अब्दुल सलाम क़ादरी
- वन विभाग में भ्रष्टाचार, 179901 पौधे कागजों में जिंदा – जमीनी हकीकत शून्य
छत्तीसगढ़ के मनेंद्रगढ़ वनमंडल के बहरासी वन परिक्षेत्र में करोड़ों रुपये की लागत से किए गए वृक्षारोपण में बड़ा घोटाला सामने आया है। 2018 से 2023 के बीच वन विभाग द्वारा विभिन्न प्रजातियों के 1.79 लाख से अधिक पौधे लगाने के दावे किए गए, लेकिन जब जमीनी सच्चाई की जांच की गई तो 70 से 80 प्रतिशत पौधे नष्ट हो चुके थे या फिर लगाए ही नहीं गए थे।
इस मामले में शिकायत दर्ज कर मुख्य वन संरक्षक (केम्पा) और अन्य उच्चाधिकारियों को रिपोर्ट भेजी गई थी। इसके अलावा, सीपी ग्राम पोर्टल पर भी शिकायत दर्ज कराई गई थी। लेकिन अब एक साल बीतने के बावजूद कोई जांच नहीं हुई। सूत्रों के अनुसार, इस मामले को दबा दिया गया है, जिससे इस भ्रष्टाचार में विभाग के ही बड़े अधिकारियों की संलिप्तता की आशंका और गहरा गई है।
घोटाले का पूरा ब्योरा
बहरासी वन परिक्षेत्र में विशेष प्रजाति के वृक्षारोपण और बांस वृक्षारोपण के लिए करोड़ों रुपये स्वीकृत किए गए थे। रिपोर्ट के अनुसार –
- 179901 पौधे 2018 से 2023 तक लगाए गए।
- पौधारोपण के लिए कुल खर्च 23807445 रुपये बताया गया।
- जांच में पाया गया कि 70-80% पौधे जीवित ही नहीं हैं।
- कई स्थानों पर पेड़ लगाए ही नहीं गए, लेकिन कागजों में उन्हें जीवित दर्शाया गया।
- भुगतान के बावजूद कई क्षेत्रों में वृक्षारोपण कार्य ही नहीं किया गया।
- वृक्षारोपण में लगाए गए बांस और अन्य पौधों की गिनती फर्जी तरीके से बढ़ाई गई।
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इस वृक्षारोपण के नाम पर लाखों रुपये की बंदरबांट कर दी गई, लेकिन जब इसकी जमीनी जांच कराई गई तो कई जगहों पर पेड़ मिले ही नहीं।
कहां गया जनता का पैसा?
इस मामले में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि अगर करोड़ों रुपये खर्च किए गए, तो वृक्षारोपण के वास्तविक प्रमाण क्यों नहीं मिले? क्या वन विभाग के अधिकारी और ठेकेदारों की मिलीभगत से सरकारी धन का दुरुपयोग किया गया?
शिकायत में यह भी आरोप लगाया गया है कि ग्राम पंचायतों, जनप्रतिनिधियों और ग्रामीणों की सहमति के बिना ही कागजों में वृक्षारोपण पूरा दिखा दिया गया।
- क्या ये पूरा घोटाला सिर्फ कागजों में ही सीमित रहा?
- क्या इस योजना के नाम पर सिर्फ धन निकालने का खेल हुआ?
- कौन जिम्मेदार है इस भ्रष्टाचार के लिए?
जांच क्यों नहीं हो रही?
शिकायतकर्ता अब्दुल सलाम क़ादरी ने मामले की निष्पक्ष जांच की मांग की थी। लेकिन आज तक किसी भी अधिकारी ने इसे गंभीरता से नहीं लिया।
सूत्रों का दावा है कि जांच को दबाने की कोशिशें की जा रही हैं। अगर वन विभाग में कुछ भी गलत नहीं हुआ, तो जांच से भागने की जरूरत क्यों पड़ रही है?
- क्या इसमें वन विभाग के बड़े अधिकारी शामिल हैं?
- क्या भ्रष्टाचारियों को बचाने की कोशिश हो रही है?
वन विभाग द्वारा जांच शुरू नहीं करने और रिपोर्ट को नजरअंदाज करने से स्पष्ट संकेत मिलता है कि कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है।
जनता के पैसे का हिसाब कौन देगा?
यह मामला सिर्फ सरकारी धन के दुरुपयोग का ही नहीं, बल्कि पर्यावरण के साथ भी एक बड़ा धोखा है।
- लाखों रुपये खर्च होने के बावजूद वन क्षेत्र में वृक्षारोपण का कोई ठोस परिणाम नहीं दिख रहा।
- सरकारी योजनाओं का फायदा भ्रष्टाचारियों ने उठाया, लेकिन पर्यावरण को कोई लाभ नहीं हुआ।
- जनता के टैक्स के पैसे का उपयोग किसके लिए हुआ?
- अगर कुछ भी गलत नहीं हुआ, तो जांच से बचने की कोशिश क्यों की जा रही है?
सरकार को चाहिए कि इस घोटाले की निष्पक्ष जांच कराए और दोषियों को सजा दे। यह मामला सिर्फ वन विभाग तक सीमित नहीं है, बल्कि यह दिखाता है कि कैसे सरकारी धन का दुरुपयोग किया जाता है और फिर इसे दबा दिया जाता है।
सरकार से जवाब तलब जरूरी
शिकायतकर्ता ने इस मामले में प्रधानमंत्री कार्यालय, मुख्यमंत्री कार्यालय, जिला कलेक्टर और वन विभाग के उच्चाधिकारियों को पत्र भेजा है। अब यह सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि –
- इस घोटाले की निष्पक्ष जांच की जाए।
- वन विभाग के दोषी अधिकारियों और कर्मचारियों पर कार्रवाई की जाए।
- सार्वजनिक रूप से रिपोर्ट जारी कर यह बताया जाए कि जनता के पैसे का सही उपयोग हुआ या नहीं।
अब सवाल यह उठता है कि अगर कोई घोटाला नहीं हुआ, तो जांच से बचने की कोशिश क्यों की जा रही है?
