- राज्य सूचना आयोग के आदेश को ठेंगा दिखाता वन मंडल मरवाही का डिएफओ: सूचना का अधिकार कानून का दुरुपयोग?
रायपुर-मरवाही, 15 मार्च 2025:
छत्तीसगढ़ के वन विभाग में हाल ही में एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसने राज्य सूचना आयोग के आदेश को ठेंगा दिखाने और सूचना का अधिकार (RTI) कानून के दुरुपयोग के सवालों पर कड़ा वार किया है। मरवाही वन मंडल के डिएफओ पर आरोप है कि उन्होंने राज्य सूचना आयोग द्वारा पारित आदेश की अनदेखी करते हुए, अपिलेन्ट अब्दुल सलाम कादरी समेत कई नागरिकों को निशुल्क जानकारी उपलब्ध कराने से इंकार कर दिया है।
मामले का पृष्ठभूमि
2023 में, माननीय राज्य सूचना आयोग ने चार मामलों में अपिलेन्ट अब्दुल सलाम कादरी के पक्ष में आदेश पारित किया था, जिसमें डिएफओ मरवाही को एक माह के अंदर निशुल्क जानकारी प्रदान करने का निर्देश दिया गया था। इस आदेश के बाद भी एक वर्ष से अधिक समय में, अपिलेन्ट ने डिएफओ को लिखित एवं मौखिक रूप से जानकारी देने का निवेदन किया। साथ ही, सीसीएफ बिलासपुर को भी इस विषय की जानकारी दी गई थी।
आरोप और विवाद
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आदेश की अनदेखी:
रिपोर्ट के अनुसार, डिएफओ और उनके स्टेनोग्राफर ने राज्य सूचना आयोग के आदेश को अपने व्यक्तिगत स्वार्थ में रखने का प्रयास किया है। ऐसा माना जा रहा है कि वन विभाग के कुछ रेंजर और अधिकारी अब RTI कानून को सार्वजनिक हित की बजाय अपनी जेब में रखने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। -
विस्तृत शिकायतें:
अपिलेन्ट ने न केवल राज्य सूचना आयोग में शिकायत दर्ज कराई है, बल्कि इस डिएफओ के खिलाफ हाईकोर्ट में पेटीशन दाखिल करने की भी तैयारी की है। साथ ही, संघ लोक सेवा आयोग, राष्ट्रपति और राज्यपाल को भी शिकायत भेजी जा रही है। इस कदम से यह सवाल उठता है कि क्या उच्च अधिकारियों द्वारा जल्द ही उचित कार्यवाही की जाएगी या यह मामला पद का दुरुपयोग बनकर रह जाएगा। -
राजनीतिक परिप्रेक्ष्य:
कई लोगों के अनुसार, पूर्व कांग्रेस शासन के दौरान भ्रष्टाचार के बाद यह उम्मीद की गई थी कि बीजेपी शासन में यह समस्या नहीं होगी। परन्तु वर्तमान स्थिति से यह स्पष्ट होता है कि वन विभाग में भ्रष्टाचार और पारदर्शिता की कमी अब भी बरकरार है।
प्रशासनिक निष्क्रियता और नागरिक हक
इस मामले से यह उजागर होता है कि कैसे कुछ वन विभाग के अधिकारी सूचना का अधिकार के मूल सिद्धांतों के खिलाफ जाते हुए नागरिकों के हक को नजरअंदाज कर रहे हैं। नागरिकों को अपने अधिकार प्राप्त करने के लिए अनगिनत अपीलों और शिकायतों के बावजूद भी जानकारी नहीं मिल रही है, जिससे प्रशासनिक निष्क्रियता और जवाबदेही पर गंभीर प्रश्न उठते हैं।
आगे की कार्रवाई की संभावना
अपिलेन्ट द्वारा हाईकोर्ट में पेटीशन दाखिल करने की तैयारी और संघ लोक सेवा आयोग तथा अन्य उच्च अधिकारियों को शिकायत भेजने से उम्मीद जताई जा रही है कि जल्द ही इस मामले में कड़ी कार्यवाही होगी। अगर डिएफओ के खिलाफ ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो यह मामला वन विभाग में पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए एक चिंताजनक मिसाल बन सकता है।
निष्कर्ष
इस मामले में राज्य सूचना आयोग का आदेश ठेंगा दिखाने और जानकारी से वंचित रखने के प्रयास ने वन विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार के तंत्र पर कड़ा प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। न केवल नागरिकों का हक प्रभावित हो रहा है, बल्कि प्रशासनिक ढांचे में पारदर्शिता की कमी को भी उजागर किया जा रहा है। अब यह देखना होगा कि उच्च न्यायालय और संबंधित अधिकारियों द्वारा समय रहते उचित कदम उठाए जाते हैं या नहीं, जिससे जनता का विश्वास बहाल हो सके।
यह खबर वन विभाग में प्रशासनिक निष्क्रियता, पारदर्शिता की कमी और नागरिकों के सूचना के अधिकार के लिए चल रहे संघर्ष को दर्शाती है, जिससे पूरे छत्तीसगढ़ में वन विभाग के कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं।
