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समान नागरिक संहिता लागू करने पर कोई निर्णय नहीं: सरकार

अब्दुल सलाम कादरी-एडीटर इन चीफ

केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में यह भी बताया कि 22वां विधि आयोग समान नागरिक संहिता से संबंधित मामले पर विचार कर सकता है. उन्होंने बताया कि सरकार ने भारत के 21वें विधि आयोग से अनुरोध किया था, लेकिन इसकी अवधि 31 अगस्त 2018 को समाप्त हो गई.

नई दिल्ली: सरकार ने बृहस्पतिवार को संसद को बताया कि समान नागरिक संहिता लागू करने पर अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है.

केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने बृहस्पतिवार को राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में यह भी बताया कि 22वां विधि आयोग समान नागरिक संहिता से संबंधित मामले पर विचार कर सकता है.

उन्होंने बताया कि सरकार ने भारत के 21वें विधि आयोग से अनुरोध किया था कि समान नागरिक संहिता से संबंधित विभिन्न विषयों का परीक्षण करें और उस पर अपना सुझाव दें.

रिजिजू ने कहा कि लेकिन 21वें विधि आयोग की अवधि 31 अगस्त 2018 को समाप्त हो गई.

उन्होंने कहा, ‘विधि आयोग से प्राप्त जानकारी के अनुसार समान नागरिक संहिता से संबंधित मामला 22वें विधि आयोग द्वारा अपने विचार के लिए लिया जा सकेगा. अतः समान नागरिक संहिता लागू करने पर कभी कोई निर्णय नहीं लिया गया है.’

वर्तमान विधि आयोग का गठन 21 फरवरी, 2020 को किया गया था, लेकिन इसके अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति आयोग का कार्यकाल समाप्त होने से महीनों पहले पिछले साल नवंबर में की गई थी.

21वें विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता से संबंधित विभिन्न मुद्दों की जांच की और व्यापक चर्चा के लिए अपनी वेबसाइट पर ‘परिवार कानून में सुधार’ नामक एक परामर्श पत्र अपलोड किया.

मालूम हो कि समान नागरिक संहिता भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख मुद्दों में से एक रहा है. वर्ष 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में यह भाजपा के प्रमुख चुनावी वादों में शुमार था. उत्तराखंड के अलावा मध्य प्रदेश, असम, कर्नाटक और गुजरात की भाजपा सरकारों ने इसे लागू करने की बात कही थी.

उत्तराखंड और गुजरात जैसे भाजपा शासित कुछ राज्यों ने इसे लागू करने की दिशा में कदम उठाया है. नवंबर-दिसंबर 2022 में संपन्न गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में समान नागरिक संहिता को लागू करना भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रमुख मुद्दों में शामिल था.

उत्तराखंड और गुजरात की सरकारों ने समान नागरिक संहिता लागू करने पर विचार करने के लिए समितियों का गठन किया है.

उत्तराखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में समिति का गठन मई 2022 में किया गया था. दिसंबर 2022 में समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार करने वाली विशेषज्ञों की समिति का कार्यकाल छह महीने के लिए बढ़ा दिया गया था.

समान नागरिक संहिता के तहत सभी नागरिकों के तलाक, गोद लेने, उत्तराधिकार, संरक्षण आदि के मामलों को एक समान रूप से देखा जाएगा, चाहे वे किसी धर्म या लिंग के हों.

देशभर में समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए अनेक याचिकाएं शीर्ष अदालत के समक्ष लंबित हैं. केंद्र ने कहा है कि समान नागरिक संहिता का मुद्दा राज्य विधायिका के दायरे में आता है.

बीते जनवरी महीने में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड और गुजरात में समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए समितियां गठित करने के उन राज्यों की सरकारों के फैसलों को चुनौती देने वाली जनहित याचिका खारिज कर दी थी.

न्यायालय ने कहा था कि याचिका में कोई आधार नहीं है और संविधान राज्यों को इस तरह की समितियों के गठन का अधिकार देता है.

अदालत ने कहा था कि राज्यों द्वारा ऐसी समितियों के गठन को संविधान के दायरे से बाहर जाकर चुनौती नहीं दी जा सकती.

अदालत ने कहा था, ‘राज्यों द्वारा संविधान के अनुच्छेद 162 के तहत समितियां गठित करने में कुछ गलत नहीं है. यह अनुच्छेद कार्यपालिका को ऐसा करने की शक्ति देता है.’

दिसंबर 2022 में कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने राज्यसभा में कहा था समान नागरिक संहिता बनाए रखने के प्रयास में राज्यों को उत्तराधिकार, विवाह और तलाक जैसे मुद्दों को तय करने वाले व्यक्तिगत कानून बनाने का अधिकार है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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