रायपुर, छत्तीसगढ़: छत्तीसगढ़ राज्य सूचना आयोग की एक नही सैकड़ों गंभीर अनियमितता सामने आई है, जिसमें जन सूचना अधिकारी श्री नरेंद्र गुप्ता कुदरगढ़ और आयोग के बीच मिलीभगत के आरोप लगे हैं। आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी को लेकर अपीलार्थी को गुमराह करने और सुनवाई में देरी करने के इस प्रकरण ने आयोग की निष्पक्षता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। खास बात यह है कि श्री नरेंद्र गुप्ता अभी सेवानिवृत्त नहीं हुए हैं, लेकिन जल्द ही रिटायर होने वाले हैं, और उन्होंने सुनवाई में अनुचित देरी करवाई।
मामले की पृष्ठभूमि
अपीलार्थी ने वन विभाग से संबंधित कई महत्वपूर्ण दस्तावेजों की मांग की थी, जिसमें अब्दुल सलाम कादरी द्वारा प्रमानको की प्रति शामिल थे। ये आदेश निम्नलिखित प्रकरण क्रमांक के तहत मांगे गए थे:
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A/2949/2023/मनेन्द्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर – वनपरिक्षेत्राधिकारी, कुदरगढ़ वनमंडल सूरजपुर
- A/3132/2023/मनेन्द्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर – वनपरिक्षेत्राधिकारी, गौरेला वनमंडल मरवाही
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A/3181/2021/कोरिया – वनपरिक्षेत्राधिकारी, खोडरी वनमंडल मरवाही
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A/3180/2021/कोरिया – वनपरिक्षेत्राधिकारी, खोडरी वनमंडल मरवाही
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A/2946/2023/मनेन्द्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर – वनपरिक्षेत्राधिकारी, कुदरगढ़ वनमंडल सूरजपुर
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A/2947/2023/मनेन्द्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर – वनपरिक्षेत्राधिकारी, कुदरगढ़ वनमंडल सूरजपुर
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A/2948/2023/मनेन्द्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर – वनपरिक्षेत्राधिकारी, कुदरगढ़ वनमंडल सूरजपुर
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A/2945/2023/मनेन्द्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर – वनपरिक्षेत्राधिकारी, कुदरगढ़ वनमंडल सूरजपुर
इन सूचनाओं को समय पर उपलब्ध न कराकर जन सूचना अधिकारी श्री नरेंद्र गुप्ता ने सुनवाई को टालने की कोशिश की है।
मिलीभगत के संकेत
सूत्रों के अनुसार, श्री गुप्ता ने राज्य सूचना आयोग के कुछ अधिकारियों से सांठगांठ कर सुनवाई को जानबूझकर अपने रिटायरमेंट के बाद रखा। यह संदेहास्पद है कि किसी अपील की सुनवाई को तब तक लंबित रखा जाए जब तक कि अधिकारी सेवा मुक्त होने के करीब न पहुंच जाए।
- सुनवाई में अनावश्यक देरी क्यों की जा रही है ?
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क्या सूचना आयोग में भ्रष्टाचार की गहरी जड़ें हैं?
इन सवालों के जवाब अब तक नहीं मिले हैं, लेकिन यह मामला सूचना आयोग की पारदर्शिता और विश्वसनीयता पर गहरा असर डाल रहा है।
सूचना आयोग की भूमिका संदिग्ध
सूचना आयोग के कुछ उच्चाधिकारियों पर आरोप है कि उन्होंने जानबूझकर इस मामले को टालने और सुनवाई को श्री गुप्ता के रिटायरमेंट के बाद करवाने में सहयोग किया। इससे यह स्पष्ट होता है कि आयोग में पारदर्शिता की भारी कमी है और यह भ्रष्टाचार से ग्रसित हो सकता है।
अपीलार्थी की प्रतिक्रिया
अपीलार्थी ने इस मामले को लेकर उच्च अधिकारियों से शिकायत दर्ज करवाई है और निष्पक्ष जांच की मांग की है। उन्होंने कहा कि “यह एक गंभीर मामला है, जो सूचना के अधिकार अधिनियम की मूल भावना के खिलाफ जाता है। यदि सुनवाई को इस तरह से रिटायरमेंट के बाद लाया जाता है, तो पारदर्शिता का कोई अर्थ नहीं रह जाता।”
क्या होगी आगे की कार्रवाई?
इस मामले के सामने आने के बाद, राज्य सरकार और सूचना आयोग पर दबाव बढ़ गया है। सामाजिक कार्यकर्ताओं और आरटीआई कार्यकर्ताओं ने इस मामले की उच्चस्तरीय जांच की मांग की है। यदि इस मामले में कोई अनियमितता पाई जाती है, तो यह सूचना आयोग के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकता है।
निष्कर्ष: यह घटना सिर्फ एक अपवाद नहीं है, बल्कि यह दर्शाती है कि कैसे सूचना का अधिकार अधिनियम, जिसे पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया था, अब भ्रष्टाचार और मिलीभगत का शिकार हो रहा है। यह आवश्यक है कि इस मामले की निष्पक्ष जांच हो और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हो सकें।
