May 23, 2025 7:55 pm

कामरा केस: सीसीटीवी व प्रत्यक्षदर्शियों का ख़ुलासा- पुलिस के सामने भीड़ ने की थी तोड़फोड़

मुंबई: कुणाल कामरा मामले में द वायर की पड़ताल में एक चौंकाने वाला नए खुलासे में पता चला है कि मुंबई के पुलिस अधिकारी शिवसेना नेताओं की उस भीड़ के साथ थे, जिसने दो हफ्ते पहले मुंबई के ‘द हैबिटेट’ कॉमेडी क्लब में तोड़फोड़ की थी.

द वायर की जांच, जिसमें आयोजन स्थल से क्लोज्ड-सर्किट टेलीविजन (सीसीटीवी) फुटेज की समीक्षा भी शामिल है, एक भयावह सच को उजागर करती है. इसके अनुसार, जब उपद्रवियों ने क्लब में तोड़फोड़ की, तो पुलिस अधिकारी मूकदर्शक बने रहे, उन्होंने हिंसा को रोकने का कोई प्रयास नहीं किया.

सूत्रों ने बताया कि फुटेज फिलहाल खार पुलिस के पास है, जो इस पूरी हिंसा की जांच के तहत इसकी समीक्षा कर रही है.

द वायर ने घटना के दौरान मौजूद दो प्रत्यक्षदर्शियों से भी बातचीत की, जिन्होंने पुष्टि की कि उन्होंने क्लब के अंदर और बाहर कम से कम आठ से दस पुलिस अधिकारियों को देखा था, जो भीड़ द्वारा हमला किए जाने के दौरान मूकदर्शक बने वहीं खड़े थे.

प्रत्यक्षदर्शियों ने डर के चलते अपनी पहचान सार्वजनिक रूप से उजागर नहीं करने का फैसला किया. हालांकि, द वायर इस फुटेज की स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं कर सकता, लेकिन दो प्रत्यक्षदर्शियों ने इसकी पुष्टि की है.

प्रत्यक्षदर्शियों ने यह भी पुष्टि की कि जब भीड़ ने क्लब और यूनिकॉन्टिनेंटल होटल के प्रवेश द्वार को नुकसान पहुंचाया, तब होटल के बाहर पुलिस की एक वैन मौजूद थी. प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि जब भीड़ ने क्लब को नुकसान पहुंचाया, तो पुलिस ने उन्हें ‘जय श्री राम’ के नारे लगाते हुए जाने दिया.

एक प्रत्यक्षदर्शी ने द वायर को बताया कि उन्होंने घटनास्थल से कुछ मीटर दूर सड़क पर दो पुलिसकर्मियों को ‘आराम से चाय पीते’ देखा, जबकि भीड़ हैबिटेट में तोड़फोड़ कर रही थी.

प्रत्यक्षदर्शी ने कहा, ‘हमें नहीं पता था कि पुलिस वहां हमारी रक्षा करने के लिए थी या भीड़ का साथ देने के लिए.’

एक अन्य प्रत्यक्षदर्शी ने कहा कि उन्हें याद है कि पुलिसकर्मी वहां ‘असहाय’ खड़े थे.

दूसरे प्रत्यक्षदर्शी ने द वायर को बताया, ‘पुलिस ने किसी भी स्तर पर हस्तक्षेप नहीं किया. मुझे नहीं पता कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि वे हस्तक्षेप करने के लिए तैयार नहीं थे, या वे हस्तक्षेप नहीं करना चाहते थे.’

द वायर ने इस संबंध में मुंबई पुलिस के संयुक्त आयुक्त (कानून एवं व्यवस्था) सत्यनारायण चौधरी के साथ-साथ स्थानीय पुलिस उपायुक्त (जोन 9) दीक्षित गेदाम को कई संदेश के जरिये संपर्क की कोशिश की है.

हालांकि, यह नया साक्ष्य घटना के प्रति पुलिस की प्रतिक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े करता है, खासकर राजनीतिक संबंधों को देखते हुए. महाराष्ट्र राज्य सरकार और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार दोनों में एक महत्वपूर्ण सहयोगी शिवसेना का क्लब पर हमला करने वाली भीड़ से सीधा संबंध है.

क्या था मामला

मालूम हो कि महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री और शिवसेना प्रमुख एकनाथ शिंदे ने इस हिंसा को एक कार्रवाई की ‘प्रतिक्रिया’ कहकर उचित ठहराया था. फुटेज और प्रत्यक्षदर्शियों ने पुलिस के उस बयान का भी खंडन किया, जिसके तहत एफआईआर में कहा गया है कि पुलिस अधिकारियों ने भीड़ को रोकने की बार-बार कोशिश की थी.

ज्ञात हो कि 23 मार्च को शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के सदस्यों की भीड़ ने कॉमेडियन कुणाल कामरा के शो के विरोध में क्लब के परिसर में तोड़फोड़ की थी, जिसमें शिंदे के खिलाफ कथित तौर पर कटाक्ष किया गया था. यह शो को हफ़्तों पहले हैबिटेट में रिकॉर्ड किया गया था.

हालांकि, मुंबई पुलिस ने इस संबंध में कामरा के खिलाफ़ तुरंत एफआईआर दर्ज कर ली थी, जबकि भीड़ के 19 सदस्यों के खिलाफ़ एफआईआर दर्ज करने में उन्हें कई घंटे लग गए थे और उन्होंने केवल 12 लोगों को गिरफ्तार किया, जिन्हें कुछ घंटों बाद उन्हें रिहा भी कर दिया गया.

इस मामले में कुणाल कामरा के खिलाफ धारा 353 (1) (बी), 353 (2) और 356 (2) के तहत एफआईआर दर्ज की गई है, जिसके तहत दोषी पाए जाने पर कॉमेडियन को तीन साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं. वहीं, भीड़ के खिलाफ धारा 333, 132, 189 (2) (3), 191 के तहत एफआईआर दर्ज की गई है, जिसके तहत अधिकतम 7 साल की जेल या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं.

फुटेज में दिखा: पुलिस देखती रही, भीड़ बेफिक्र तमाशा करती रही

सीसीटीवी फुटेज से पता चलता है कि कम से कम एक पुलिसकर्मी भीड़ के साथ क्लब के अंदर घुसे और भीड़ द्वारा आयोजन स्थल पर तोड़फोड़ शुरू करने से पहले ही वहां मौजूद थे. कम से कम दो अन्य, जिनमें एक इंस्पेक्टर भी शामिल हैं, आयोजन स्थल के अंदर-बाहर आते-जाते देखे जा सकते हैं, जब भीड़ आयोजन स्थल पर तोड़फोड़ कर रही थी.

फुटेज से पता चलता है और प्रत्यक्षदर्शियों ने पुष्टि की है कि हिंसा के दौरान किसी भी पुलिसकर्मी ने कभी हस्तक्षेप नहीं किया. उनमें से किसी ने भी शिवसेना कार्यकर्ताओं को संपत्ति में तोड़फोड़ करने से रोकने की कोशिश नहीं की, न ही उन्होंने दर्शकों को बचाने की कोशिश की.

सीसीटीवी फुटेज में पुलिस की कार्रवाई में विफलता की एक स्पष्ट तस्वीर दिखाई देती है.

फुटेज में एक जगह एक हेड कॉन्स्टेबल, जो भीड़ के साथ दिखाई देते हैं, मौन खड़े होकर देखते रहते हैं कि कैसे भीड़ कर्मचारियों और दर्शकों को आतंकित कर रही है, कुर्सियां फेंकी जी रही हैं, भीड़ लाइटें तोड़ रही हैं और कार्यक्रम स्थल पर तोड़फोड़ हो रही है. लेकिन हस्तक्षेप करने की स्थिति में होने के बावजूद कॉन्स्टेबल यहां कुछ नहीं करते, यहां तक कि हिंसा बढ़ने पर कमरे से चुपके से बाहर निकल जाते हैं.

प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि पुलिस अधिकारी इतने निष्क्रिय थे कि जब भीड़ ने कार्यक्रम स्थल पर हमला किया, तब भी वे अपने रुख को लेकर भ्रमित थे.

एक चश्मदीद ने कहा, ‘हमें नहीं पता था कि पुलिस भीड़ को रोकने के लिए वहां थी या वे भीड़ के नेताओं के साथ थे.’

प्रदर्शन स्थल के अंदर लगे सीसीटीवी कैमरों में भीड़ को रात 10:23 बजे परिसर में प्रवेश करते हुए दिखाया गया है, जो एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना गुट के चुनाव चिह्न धनुष और तीर वाले भगवा गमछे पहने हुए थी.

फुटेज के मुताबिक, कुछ उपद्रवियों के घुसने के बाद वर्दी में एक पुलिसकर्मी अंदर आते है. हालांकि उसका नाम बैज दिखाई नहीं देता, लेकिन उनके कंधों पर लगा प्रतीक चिह्न बताता है कि वह हेड कॉन्स्टेबल हैं. भीड़ में से एक व्यक्ति ने कुर्सी ज़मीन पर फेंकी और भीड़ के दूसरे सदस्यों ने दर्शकों को जाने का इशारा करना शुरू कर दिया.

फुटेज में दिखाया गया है कि वे लोग दर्शकों के पास जा रहे थे और बार-बार दरवाज़े की ओर इशारा कर रहे थे. इसके बाद दर्शक, जिनमें बुजुर्ग और मध्यम आयु वर्ग की महिलाएं भी शामिल थीं, बाहर भागने लगे.

इसके बाद भी हेड कॉन्स्टेबल ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.

दर्शकों के भाग जाने के बाद हिंसा उन्माद में बदल गई. भीड़ के मुट्ठी भर सदस्यों ने कमरे में कुर्सियां फेंकना शुरू कर दिया, जबकि अन्य ने उन्हें हथियार की तरह इस्तेमाल किया, लाइटें तोड़ दीं और छत से लटके उपकरणों को नष्ट कर दिया. मेजों को पलट दिया गया और बेतहाशा तोड़-फोड़ की गई. वहां उन्हें रोकने वाला कोई नहीं थी, जिसके चलते भीड़ और बड़ी हो गई.

इस दौरान हस्तक्षेप करने के बजाय कमरे में मौजूद उक्त हेड कॉन्स्टेबल चुपचाप बाहर निकल गए और घटनास्थल से गायब हो गए, जिससे अराजकता अनियंत्रित हो गई.

तोड़फोड़ जारी रहने के दौरान ही एक अन्य पुलिसकर्मी भी क्लब के अंदर आए, लेकिन उन्होंने भी हमले को रोकने के लिए कुछ नहीं किया.

भीड़ ने कुर्सियां फेंकना, लाइटें तोड़ना जारी रखा. यहां तक कि एक कुर्सी का इस्तेमाल करके सीसीटीवी कैमरा भी तोड़ दिया गया. अधिकारी, जो अपने आस-पास टूटे हुए सामानों के ढेर के प्रति उदासीन लग रहे थे, चुपचाप खड़े रहे, उन्होंने बिल्कुल कुछ नहीं किया.

इस बीच, यूनिकॉन्टिनेंटल होटल के बाहर सीसीटीवी फुटेज में उपद्रवियों का एक नया समूह परिसर में प्रवेश करता हुआ दिखाई देता है. उनमें से एक शिवसेना नेता राहुल कनाल भी है, जो दरवाजे से अंदर घुसे थे. इसके तुरंत बैद, भीड़ ने होटल के प्रवेश द्वार और रिसेप्शन लॉबी पर हमला करना शुरू कर दिया. जब वे संपत्ति को तहस-नहस कर रहे थे, तब वहां मौजूद दो पुलिसकर्मी होटल से बाहर निकल आए, भीड़ को रोकने के लिए नहीं, बल्कि नुकसान बढ़ता हुआ देखने के लिए.

बढ़ते उपद्रव के बीच एक लंबा, दुबला पुलिस अधिकारी – जिसे इंस्पेक्टर की टोपी से आसानी से पहचाना जा सकता है – लॉबी में दाखिल हुए. लेकिन स्थिति को नियंत्रित करने के बजाय, वह बस देखते रहे कि कैसे एक उपद्रवी ने एक गमले में लगे पौधे से फ्रिज के कांच के दरवाजे को तोड़ दिया, और दूसरे ने रिसेप्शन के कंप्यूटर पर कुछ सामान फेंका.

फुटेज में एक पुलिसकर्मी को डंडा लिए, बिना किसी हस्तक्षेप के, स्थिर खड़े हुए देखा जा सकता है. वहीं, कनाल अपने समर्थकों के साथ इधर-उधर घूमते रहते हैं, जबकि इंस्पेक्टर अंततः घटनास्थल से पीछे हट जाते हैं.

इसी दौरान कुछ देर के लिए होटल के बाहर सभी उपद्रवियों को बुलाया जाता है और वे कनाल के चारों ओर खड़े हो जाते हैं, जबकि पुलिस ये सब देख रही होती है. कुछ सेकंड बाद, वे सभी वापस यूनिकॉन्टिनेंटल में घुस जाते हैं और इस बार और भी ज़्यादा जोश के साथ तोड़फोड़ जारी रखते हैं.

भीड़ के लोग कांच की अलमारियों और काउंटरों को नुकसान पहुंचाने के लिए डंडों का इस्तेमाल करना शुरू कर देते हैं, एक और कांच के कूलर पर हमला किया जाता है. पुलिस देखती रहती है. कुछ मिनट बाद, जब यह जगह पूरी तरह से तबाह हो जाती है, तब एक हेड कॉन्स्टेबल फिर से आते हैं और उपद्रवियों को वहां से जाने के लिए कहते हैं. वह किसी भी तरह का बल प्रयोग नहीं करते, न ही उनके पास कोई डंडा या लाठी होती है.

वह धीरे-धीरे भीड़ के पीछे चलते है, धीरे से दरवाज़े की ओर इशारा करते हैं और उपद्रवी बाहर निकलने लगते हैं. भले ही पुलिसकर्मी प्रवेश द्वार पर इंतज़ार कर रहे हों, लेकिन उनमें से कोई भी उपद्रवियों को पकड़ने की कोशिश नहीं करता.

चश्मदीदों ने बताया भीड़ ने ‘जय श्री राम’ के नारे लगाए, जैसे कोई जंग जीत कर आए हों

दोनों चश्मदीद, जिन्होंने भीड़ को आयोजन स्थल में प्रवेश करते और बाहर निकलते देखा, कहा कि उपद्रवी ‘विजयी भावना से भरे’ हुए दिख रहे थे, जबकि पुलिस मूक दर्शक बनी रही.

चश्मदीदों में से एक ने कहा कि उन्होंने उपद्रवियों को बाहर आते और नारे लगाते हुए सुना. उन्होंने कहा, ‘वे होटल से बाहर आते ही बार-बार ‘जय श्री राम’ के नारे लगाते रहे थे.’

उन्होंने कहा, ‘यह तब बहुत डरावना लगा: ऐसा लगा जैसे उन्होंने कुछ जीत लिया है, सिवाय इसके कि वहां पुलिसकर्मी और दर्जनों देखनेवाले थे और कोई भी कुछ नहीं कर सकता था.’

उसी चश्मदीद के अनुसार, उस समय बाहर कम से कम 5-8 पुलिसकर्मी मौजूद थे, साथ ही घटनास्थल पर एक पुलिस वैन भी खड़ी थी.

चश्मदीद ने द वायर को बताया, ‘मैंने देखा कि घटनास्थल से कुछ मीटर की दूरी पर एक चाय की दुकान पर दो पुलिस अधिकारी सड़क पर खड़े होकर शांति से चाय पी रहे थे, जबकि उपद्रवी अभी भी अंदर थे और तोड़फोड़ कर रहे थे.’

उसी प्रत्यक्षदर्शी ने कहा कि जब उन्होंने भीड़ को कार्यक्रम स्थल में घुसते देखा तो उन्हें अपनी सुरक्षा और अपनी जान का डर लगा.

प्रत्यक्षदर्शी ने कहा, ‘अगर हममें से किसी ने भी भीड़ के खिलाफ विरोध किया होता या आवाज़ उठाई होती, तो हम पर हमला हो जाता, यह तय था.’

फिर भी, उन्होंने पुलिस से संपर्क नहीं किया. उनके अनुसार, ‘आप पुलिस पर कैसे भरोसा कर सकते हैं जब आप देख सकते हैं कि वे भीड़ को रोकने के लिए कुछ भी नहीं कर रहे हैं?’

मालूम हो कि खार थाने से यूनिकॉन्टिनेंटल से चार मिनट की ड्राइव या सात मिनट की पैदल दूरी पर है.

प्रत्यक्षदर्शी ने कहा, ‘इसलिए, अगर पुलिस भीड़ को रोकना चाहती थी, तो वे आसानी से पुलिस स्टेशन से और अधिक सुरक्षा बल बुला सकते थे और भीड़ को रोक सकते थे.’

दूसरे प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि उन्होंने भीड़ को कार्यक्रम स्थल से जाते हुए देखा, जबकि पुलिस सिर्फ़ मूकदर्शक बनी रही. प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि पुलिस को निष्क्रियता से देखते हुए अन्य दर्शकों ने भी भीड़ के सामने खड़े होने की हिम्मत नहीं की.

‘मैंने एक दर्शक को अपनी दोस्त से यह कहते हुए सुना, जो भीड़ का वीडियो बनाना चाहती थी: तू बन जा क्रांतिकारी, मुझे मेरी हड्डियां प्यारी हैं.’

(कुणाल पुरोहित स्वतंत्र पत्रकारऔर एच-पॉप: द सीक्रेटिव वर्ल्ड ऑफ हिंदुत्व पॉप स्टार्स के लेखक हैं.)

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Author: Khabar 30 Din

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