इंदौर में डॉक्टरों ने 23 दिन के नवजात को शॉक देकर उसकी जान बचाई। दरअसल बच्चे का दिल 3 गुना तेजी से धड़क रहा था, इससे हार्ट फेलियर की स्थिति बनी हुई थी। जिसके बाद बच्चे के दिल की धड़कन को काबू करने और उसकी जान बचाने के लिए डॉक्टर ने उसे DC शॉक लगाया। इससे ना केवल नवजात की धड़कन काबू हो गई, बल्कि उसकी जान भी बच गई। आमतौर पर इतने कम उम्र के नवजात को DC शॉक देने के मामले में बहुत कम होते हैं, क्योंकि यह स्थिति तब ही बनती है जब दवाइयां असर नहीं करती।

एक हफ्ते से लगातार रो रहा था बच्चा
सनावद निवासी पूजा पटेल का 23 दिन का नवजात एक हफ्ते से लगातार रो रहा था और सो भी नहीं पा रहा था। 22 जनवरी को उसे जंजीरवाला चौराहा स्थित लोटस हेल्थ केयर में एडमिट किया गया। बच्चे का ईको और ईसीजी करने पर पता चला कि हार्ट बीट 350 चल रही थी। इतनी ज्यादा धड़कन होने की वजह से हार्ट फेलियर की स्थिति बनी हुई थी। इतने दिनों से लगातार धड़कन का दो से ढाई गुना ज्यादा होने की वजह से लीवर और फेफड़ों में सूजन बनी हुई थी जिसकी वजह से बच्चे को तकलीफ हो रही थी।
हजारों बच्चों में से एकाध में होता है ऐसा
जांच करने पर पता चला कि बच्चा PSVT (Paroxy smalsupra ventricurlar tachycardia) नाम की बीमारी से ग्रस्त है और जिसकी वजह से हृदय गति सामान्य से 2-3 गुना बनी हुई है। PSVT जैसा मामला 20-25 हजार बच्चों में एकाध में होता है।
जन्म के पहले और बाद में भी बन सकती है ऐसी स्थिति
यह स्थिति बच्चे के जन्म के पहले (मां के गर्भवती होने के दौरान) और बाद में भी हो सकती है। इस बच्चे को एडमिट करने के बाद ऑक्सीजन के अलावा दूसरी स्टैंडर्ड दवाइयां दी गईं लेकिन उसकी तबीयत बिगड़ती जा रही थी और हार्ट फेल की स्थिति बनी हुई थी। जिसे देखते हुए DC-cardioversion (डीसी-कार्डियोवर्जन) देने का प्लान किया गया। बच्चे की उम्र और वजन के हिसाब से DC-cardiversion रिस्की हो सकता था। मामले में बच्चे के माता-पिता की सहमति से उसे DC-cardioversion (shocktherapy) दी गई। वजन के अनुसार बच्चे को 4 जूल का शॉक दिया गया। शॉक देने के कुछ सेकंड बाद ही धड़कन काबू में आ गई और हार्ट बीट 140-150 के बीच आ गई।
बच्चों को DC शॉक मामले में अनुभव जरूरी
डॉ. जफर खान के अनुसार उन्होंने अपने 25 साल के अनुभव में पहली बार इतने छोटे बच्चे को DC शॉक दिया। DC शॉक के बाद हृदय गति सामान्य तो हुई। इसके साथ ही बच्चे की दूसरी समस्या जैसे रोना कम हो गया और दूध भी पीने लग गया। डॉ. जफर खान के अनुसार इतने छोटे नवजात शिशु मे DC शॉक थैरेपी का इंदौर में संभवतः यह पहला मामला है। अगर यह बच्चा समय पर एडमिट हो जाता तो शायद DC शॉक की जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि ऐसे मामले अक्सर दवाइयों से ठीक हो जाते हैं। DC शॉक में जान जाने का खतरा भी रहता है अगर DC शॉक देने वाला अनुभवी न हो। अब बच्चा नॉर्मल है। अब करीब उसे 6 महीने तक फॉलोअप में हर माह दिखाना होगा।