वाशिंगटन। अमेरिका में राष्ट्रपति पद पर डोनाल्ड ट्रंप की वापसी के बाद मध्य पूर्व में भू-राजनीतिक समीकरणों में बड़ा बदलाव होने के संकेत मिल रहे है। गाजा में सीजफायर और तीन बंधकों की रिहाई के बाद ट्रंप ने घोषणा की है कि वे सऊदी अरब को अब्राहम अकॉर्ड में शामिल करने के प्रयासों को फिर से गति दूंगा। यह वही समझौता है, जिसके तहत इजरायल और अरब देशों के बीच राजनयिक संबंध सामान्य हुए थे। राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर सऊदी अरब अब्राहम अकॉर्ड का हिस्सा बनता है, तब यह मध्य पूर्व की राजनीति में एक ऐतिहासिक मोड़ होगा। सऊदी अरब ने अभी तक इजरायल को मान्यता नहीं दी है और इस पर हमेशा यह शर्त लगाई है कि इजरायल को अलग फलस्तीन देश को मान्यता देनी होगी। ट्रंप का मानना है कि अब्राहम अकॉर्ड को विस्तार देकर वे इस क्षेत्र में स्थायी शांति और सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं।
गाजा युद्ध के बाद बने नए हालात में इजरायल और सऊदी अरब के बीच समझौता भारत के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। दरअसल, भारत, अमेरिका और मध्य पूर्व के देशों के सहयोग से एक महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट, इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप कॉरिडोर (आईएमईसी), पर काम कर रहा है। यह कॉरिडोर चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) को टक्कर देने के लिए बनाया जा रहा है।
आईएमईसी के तहत, अमेरिका आर्थिक निवेश करेगा, जबकि भारत तकनीकी विशेषज्ञता और रेल परिवहन पर काम करेगा। इस परियोजना के द्वारा भारत को यूरोप से जोड़ने के लिए इजरायल के हाइफा बंदरगाह का अहम रोल निभाएगा। हाइफा पोर्ट का प्रबंधन गौतम अडानी के समूह के पास है, और उन्होंने हाल ही में इजरायल के राजदूत के साथ कॉरिडोर पर सकारात्मक बातचीत की है।
गाजा में युद्ध के कारण आईएमईसी की योजना पर संकट के बादल मंडराने लगे थे, लेकिन अब सीजफायर और ट्रंप के प्रयासों के बाद उम्मीदें फिर से बढ़ गई हैं। अगर सऊदी अरब अब्राहम अकॉर्ड का हिस्सा बनता है, तब इससे भारत को यूरोप के लिए एक सीधा और सुलभ मार्ग मिल सकेगा। ट्रंप की रणनीति केवल मध्य पूर्व में शांति स्थापित करना नहीं है, बल्कि इस क्षेत्र में अमेरिका की प्रभावी भूमिका को मजबूत करना है। विश्लेषकों का कहना है कि यह कदम ट्रंप की विदेश नीति की सफलता को चिह्नित कर सकता है, जिससे भारत समेत कई देशों को रणनीतिक लाभ मिलेगा।
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