नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (8 अप्रैल, 2025) को अपने विशेष अधिकारों का उपयोग करते हुए घोषणा की कि तमिलनाडु के राज्यपाल आर.एन. रवि द्वारा दो से पांच साल तक रोके गए 10 विधेयकों को स्वीकृत माना जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जे. बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने राज्यपाल की कार्रवाई को ‘गलत’ और ‘अवैध’ करार दिया क्योंकि ये विधेयक पहले ही तमिलनाडु विधानसभा में पुनर्विचार के बाद पारित हो चुके थे.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, यह फैसला कम से कम पांच अन्य राज्यों में चल रहे इसी तरह के विवादों को प्रभावित कर सकता है.
राज्यपालों को समय-सीमा तय करने का निर्देश
इस फैसले में कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि राज्यपालों को उनके पास भेजे गए विधेयकों पर फैसला लेने के लिए एक निर्धारित समयसीमा का पालन करना होगा. अगर राज्यपाल किसी विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ भेजना चाहते हैं, तो उन्हें इसे एक महीने के भीतर करना होगा.
अगर राज्यपाल राज्य सरकार की सलाह के खिलाफ जाकर कोई फैसला लेते हैं, तो उन्हें या तो विधेयक को तीन महीने के भीतर पुनर्विचार के लिए वापस भेजना होगा या राष्ट्रपति को विचारार्थ सौंपना होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी दोहराया कि राज्यपाल लोकतांत्रिक रूप से पारित विधेयकों को रोकने के लिए गेटकीपर का काम नहीं कर सकते.
इसका अन्य राज्यों पर क्या असर होगा?
तमिलनाडु ही एकमात्र ऐसा राज्य नहीं है जिसने अपने राज्यपाल की कार्यवाही के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. इसी तरह पंजाब, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल और केरल ने भी अपने-अपने राज्यपालों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. ये सभी राज्य भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विरोधी दलों द्वारा शासित हैं.
केरल
केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने कहा कि राज्य में ऐसी अभूतपूर्व स्थिति है, जहां विधानसभा द्वारा पारित विधेयक 23 महीने तक राज्यपाल के पास लंबित रहे. फिलहाल, 6 विधेयक राज्यपाल राजेंद्र आर्लेकर के पास लंबित हैं.
केरल सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील के. के. वेणुगोपाल ने 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में दलील दी, जिसके बाद अदालत ने इस मामले को 13 मई तक स्थगित कर दिया.
पश्चिम बंगाल
पश्चिम बंगाल सरकार ने जुलाई 2024 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें राज्यपाल सी. वी. आनंद बोस और उनके पूर्ववर्ती जगदीप धनखड़ (जो अब भारत के उपराष्ट्रपति हैं) पर 8 विधेयकों को रोकने का आरोप लगाया गया.
इनमें से 7 विधेयक राज्यपाल को विश्वविद्यालयों के प्रशासन से हटाने से संबंधित थे. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सरकार चाहती थी कि राज्यपाल की जगह मुख्यमंत्री या शिक्षा मंत्री को यह जिम्मेदारी दी जाए.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए पश्चिम बंगाल के संसदीय मामलों के मंत्री सोभांदेब चट्टोपाध्याय ने कहा कि यह आदेश राज्य सरकार के रुख को सही ठहराता है.
तेलंगाना
तेलंगाना सरकार ने 2 मार्च, 2023 को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर तत्कालीन राज्यपाल तमिलिसाई सुंदरराजन पर 10 विधेयकों को रोकने का आरोप लगाया. सुनवाई के दिन राज्यपाल ने अचानक 3 विधेयकों को मंजूरी दे दी, 2 को राष्ट्रपति के पास भेज दिया और 1 को खारिज कर दिया.
पंजाब
पंजाब सरकार ने अक्टूबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और तत्कालीन राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित पर 4 विधेयकों को रोके रखने का आरोप लगाया.
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल को फटकार लगाते हुए कहा कि लोकतंत्र में असली शक्ति निर्वाचित प्रतिनिधियों के पास होती है, न कि राज्यपाल के पास. बाद में, राज्यपाल ने 3 विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेजा और 1 को मंजूरी दी.
कर्नाटक
कर्नाटक सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया. मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की सरकार राज्यपाल थावर चंद गहलोत से नाराज थी, जिन्होंने सहकारिता क्षेत्र से जुड़े विधेयकों को रोक दिया था.
7 महीने की देरी के बाद राज्यपाल ने सरकार से स्पष्टीकरण मांगा, लेकिन फरवरी 2025 में 2 विधेयकों को खारिज कर दिया.
तमिलनाडु के 10 विधेयक कौन-कौन से हैं?
राज्यपाल रवि के ‘अनावश्यक विलंब’ और सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसलों की ‘उपेक्षा’ के कारण, अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए इन 10 विधेयकों को स्वतः स्वीकृत घोषित कर दिया.
तमिलनाडु सरकार ने जनवरी 2020 से अप्रैल 2023 के बीच राज्यपाल को 12 विधेयक भेजे थे, जिनमें से ज्यादातर राज्य विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति से जुड़े थे. लेकिन राज्यपाल ने इन्हें मंजूरी नहीं दी.
नवंबर 2023 में जब तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, तो राज्यपाल ने जल्दबाजी में दो विधेयक राष्ट्रपति के पास भेज दिए और बाकी 10 विधेयकों को खारिज कर दिया. इसके बाद, तमिलनाडु विधानसभा ने 18 नवंबर 2023 को इन 10 विधेयकों को दोबारा पारित किया और फिर से राज्यपाल को भेजा, लेकिन उन्होंने सभी 10 विधेयकों को राष्ट्रपति को भेज दिया.
बाद में, राष्ट्रपति ने इनमें से 1 विधेयक को मंजूरी दी, 7 को अस्वीकार कर दिया और 2 पर कोई निर्णय नहीं लिया.
अब, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद, ये 10 विधेयक स्वीकृत माने जाएंगे:
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तमिलनाडु मत्स्य विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2020
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तमिलनाडु पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2020
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तमिलनाडु विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक, 2022
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तमिलनाडु सिद्ध चिकित्सा विश्वविद्यालय विधेयक, 2022
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तमिलनाडु डॉ. एम.जी.आर. चिकित्सा विश्वविद्यालय, चेन्नई (संशोधन) विधेयक, 2022
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तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2022
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तमिल विश्वविद्यालय (द्वितीय संशोधन) विधेयक, 2022
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तमिलनाडु विश्वविद्यालय कानून (द्वितीय संशोधन) विधेयक, 2022
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तमिलनाडु सिद्ध चिकित्सा विश्वविद्यालय विधेयक, 2022
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तमिलनाडु मत्स्य विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2023
