जम्मू विकास प्राधिकरण (जेडीए) ने गुरुवार (21 नवंबर) को जम्मू शहर में विस्थापित कश्मीरी पंडितों की लगभग एक दर्जन दुकानों को ध्वस्त कर दिया, जहां उन्हें लगभग तीन दशक पहले तत्कालीन जम्मू-कश्मीर सरकार ने बसाया था.
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, दुकान मालिकों का कहना है कि उन्हें दुकाने तोड़े जाने के संबंध में कोई पूर्व सूचना नहीं दी गई थी, हालांकि, जेडीए ने इस दावे को खारिज किया है.
जेडीए की इस कार्रवाई के बाद विभिन्न क्षेत्रों में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), जम्मू और कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) और अपनी पार्टी सहित कई राजनीतिक दलों और कई कश्मीरी पंडित संगठनों ने इसकी निंदा करते हुए विस्थापित समुदाय के प्रभावित सदस्यों के लिए नई दुकानों के निर्माण की मांग की है.
सोशल मीडिया मंच एक्स पर प्रभावित लोगों की वीडियो क्लिप साझा करते हुए जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने दुकाने तोड़े जाने को कश्मीरी पंडितों के लिए एक और झटका बताया, जिन्होंने दशकों से कठिन परिस्थितों का सामना किया है.
उन्होंने उमर अब्दुल्ला सरकार से हस्तक्षेप करने का आग्रह करते हुए कहा, ‘आदिवासी समुदाय की संपत्तियों के लक्षित विध्वंस का जो अभियान शुरू हुआ था, वह अब कश्मीरी पंडितों तक बढ़ गया है, जिससे उनमें अलगाव और नुकसान की भावना और भी गहरी हो गई है.’
उनके द्वारा सोशल मीडिया पर शेयर किए गए वीडियो में एक बुजुर्ग शख्स रोते हुए कहते नजर आ रहे हैं, ‘हम कहां जाएंगे? हमने सब कुछ खो दिया है.’ दूसरे अन्य व्यक्ति कहते हैं, ‘मुझे लगता है कि मेरा दिल काम करना बंद कर देगा… उन्होंने हमारे साथ क्या किया है?’
इस मामले पर जेडीए उपाध्यक्ष पंकज शर्मा ने कहा कि प्रभावित लोगों को 20 जनवरी को नोटिस दिया गया था और उन्होंने बाद में जेडीए को लिखित आश्वासन दिया था कि वे फरवरी के अंत तक जमीन खाली कर देंगे. हालांकि, लोकसभा चुनाव और फिर विधानसभा चुनाव के लिए आदर्श आचार संहिता लागू होने के कारण समय सीमा समाप्त होने के बाद जेडीए इस मामले पर कार्रवाई नहीं कर सका.
शर्मा ने आगे कहा कि मुथी क्षेत्र में साइट पर 25 कनाल भूमि थी, जहां विस्थापित कश्मीरी पंडितों को शुरू में एक कमरे के गुंबददार प्रकार के मकानों में बसाया गया था, और बाद में उन्हें पुरखू और जगती में दो कमरों के फ्लैटों में पुनर्वासित किया गया. उन्होंने बताया कि इसके बाद भी कई लोगों ने शुरुआती बस्तियां खाली नहीं की हैं.
शर्मा ने कहा, ‘बाद में समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए 208 फ्लैटों के निर्माण के लिए साइट की पहचान की गई थी, और चूंकि इसके लिए टेंडर प्रक्रिया भी पूरी हो गई थी, इसलिए जमीन सफल बोली लगाने वाले को सौंपी जानी थी. ‘
उन्होंने यह भी कहा कि तोड़फोड़ करने से पहले जेडीए अधिकारियों ने मूल आवंटियों को मौके पर बुलाया और उनकी मौजूदगी में ताले खोले. उन्होंने दावा किया कि इसे केवल एक या दो लोग ही मुद्दा बना रहे हैं.
इस बीच, राहत आयुक्त (Relief Commissioner) अरविंद कारवानी ने स्थिति का आकलन करने के लिए क्षेत्र का दौरा किया और प्रभावित परिवारों को आश्वासन दिया कि क्षेत्र में उनके लिए नई दुकानें बनाई जाएंगी.
उन्होंने कहा, ‘ये दुकानें जेडीए की जमीन पर थीं. राहत संगठन ने मुथी कैंप चरण II में एक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स के निर्माण के लिए निविदाएं जारी की हैं. जल्द ही दस दुकानों का निर्माण किया जाएगा और इन दुकानदारों को आवंटित किया जाएगा.’
हालांकि, इस कार्रवाई में प्रभावित लोगों के सिसकते वीडियो इंटरनेट पर व्यापक रूप से साझा किए जाने के बाद इस मुद्दे ने क्षेत्र में राजनीतिक सियासत तेज़ कर दी है.
जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी के प्रमुख अल्ताफ बुखारी ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, ‘यदि तोड़फोड़ जरूरी थी, तो प्रशासन को पहले उनकी आजीविका बचने के लिए विकल्पों की व्यवस्था करनी चाहिए थी. इस तरह की कार्रवाइयां निराशाजनक हैं, खासकर एक निर्वाचित सरकार के तहत जिससे अपने नागरिकों के कल्याण को प्राथमिकता देने की उम्मीद की जाती है.’
उन्होंने प्रशासन से प्रभावित दुकान मालिकों के लिए न्याय सुनिश्चित करने का आह्वान किया.
भाजपा प्रवक्ता जीएल रैना ने घटनास्थल का दौरा किया और प्रभावित परिवारों से मुलाकात की. उन्होंने इस विध्वंस को मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली नेशनल कॉन्फ्रेस-कांग्रेस सरकार की वापसी के तुरंत बाद एक बदले की कार्रवाई करार दिया.
उन्होंने कहा, ‘जेडीए को इन परिवारों को विकल्प उपलब्ध कराना चाहिए था. सरकार को इस असहाय समुदाय को निशाना बनाना बंद करना चाहिए.’