राज्यसभा ने वक़्फ़ संशोधन विधेयक, 2025 को तीखी बहस के बाद पारित किया, जिसमें विपक्ष ने इसे मुस्लिम विरोधी और अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर हमला बताया. भाजपा ने इसे पारदर्शिता बढ़ाने वाला बताया. डीएमके ने विधेयक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने का ऐलान किया है.
नई दिल्ली: राज्यसभा में वक्फ संशोधन विधेयक, 2025 पारित करने के लिए लगातार दूसरे दिन संसद आधी रात के बाद भी चली. यह विधेयक 4 अप्रैल की सुबह 2:35 बजे 128 वोटों के समर्थन और 95 विरोधी वोटों के साथ पारित हुआ. लोकसभा में यह 3 अप्रैल को रात 2 बजे 288 समर्थन और 232 विरोधी वोटों के साथ पास हुआ था.
विपक्ष का विरोध
गुरुवार (3 अप्रैल) को कई विपक्षी सांसदों ने काले कपड़े पहनकर विधेयक के विरोध में प्रदर्शन किया. हालांकि, भाजपा की सहयोगी पार्टियों – तेलुगु देशम पार्टी (तेदेपा) और जनता दल (यूनाइटेड) (जदयू) ने राज्यसभा में भी विधेयक का समर्थन किया. दूसरी ओर, बीजू जनता दल (बीजद) और वाईएसआर कांग्रेस (वाईएसआरसीपी) ने विरोध तो किया, लेकिन अपने सांसदों को मतदान के लिए स्वतंत्र छोड़ दिया.
विधेयक पर संसद में तीखी बहस
लोकसभा में चर्चा बिना रुकावट चली, लेकिन राज्यसभा में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तीखी बहस हुई. विपक्षी सांसदों ने इस विधेयक को ‘मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक बनाने की साजिश’, ‘अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर हमला’ और ‘जमीन हड़पने की योजना’ बताया. वहीं, सत्ता पक्ष ने कहा कि यह विधेयक वक्फ संपत्तियों के प्रशासन में पारदर्शिता लाने के लिए लाया गया है.
केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू का बयान
अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरन रिजिजू ने कहा कि इस विधेयक का धर्म से कोई लेना-देना नहीं है, बल्कि यह सिर्फ वक्फ संपत्तियों के प्रशासन से जुड़ा है. उन्होंने कहा, ‘यह कहना गलत है कि मुसलमानों को नुकसान होगा. यह विधेयक असंवैधानिक या अवैध नहीं है.’
कांग्रेस ने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का लगाया आरोप
कांग्रेस सांसद सैयद नसीर हुसैन ने कहा कि 1995 के वक्फ कानून और 2013 में किए गए संशोधनों का भाजपा ने समर्थन किया था, लेकिन अब अचानक इसे ‘जनविरोधी’ बताकर संशोधन क्यों लाया जा रहा है? उन्होंने आरोप लगाया कि ‘भाजपा 2024 के लोकसभा चुनाव में 400 सीटों का दावा कर रही थी, लेकिन 240 सीटों पर ही सिमट गई. अब यह बिल लाकर वे वोट बैंक वापस लाना चाहते हैं.
विपक्षी सांसदों का सवाल – यह संशोधन क्यों लाया गया?
विपक्ष के वरिष्ठ सांसद कपिल सिब्बल ने पूछा कि इस विधेयक में केवल मुसलमानों को ही वक्फ संपत्ति दान करने की अनुमति क्यों दी गई है. ‘अगर मेरी संपत्ति है और मैं इसे धर्मार्थ दान करना चाहता हूँ, तो आप मुझे रोकने वाले कौन होते हैं?’
इस पर सत्ता पक्ष ने आपत्ति जताई, जब सिब्बल ने यह भी कहा कि ‘देश में 8 लाख एकड़ वक्फ संपत्ति है, जबकि केवल चार दक्षिणी राज्यों (तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक) में हिंदू धार्मिक संपत्तियों का क्षेत्रफल 10 लाख एकड़ है.’
‘सरकार अल्पसंख्यकों की आर्थिक-सामाजिक स्थिति सुधारने में विफल’
कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि अल्पसंख्यक मंत्रालय के बजट में कटौती की गई है और अल्पसंख्यकों की शिक्षा और आर्थिक सशक्तिकरण के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए.
उन्होंने कहा, ‘आप मदरसों की शिक्षा, फ्री कोचिंग, मौलाना आज़ाद स्कॉलरशिप जैसी योजनाओं को बंद कर रहे हैं और फिर भी कह रहे हैं कि आप अल्पसंख्यकों के हित में काम कर रहे हैं?’
‘क्या घरों और मस्जिदों में सीसीटीवी लगाए जाएंगे?’
कांग्रेस सांसद सैयद नसीर हुसैन ने विधेयक के उस प्रावधान का विरोध किया, जिसमें वक्फ संपत्ति दान करने वाले व्यक्ति को कम से कम पांच वर्षों से इस्लाम का पालन करने वाला होना अनिवार्य बताया गया है.
उन्होंने तंज कसते हुए पूछा, ‘अब यह कैसे साबित किया जाएगा कि मैं मुस्लिम हूं? क्या मुझे टोपी पहननी होगी, दाढ़ी रखनी होगी? क्या मेरे घर में और मस्जिदों में सीसीटीवी लगाए जाएंगे?’
‘क्या यह विधेयक बुलडोज़र राजनीति को कानूनी जामा पहनाने का प्रयास है?’
आरजेडी सांसद मनोज झा ने राज्यसभा में इस विधेयक पर बहस के दौरान कहा कि अगर इस विधेयक के जरिए गैर-मुसलमानों को शामिल किया जा रहा है, तो धर्मनिरपेक्षता की यह भावना अन्य धर्मों तक भी बढ़ाई जानी चाहिए.
उन्होंने सवाल किया, ‘अगर आप सच में धर्मनिरपेक्षता की इस भावना को पूरे देश में फैलाते हैं और हर धार्मिक संस्था में अन्य धर्मों को भी शामिल करते हैं—चाहे वह सिख, मुस्लिम या ईसाई हों—तो मैं आपकी सराहना करूंगा. या फिर आपने यह तय कर लिया है कि सारा सहयोग केवल मुसलमानों के जरिए ही होगा?’
उन्होंने आगे आरोप लगाया कि यह विधेयक ‘बुलडोज़र राजनीति को कानूनी जामा पहनाने का प्रयास’ भी हो सकता है.
उन्होंने चिंता जताते हुए कहा, ‘क्या यह विधेयक बुलडोज़र के लिए कानूनी सुरक्षा कवच तैयार कर रहा है? यह बात मुझे एक नागरिक के रूप में डराती है. शहरों में मुस्लिम घेटो में रहने को मजबूर हैं, अगर वे गांवों में जाते हैं तो उन्हें घुसपैठिया कहा जाता है. उनके संगठन संदेह के घेरे में रखे जाते हैं और उन्हें षड्यंत्रकारी बताया जाता है. लोगों को अलग-थलग करने के लिए डॉग-व्हिसल राजनीति का इस्तेमाल करना सही नहीं है.’
सरकार का जवाब
केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने सफ़ाई देते हुए कहा कि केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर-मुसलमानों की संख्या सीमित रखी गई है और उनका हस्तक्षेप केवल सुझाव तक ही सीमित रहेगा.
उन्होंने स्पष्ट किया, ‘किसी भी धार्मिक मामलों में कोई दखल नहीं दिया जाएगा. केंद्रीय वक्फ परिषद में कुल 22 सदस्य होंगे, जिनमें से केवल चार गैर-मुस्लिम होंगे. वे सिर्फ अपनी राय दे सकते हैं, लेकिन वे बहुमत में नहीं होंगे.’
‘विधेयक वक्फ संपत्तियों को कॉर्पोरेट्स को बेचने की योजना’
कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने कहा, ‘आपने इस विधेयक का नाम ‘UMEED’ रखा है, लेकिन देश की बड़ी आबादी अब निराश है, क्योंकि आप उनकी जमीनें लूटकर कॉरपोरेट्स को बेचने की योजना बना रहे हैं.’
विपक्ष ने वक्फ संपत्तियों को बदनाम किया- भाजपा सांसद
आप सांसद संजय सिंह ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि जो सरकार मुस्लिमों के सशक्तिकरण की बात कर रही है, उसकी खुद की पार्टी में लोकसभा में एक भी मुस्लिम सांसद नहीं है और राज्यसभा में केवल एक है.
उन्होंने तंज कसते हुए कहा, ‘सरकार कह रही है कि हम यह कानून मुस्लिमों के भले के लिए ला रहे हैं, लेकिन आपकी पार्टी में एक भी मुस्लिम सांसद नहीं है, सिर्फ एक—गुलाम अली हैं. आपने मुख्तार अब्बास नक़वी और शाहनवाज हुसैन की राजनीति ही खत्म कर दी. क्या आप सच में मुस्लिमों का भला कर रहे हैं?’
भाजपा के इकलौते मुस्लिम सांसद गुलाम अली, जो जम्मू-कश्मीर से नामित सदस्य हैं, ने आधी रात के करीब इस विधेयक पर बहस में हिस्सा लिया और कांग्रेस पर वक्फ कानून में ऐसे प्रावधान जोड़ने का आरोप लगाया, जिनसे मुसलमानों की बदनामी हुई और अतिक्रमण को बढ़ावा मिला.
उन्होंने कांग्रेस पर हमला करते हुए कहा, ‘आपने वक्फ अधिनियम में ऐसी धाराएं जोड़ीं, जिनसे मुसलमानों को बदनाम करने की साजिश हुई.’
संशोधनों के खिलाफ कोर्ट जाएगी डीएमके
गुरुवार (3 मार्च) को स्टालिन विधानसभा में काला बैज पहनकर पहुंचे और लोकसभा में विधेयक पारित होने के खिलाफ प्रदर्शन किया. उन्होंने ऐलान किया कि तमिलनाडु सरकार इस विधेयक को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी.
स्टालिन ने सदन में कहा, ‘यह अधिनियम धार्मिक सौहार्द को बाधित करता है. इसे उजागर करने के लिए हम आज काला बैज पहनकर विधानसभा में भाग ले रहे हैं.’ उन्होंने आगे कहा, ‘डीएमके की ओर से इस विवादास्पद संशोधन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की जाएगी. तमिलनाडु इस केंद्रीय कानून के खिलाफ लड़ेगा, क्योंकि यह वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता को कमजोर करता है और अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के लिए खतरा है.’
डीएमके का संसद में विरोध
राज्यसभा में डीएमके सांसद तिरुचि शिवा ने भी सरकार पर हमला बोला और आरोप लगाया कि भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार जानबूझकर मुस्लिम समुदाय को निशाना बना रही है.
‘एक विशेष समुदाय को निशाना क्यों बनाया जा रहा है? सरकार की मंशा दुर्भावनापूर्ण और निंदनीय है. वे ‘सबका साथ, सबका विश्वास‘ की बात करते हैं, लेकिन मुस्लिमों के लिए उनकी नीति भेदभाव और हाशिए पर धकेलने की है. यह संविधान के खिलाफ है.’
स्टालिन का प्रधानमंत्री मोदी को पत्र
जब लोकसभा में इस विधेयक पर बहस के चल रही थी उसी दौरान सीएम स्टालिन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र भेजकर वक्फ संशोधन विधेयक का विरोध किया थी.
उन्होंने लिखा, ‘भारतीय संविधान प्रत्येक नागरिक को अपने धर्म का पालन करने का अधिकार देता है और निर्वाचित सरकारों का कर्तव्य है कि वे इस अधिकार की रक्षा करें. लेकिन प्रस्तावित संशोधन अल्पसंख्यकों को दी गई संवैधानिक सुरक्षा को नजरअंदाज करता है. यह मुस्लिम समुदाय के हितों को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाएगा.’
तमिलनाडु विधानसभा में विधेयक के खिलाफ प्रस्ताव
स्टालिन ने 27 मार्च को तमिलनाडु विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित कराया, जिसमें इस विधेयक को देश की धार्मिक सौहार्द और मुस्लिम समुदाय के लिए हानिकारक बताया गया.
