ 10 के ही कुछ निशान मिल सके हैं। शेष 16 बाघ-बाघिन अब भी लापता हैं। यह खुलासा वन विभाग की ताजा रिपोर्ट में हुआ है।
कैसे हो रही है निगरानी में चूक?
ग्राउंड रिपोर्टिंग के दौरान यह सामने आया कि रणथंभौर में कई इलाकों में सीसीटीवी कैमरे खराब पड़े हैं, और वॉच टावरों पर कर्मचारियों की तैनाती बेहद कम है। स्थानीय गाइड रमेश गुर्जर बताते हैं,
“पहले हर जोन में वॉच टावर पर गश्ती कर्मचारी होते थे, अब तो महीनों तक कोई नजर नहीं आता। बाघ भी अब इंसानी गतिविधियों से दूर अनजान इलाकों में चले गए हैं।“
यह लापरवाही केवल सुरक्षा नहीं, बल्कि पर्यटन व्यवसाय पर भी असर डाल रही है, जो यहां की अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा है।
‘एसटी-13’ जैसे मामले से भी नहीं सीखा विभाग
रणथंभौर की प्रसिद्ध बाघिन एसटी-13 की रहस्यमयी मौत के बाद वन विभाग ने उसके दो शावकों को खोजने के लिए विशेष अभियान चलाया था, लेकिन आज तक न तो शावकों का कोई सुराग मिला और न ही घटना के कारणों का आधिकारिक खुलासा हुआ।
वन्यजीव विशेषज्ञ डॉ. अमिताभ शर्मा कहते हैं,
“अगर शावकों को ट्रेस नहीं किया जा सका, तो यह दिखाता है कि रिजर्व की मॉनिटरिंग कितनी कमजोर है।“
वॉच टावर ‘शोपीस’, फील्ड मोनिटरिंग नाम मात्र की
रणथंभौर टाइगर रिजर्व में लगभग 90 वॉच टावर हैं, जिनमें से अधिकांश अब केवल ‘शोपीस’ बन कर रह गए हैं। सूत्रों के अनुसार अधिकांश टावरों पर न तो कैमरे चालू हैं और न ही नियमित गश्त होती है।
एक पूर्व फॉरेस्ट गार्ड श्रीमान मोहन लाल बताते हैं,
“पहले हर 12 घंटे में फील्ड रिपोर्ट बनती थी। अब कई हफ्तों तक कोई ट्रैकिंग रिपोर्ट फाइल नहीं होती। इससे बाघों की गतिविधियों पर नजर रखना असंभव हो गया है।“
बड़ी-बड़ी घोषणाओं का हकीकत से कोई मेल नहीं
हर साल टाइगर रिजर्व के नाम पर करोड़ों रुपये के बजट की घोषणा होती है। बीते वर्षों में 60 करोड़ रुपये से अधिक की योजनाएं लागू की गईं, लेकिन जमीनी स्तर पर हालात नहीं सुधरे।
रणथंभौर फाउंडेशन के सदस्य महेंद्र परमार का कहना है,
“रणथंभौर के बाघ वैश्विक धरोहर हैं। उनकी सुरक्षा केवल घोषणाओं से नहीं, बल्कि जमीन पर सख्त निगरानी और जवाबदेही से ही हो सकती है।“
वन विभाग की सफाई
रणथंभौर के फील्ड डायरेक्टर जंग बहादुर का कहना है कि,
“जो बाघ लापता बताए जा रहे हैं, उनमें से कई नए इलाकों में विचरण कर रहे हैं। उन्हें ट्रेस करने के प्रयास जारी हैं।“
लेकिन सवाल यह उठता है कि अगर निगरानी सही होती तो इतने बड़े पैमाने पर बाघ-बाघिन गायब कैसे हो सकते थे?
निगरानी तंत्र में सुधार की मांग
वन्यजीव प्रेमियों और संरक्षण संगठनों ने राज्य सरकार और वन विभाग से रणथंभौर में:
- हाईटेक निगरानी कैमरे लगाने,
- हर टाइगर जोन में सक्रिय गश्ती बढ़ाने,
- वॉच टावरों की मरम्मत और स्टाफ की नियमित तैनाती
जैसे ठोस कदम उठाने की मांग की है।
वरना, विशेषज्ञों के अनुसार, रणथंभौर में बाघों की घटती संख्या देश के वन्यजीव संरक्षण प्रयासों के लिए बड़ा झटका साबित हो सकती है।
