बैकुंठपुर/रायपुर।अब्दुल सलाम क़ादरी
तमोर पिंगला टाइगर रिजर्व में बिना निर्माण के 1.38 करोड़ रुपये का भुगतान कर देने वाले मामले में अब सवाल उठने लगे हैं कि क्या वरिष्ठ अधिकारियों के स्तर पर यह पूरा मामला ‘मैनेज’ कर लिया गया है?
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, वन्यप्राणी के मुख्य वन संरक्षक (CCF) मनोज पांडेय और प्रधान मुख्य वन संरक्षक (PCCF) सुधीर अग्रवाल तक इस मामले में मोटी आर्थिक लेन-देन हो चुकी है, जिसके कारण शिकायत किए जाने के 25 दिन बाद भी जांच प्रतिवेदन शासन या वनबल प्रमुख को प्रस्तुत नहीं किया गया है। यह स्थिति स्वयं में एक बहुत बड़ा प्रश्नचिह्न है।
गौरतलब है कि वनबल प्रमुख श्री व्ही श्रीनिवास राव ने स्वयं इस मामले की गंभीरता को देखते हुए सौरभ ठाकुर को नोटिस जारी किया था और जवाब मांगा था। जवाब मिलने के बावजूद, न तो डीई (विभागीय जांच) की प्रक्रिया शुरू की गई और न ही कोई अनुशासनात्मक कदम उठाया गया।
सबसे गंभीर सवाल यह है कि —
IFS सौरभ ठाकुर पिछले 25 दिनों में रायपुर मुख्यालय के 5 चक्कर क्यों लगा रहे हैं?
क्या ये दौरे किसी मुलाकात, समझौते या मुआवजे के लिए थे?
जब एक DFO अधिकारी इस प्रकार मुख्यालय का चक्कर लगाता है और जांच में लगातार बाधा उत्पन्न करता है, तो यह समझना मुश्किल नहीं है कि उसके पीछे ‘कोई ताकतवर संरक्षण’ काम कर रहा है।
अब तक की स्थिति में:
जांच अधिकारी CCF मनोज पांडेय को PCCF ने तत्काल रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश दिया था।
25 दिन बीतने के बावजूद रिपोर्ट नहीं आई।
शिकायतकर्ता अब्दुल सलाम कादरी लगातार ACB व EOW में दस्तावेजी शिकायतें कर रहे हैं।

शिकायत में कहा गया है कि जांच दल को भी गुमराह कर सौरभ ठाकुर उन्हें ‘पिकनिक’ जैसी टीम बना कर बैरंग लौटा रहे हैं।
क्या सवाल खड़े होते हैं इस स्थिति में?
1. PCCF और CCF जैसे वरिष्ठ अधिकारी जब आदेश देते हैं, तो रिपोर्ट क्यों नहीं आती?
2. DFO स्तर का अधिकारी अगर आदेशों की अवहेलना कर रहा है तो अब तक विभागीय निलंबन क्यों नहीं हुआ?
3. मुख्यालय के लगातार दौरे क्या केवल ‘औपचारिक’ हैं या सिस्टम को प्रभावित करने की सोची-समझी रणनीति?
4. क्या छत्तीसगढ़ में IFS लॉबी अब विधि से ऊपर हो चुकी है?
शिकायतकर्ता की स्पष्ट मांग है कि:
- सौरभ ठाकुर को तत्काल निलंबित किया जाए।
- पूरी जांच ACB/EOW के माध्यम से कराई जाए।
- वनबल प्रमुख श्री श्रीनिवास राव और PCCF श्री सुधीर अग्रवाल की भूमिका की भी निष्पक्ष जांच हो।
अगर शासन ने समय रहते निष्पक्ष कार्रवाई नहीं की, तो यह संदेश जाएगा कि छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई केवल दिखावा मात्र है।
