अब्दुल सलाम क़ादरी-प्रधान सम्पादक (9424257566)
- कोरबा से विशेष रिपोर्ट
रायपुर/कोरबा/मरवाही – जंगल की हरियाली पर नज़र रखने वाला रेंजर ही जब गबन की फसल काटने लगे तो फिर संरक्षण की उम्मीद कहां से की जाए? मरवाही रेंजर रमेश खैरवार पर लगे गंभीर भ्रष्टाचार के आरोपों की परतें एक बार फिर सामने आ रही हैं, लेकिन सत्ता और सिस्टम की मिलीभगत ने इन्हें अब तक दफ़न कर रखा है।
वर्ष 2017 में, जब रमेश खैरवार कोरवा वन मंडल के पसरखेत रेंज में डिप्टी रेंजर थे, तब कक्ष क्रमांक 1331 में 57.108 हेक्टेयर में फेसिंग और पौधरोपण का कार्य केवल कागज़ों पर दिखाया गया। न तो साइट पर कोई काम हुआ, न सीबीओ कार्य, न ही द्वितीय वर्ष में पौधों की बदली। लेकिन भुगतान निकाल लिया गया — प्रमाणक बनाकर लाखों रुपये की सरकारी राशि का गबन कर लिया गया।
यह मामला विधानसभा तक पहुंचा। 12 जुलाई 2019 को रामपुर विधायक ननकी राम कंवर ने प्रश्न क्रमांक 334 के ज़रिए इसे सदन में उठाया, पर कार्रवाई के नाम पर केवल दिखावा हुआ। कोरबा डीएफओ एस. गुरुनाथन और एसडीओ आशीष खैरवार ने तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर जांच को गुमराह किया और आरोपी रेंजर को क्लीनचिट दिलवा दी।
मरवाही में भी ऐसे ही कई प्रकरण हैं, जहां भ्रष्टाचार की परतें जांच के नाम पर रफा-दफा कर दी गईं। सवाल यह है कि क्या राज्य की भाजपा सरकार “भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन” के अपने दावे में खरी उतर रही है या फिर भ्रष्ट अफसरों को राजनीतिक छत्रछाया में संरक्षण दिया जा रहा है?
क्या यह दोहरी नीति नहीं?
एक ओर मुख्यमंत्री मंचों से पारदर्शिता की बातें करते हैं, दूसरी ओर भ्रष्ट अधिकारियों पर कार्रवाई की बजाय उन्हें बचाया जा रहा है। क्या सरकार जवाब देगी कि रमेश खैरवार जैसे अफसरों पर ठोस कार्रवाई कब होगी? या फिर भ्रष्टाचार के जंगल में इसी तरह झूठी हरियाली दिखती रहेगी?
- “कागज़ों में उगी हरियाली, ज़मीन पर सूखा: रेंजर रमेश खैरवार ने कोरबा में लाखों की सरकारी राशि हड़पी!
छत्तीसगढ़ के वन विभाग में भ्रष्टाचार की जड़ें कितनी गहरी हैं, इसका ताज़ा उदाहरण रेंजर रमेश खैरवार के कार्यकाल से सामने आ रहा है। जब वह कोरवा वनमंडल के पसरखेत रेंज में पदस्थ थे, उस दौरान लाखों रुपये के कार्य सिर्फ कागज़ों पर दर्शा दिए गए, जबकि ज़मीनी हकीकत पूरी तरह शून्य थी। हमारे पास दर्जनों ऐसे दस्तावेज़ हैं, जो फर्जी भुगतान और भ्रष्टाचार की कहानी खुद बयान कर रहे हैं।

फर्जी कार्य, असली भुगतान!
पसरखेत के कक्ष क्रमांक 1331 (रकबा 57.108 हेक्टेयर) में पौधरोपण, फेसिंग और देखरेख के नाम पर बड़े पैमाने पर धन निकाला गया, लेकिन मौके पर न कोई पौधा, न कोई बाड़, न कोई कार्य — केवल झाड़ियों और सूखापन। वर्ष 2017 के इस कार्य के नाम पर लाखों रुपये निकाले गए, जिसकी कोई ज़मीनी पुष्टि आज तक नहीं हुई।

विधानसभा में उठा था मामला, फिर भी दबा दिया गया
रामपुर विधायक ननकीराम कंवर ने 12 जुलाई 2019 को विधानसभा प्रश्न क्रमांक 334 के तहत इस गड़बड़ी को उठाया था, परंतु तत्कालीन डीएफओ एस. गुरुनाथन और एसडीओ आशीष खैरवार ने तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर जांच को गुमराह कर दिया। नतीजतन, मुख्य आरोपी रेंजर रमेश खैरवार को क्लीनचिट मिल गई।
अब सबूत खुद बोल रहे हैं
हमारे पास उपलब्ध दस्तावेज़ों से पता चलता है कि कैसे सिर्फ कागज़ों पर व्यय प्रमाण-पत्र तैयार कर पैसे निकाले गए:
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एक दस्तावेज़ में हैंडपंप मरम्मत के नाम पर ₹9600 दिखाए गए, लेकिन कार्य का कोई विवरण, बिल या तकनीकी रिपोर्ट नहीं।
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दूसरे में हैंडपंप ड्रिलिंग के नाम पर ₹2800 — जबकि ये कार्य वास्तविक दरों के हिसाब से ₹25,000 से ₹50,000 का होता है।
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तीसरे दस्तावेज़ में ₹3000 में सीसी रोड निर्माण दर्शाया गया — जो तकनीकी रूप से असंभव है।
- ऐसे दर्जनों प्रमाणक है जो करप्शन की कहानी बयां करते है
इन दस्तावेजों में अधिकांश में एक ही हैंडराइटिंग, फर्जी हस्ताक्षर, स्थान और कार्य का स्पष्ट विवरण गायब है। यह दर्शाता है कि पूरे सिस्टम को गुमराह कर योजनाबद्ध ढंग से लाखों रुपये की सरकारी राशि का गबन किया गया।
क्या वाकई “भ्रष्टाचार मुक्त शासन” का दावा सच्चा है?
भाजपा सरकार “भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस” की बात करती है। लेकिन जब ऐसी गंभीर अनियमितताओं पर कार्रवाई नहीं होती, तो सवाल उठते हैं —
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क्या भ्रष्ट अधिकारियों को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है?
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क्या वन विभाग जानबूझकर जांच को दबा रहा है?
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क्या मुख्यमंत्री खुद इस मामले में हस्तक्षेप कर कार्रवाई का निर्देश देंगे?
जनता मांग रही है जवाबदारी
अब वक्त है कि इन दस्तावेज़ों की निष्पक्ष जांच हो और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की जाए। वरना यह मान लिया जाए कि जंगल नहीं, भ्रष्टाचार हरियाली से लहलहा रहा है।
इसी कड़ी में मरवाही और कोरबा से अगला अपडेट जल्द-
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