देश का 75वां स्वतंत्रता दिवस इस साल कुछ अलग अंदाज में मनाया जाएगा। कोरोना महामारी के चलते इस बार स्कूलों, कॉलेजों सहित सारे सरकारी, निजी संस्थानों में परेड, सांस्कृतिक आयोजन तो नहीं होंगे लेकिन देश की आजादी की वर्षगांठ को लेकर उत्साह में कमी नहीं रहेगी। इस ऑनलाइन दौर में ऑनलाइन बधाइयां दी जाएंगी और आजादी के किस्से कहे-सुने जाएंगे। यह तो सभी को पता है कि 15 अगस्त 1947 को हमें आजादी मिली लेकिन बहुत कम लोगों को पता होगा कि यह आजादी आधी रात के समय मिली थी। इसके पीछे भी एक रोचक कहानी है। www.khabar30din.com की इस विशेष पेशकश में आइये जानते हैं क्या थी इसकी वजह।
15 अगस्त 1947 ऐसे हुआ तय
यह लार्ड माउंटबेटन ही थे जिन्होंने निजी तौर पर भारत की स्वतंत्रता के लिए 15 अगस्त का दिन तय करके रखा था क्योंकि इस दिन को वे अपने कार्यकाल के लिए “बेहद सौभाग्यशाली” मानते थे। इसके पीछे खास वजह थी। असल में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान 1945 में 15 अगस्त के ही दिन जापान की सेना ने उनकी अगुवाई में ब्रिटेन के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था। माउंटबेटन उस समय संबद्ध सेनाओं के कमांडर थे। लार्ड माउंटबेटन की योजना वाली 3 जून की तारीख पर स्वतंत्रता और विभाजन के संदर्भ में हुई बैठक में ही यह तय किया गया था। 3 जून के प्लान में जब स्वतंत्रता का दिन तय किया गया और सार्वजनिक रूप से घोषित किया गया तब देश भर के ज्योतिषियों में आक्रोश पैदा हुआ क्योंकि ज्योतिषीय गणना के अनुसार 15 अगस्त 1947 का दिन अशुभ और अमंगलकारी था। विकल्प के तौर पर दूसरी तिथियां भी सुझाईं गईं लेकिन माउंटबेटन 15 अगस्त की तारीख पर ही अटल रहे, क्योंकि यह उनके लिए बेहद खास तारीख थी। आखिर समस्या का हल निकालते हुए ज्योतिषियों ने बीच का रास्ता निकाला।
अभिजीत मुहूर्त में बजा आजादी का शंखनाद
उन्होंने 14 और 15 अगस्त की मध्यरात्रि का समय सुझाया और इसके पीछे अंग्रेजी समय का ही हवाला दिया जिसके अनुसार रात 12 बजे बाद नया दिन शुरू होता है। लेकिन हिंदी गणना के अनुसार नए दिन का आरंभ सूर्योदय के साथ होता है। ज्योतिषी इस बात पर अड़े रहे कि सत्ता के परिवर्तन का संभाषण 48 मिनट की अवधि में संपन्न किया जाए हो जो कि अभिजीत मुहूर्त में आता है। यह मुहूर्त 11 बजकर 51 मिनट से आरंभ होकर 12 बजकर 15 मिनट तक पूरे 24 मिनट तक की अवधि का था। भाषण 12 बजकर 39 मिनट तक दिया जाना था। इस तय समयसीमा में ही जवाहरलाल नेहरू को भाषण देना था। एक अतिरिक्त आधा और थी वो ये कि भाषण को 12 बजने तक पूरा हो जाना था ताकि स्वतंत्र राष्ट्र के उदय पर पवित्र शंख बजाया जा सके।
जून 1948 तक ब्रिटेन को छोड़ना था भारत लेकिन हालात ऐसे बदले
इस योजना के तहत शुरुआती तौर पर ब्रिटेन से भारत तक जून 1948 तक सत्ता अंतरित किया जाना प्रस्तावित था। फरवरी 1947 में सत्ता प्राप्त करते ही लार्ड माउंटबेटन ने भारतीय नेताओं से आम सहमति बनाने के लिए तुरंत श्रृंखलाबद्ध बातचीत शुरू कर दी। लेकिन सब कुछ इतना आसान नहीं था। खासकर, तब जब विभाजन के मसले पर जिन्ना और नेहरू के बीच द्वंद की स्थिति बनी हुई थी। एक अलग राष्ट्र बनाए जाने की जिन्ना की मांग ने बड़े पैमाने पर पूरे भारत में सांप्रदायिक दंगों को भड़काया और हर दिन हालात बिगड़ते चले गए और बेकाबू होते गए। निश्चित ही इन सब की उम्मीद माउंटबेटन ने नहीं की होगी इसलिए इन परिस्थितियों ने माउंटबेटन को विवश किया वह भारत की स्वतंत्रता का दिन 1948 से 1947 तक एक साल पहले ही पूर्वस्थगित कर दें।
1945 से मिल चुके थे संकेत
1945 में दूसरे विश्व युद्ध की समाप्ति के समय ब्रिटिश आर्थिक रूप से कमज़ोर हो चुके थे और वे इंग्लैंड में स्वयं का शासन भी चलाने में संघर्ष कर रहे थे। विभिन्न स्त्रोतों की मानें तो ब्रिटिश सत्ता लगभग दिवालिया होने की कगार पर थी।महात्मा गांधी और सुभाषचंद्र बोस की गतिविधियां इसमें अहम भूमिका निभाती हैं। 1940 की शुरुआत से ही गांधी और बोस की गतिविधियों से अवाम बहुत जाग गया था, आंदोलित हो गया था और दशक के आरंभ में ही ब्रिटिश हुकूमत के लिए यह एक चिंता का विषय बन चुका था।
सेनानियों ने इस अवसर को भुनाया
इसी साल ब्रिटेन के चुनावों में लेबर पार्टी लेबर पार्टी की जीत हुई जिसे भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने हाथोहाथ लिया क्योंकि लेबर पार्टी ने भारत सहित ब्रिटेन में तत्कालीन उपनिवेश को स्वतंत्रता प्रदान करने का वायदा किया था। लिहाजा, लार्ड वॉवेल ने भारतीय नेताओं से देश की आज़ादी के बाबत वार्ता करने की पहल की और छुटपुट गतिरोधों के बावजूद इन वार्ताओं ने खासा जो़र पकड़ा। फरवरी 1947 में, सत्ता के अंतरण के लिए लार्ड माउंटबेटन को भारत का अंतिम वाइसराय नियुक्त किया गया।
अब आजादी की 75वीं सालगिरह
अब हमारे देश की आज़ादी की 75वीं सालगिरह आ रही है। इसके लिए हज़ारों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अपने जीवन का त्याग किया और लाखों ने ब्रिटिश हुकूमत को खदेड़ने के लिए लंबा संघर्ष किया ताकि वे देश को लोकतांत्रिक व्यवस्था में ला सकें। पिछले 75 वर्षों में हमारा देश जिन स्थितियों से गुज़रा उसे बदला तो नहीं जा सकता लेकिन भविष्य तो हमारे हाथों में ही है। हमें इतना भर तय करना है कि अपने अधिकारों को जान सकें और लोकतंत्र के कामों में गर्व की भावना से भागेदारी जताएं ताकि हमारा राष्ट्र सही दिशा में आगे बढ़ सके।