अब्दुल सलाम कादरी-एडिटर इन चीफ
नई दिल्ली | भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) शासित राज्यों में बुलडोजर को ‘न्याय का हथियार’ बताकर धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जा रहा है। अपराध नियंत्रण और अवैध निर्माण हटाने के नाम पर गरीबों, अल्पसंख्यकों और विपक्षी नेताओं को निशाना बनाया जा रहा है। लेकिन क्या सच में यह कानून का राज है या फिर सरकार की मनमानी? सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर सवाल उठाए हैं और यूपी सरकार को फटकार लगाई है।
बीजेपी सरकार का बुलडोजर मॉडल
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने बुलडोजर को अपनी पहचान बना लिया है। विधानसभा चुनावों में इसे एक चुनावी हथियार की तरह पेश किया गया और बीजेपी ने इसे अपनी ‘सख्त प्रशासन’ की नीति के तौर पर प्रचारित किया। देखते ही देखते यह मॉडल मध्य प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली और अन्य बीजेपी शासित राज्यों में भी अपनाया जाने लगा।
लेकिन इस बुलडोजर नीति का पैटर्न देखने पर साफ हो जाता है कि यह एक तरफा और मनमानी कार्रवाई बन गई है, जहां कानून का पालन कम और सत्ता की ताकत का प्रदर्शन ज्यादा किया जा रहा है।
बीजेपी सरकार का बुलडोजर किन लोगों पर चला?
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गरीब और झुग्गी वालों पर: बुलडोजर की सबसे ज्यादा मार गरीबों पर पड़ी है। कई राज्यों में झुग्गी-झोपड़ियों को बिना नोटिस दिए तोड़ा गया, जिससे हजारों लोग बेघर हो गए।
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विपक्षी नेताओं पर: कई मौकों पर देखा गया है कि बीजेपी के विरोधियों को निशाना बनाने के लिए बुलडोजर का इस्तेमाल किया गया।
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अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया: बुलडोजर कार्रवाई में अक्सर मुस्लिम इलाकों या उनके घरों-दुकानों को तोड़ा गया। जहां दंगे हुए, वहां सिर्फ एक समुदाय के लोगों पर कार्रवाई की गई, जबकि बीजेपी के समर्थक खुलेआम बचे रहे।
क्या बुलडोजर कार्रवाई कानूनी है?
संविधान के अनुसार, किसी भी संपत्ति को ध्वस्त करने से पहले कानूनी प्रक्रिया का पालन करना जरूरी है। इसमें शामिल हैं:
- नोटिस देना (कम से कम 15 दिन पहले)
- सुनवाई का अवसर देना
- संपत्ति मालिक को अदालत में अपील करने का हक
लेकिन बीजेपी शासित राज्यों में प्रशासन ने बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के लोगों के घरों-दुकानों को गिरा दिया। यह संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) का खुला उल्लंघन है।
सुप्रीम कोर्ट की फटकार और बीजेपी सरकार की मनमानी
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को बुलडोजर कार्रवाई पर कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने साफ कहा कि बिना नोटिस और कानूनी प्रक्रिया के किसी का घर गिराना ‘न्यायिक हत्या’ के समान है।
इसके बावजूद बीजेपी सरकारें अपनी बुलडोजर नीति को जारी रखे हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद भी प्रशासन मनमानी कार्रवाई कर रहा है, जिससे यह साफ हो जाता है कि यह कानून का नहीं बल्कि तानाशाही का खेल है।
बीजेपी की राजनीति: कानून या बदले की भावना?
बीजेपी का बुलडोजर मॉडल अपराध नियंत्रण से ज्यादा राजनीतिक बदले की भावना का प्रतीक बन चुका है।
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चुनावी रणनीति: चुनावों में बीजेपी इसे अपनी उपलब्धि बताकर वोट मांगती है।
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ध्रुवीकरण: खास समुदाय को निशाना बनाकर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण किया जाता है।
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डर का माहौल: विपक्षी नेताओं और कार्यकर्ताओं को डराने के लिए इसे एक राजनीतिक हथियार बनाया गया है।
क्या देश को इस बुलडोजर राज की जरूरत है?
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अगर अवैध निर्माण हटाना है तो सभी पर समान रूप से कार्रवाई होनी चाहिए, न कि केवल बीजेपी के विरोधियों या एक समुदाय पर।
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कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना कोई भी सरकार मनमानी नहीं कर सकती।
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प्रशासन को कानून के दायरे में रहकर काम करना चाहिए, न कि किसी पार्टी की राजनीति का औजार बनना चाहिए।
निष्कर्ष: क्या बीजेपी का बुलडोजर लोकतंत्र के लिए खतरा है?
बीजेपी सरकारों द्वारा अपनाई गई बुलडोजर नीति कानून और लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा है। यह न्याय की जगह बदले की भावना, कानून के शासन की जगह सत्ता की तानाशाही और लोकतंत्र की जगह डर और दमन को बढ़ावा देती है। सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी के बावजूद अगर यह नीति जारी रही, तो भारत के लोकतांत्रिक ढांचे पर बड़ा सवाल खड़ा हो जाएगा।
