वक़्फ़ संशोधन विधेयक राष्ट्रपति से मंज़ूरी के बाद अब क़ानून की शक्ल ले चुका है. सरकार का दावा है कि इस क़ानून के ज़रिए वो पारदर्शिता सुनिश्चित करेगी, वक़्फ़ संपत्तियों की कथित लूट रोकी जाएगी और प्रशासनिक जवाबदेही भी तय होगी.
हालांकि, विरोधी दलों और कई मुस्लिम संगठनों का आरोप है कि सरकार आख़िर एक ही धर्म में सारे सुधार लाने पर क्यों आमादा है. यह बिल उनकी नज़र में अल्पसंख्यक अधिकारों में दख़ल का मामला है.
क्या ये संशोधन वास्तव में एक सुधार का क़दम है या मुसलमानों को निशाने में रखकर उठाया गया क़दम है? क्या ये बिल भ्रष्टाचार ख़त्म करेगा और क्या वक़्फ़ बाय यूज़र को हटाने से एक धार्मिक बहस तेज़ होगी?
2013 में जिन 123 वीआईपी संपत्तियों को वक़्फ़ को दिए जाने का आरोप है, उसका मामला आख़िर क्या है और इस क़दम का बिहार की राजनीति पर कैसा असर पड़ सकता है? क्या है इस क़दम का राजनीतिक एजेंडा?
बिहार की राजनीति पर क्या होगा असर?

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बिहार में इसी साल के अंत में चुनाव होने जा रहा है. इससे ठीक पहले यह बिल बिहार की राजनीति में एक नई लकीर खींच सकता है. बिहार में मुस्लिमों का कई सीटों पर दबदबा है. यही वजह है कि पार्टी कोई भी हो, इफ़्तार पार्टी सब करते हैं.
नीरजा चौधरी कहती हैं, “मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि भाजपा ने बिहार चुनाव बीतने का इंतजार क्यों नहीं किया? टीडीपी के साथ जेडीयू को भी इस मसले पर साथ ले आई और बिहार के पसमांदा मुस्लिम जेडीयू को वोट देते आ रहे हैं.”
वो कहती हैं कि इसके मायनें ये हैं कि जेडीयू ये मान चुकी है कि मुस्लिम तबके का वोट उन्हें आने वाला नहीं है. राजद के साथ जाएगा ही जाएगा लेकिन पहले ऐसा नहीं होता था.
उन्होंने कहा, “नीतीश कुमार की प्रासंगिकता अब भी बनी हुई है क्योंकि कुछ समुदायों जैसे कुर्मी, कोइरी, महादलित और पसमांदा मुस्लिम में उनकी पकड़ बनी हुई है.”
जेडीयू ने क्यों दिया वक़्फ़ पर भाजपा का साथ?

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जनता दल यूनाइटेड के नेता राजीव रंजन ने कहा, “इस बिल को लेकर कई भ्रांतियां हैं. इसे लेकर विपक्षी दलों ने दुष्प्रचार किया है. यह विधेयक जब कानून की शक्ल लेकर धरातल पर आएगा तो कई तरह के भ्रम का निवारण स्वत: हो जाएगा.”
उन्होंने कहा कि अगर जनता दल यूनाइटेड इस बिल पर साथ है तो मुस्लिमों को कतई भी घबराने की ज़रूरत नहीं है.
उन्होंने कहा, ” इस विधेयक को नीतीश कुमार ने अगर समर्थन दिया है तो मुस्लिमों को यह यकीन रखना होगा कि यह उनके ख़िलाफ़ नहीं होगा.”
वो कहते हैं कि सवाल तो हर परिवर्तन पर ही खड़े होते हैं लेकिन संशोधनों में यह कोशिश होती है कि जहां गलतियां हुई हों उनका समाधान किया जा सके.
