November 22, 2024 10:26 pm

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मतदान केंद्र पर डाले गए मतों के रिकॉर्ड का खुलासा करने का कोई कानूनी प्रावधान नहीं-चुनाव आयोग

दिल्ली: चुनाव आयोग ने बुधवार (22 मई) को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि आयोग के लिए फॉर्म 17सी के आधार पर मतदान प्रतिशत का डेटा, या प्रत्येक मतदान केंद्र पर डाले गए मतों के रिकॉर्ड का खुलासा करने का कोई कानूनी प्रावधान नहीं है, और ऐसे खुलासे का दुरुपयोग किया जा सकता है.

चुनाव निकाय ने यह हलफनामा एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और कॉमन कॉज़ द्वारा दायर एक आवेदन के जवाब में दायर किया है, जिसमें मौजूदा लोकसभा चुनावों में मतदान प्रतिशत के डेटा के तत्काल प्रकाशन की मांग की गई है.

यह दावा करते हुए कि फॉर्म 17सी के आधार पर प्रमाणित मतदान प्रतिशत डेटा साझा करने के लिए चुनाव आयोह कानूनन बाध्य नहीं है, आयोग ने अपने हलफनामे में कहा:

‘यह प्रस्तुत किया जाता है कि उम्मीदवार या उसके एजेंट के अलावा किसी अन्य व्यक्ति को फॉर्म 17सी प्रदान करने का कोई कानूनी आदेश नहीं है. याचिकाकर्ता बीच चुनाव में एक आवेदन दायर करके एक अधिकार पाने का प्रयास कर रहा है, जबकि कानून में ऐसा कोई अधिकार नहीं है.’

अपने जवाब में, आयोग ने फॉर्म 17सी के माध्यम से मतदाता डेटा एकत्र करने के अपने कानूनी दायित्व और अपने ऐप, वेबसाइट तथा प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से मतदान डेटा के गैर-वैधानिक, ‘स्वैच्छिक प्रकटीकरण’ के बीच अंतर स्पष्ट किया.

चुनाव आयोग ने कहा, ‘इस आम सार्वजनिक खुलासे का मूल ढांचा सुविधाजनक था, जो निर्विवाद रूप से गैर-वैधानिक था और है.’ साथ ही कहा कि आयोग के ऐप पर डेटा ‘कानून सम्मत नहीं है बल्कि विभिन्न गैर-वैधानिक स्रोतों के माध्यम से हो रहे डेटा संग्रह को प्रतिबिंबित करता है.’

इसमें कहा गया है कि आईटी प्लेटफॉर्म का डेटा संग्रह करना ठीक नहीं है. इसे डेटा ऑपरेटर द्वारा फीट किया जाता है और फिर सार्वजनिक रूप से खुलासा करने के लिए आईटी प्लेटफॉर्म पर एकत्र किया जाता है.

इसमें कहा गया है कि चुनाव आयोग ने 2014 में मतदान प्रतिशत डेटा जारी करने के लिए एक आईटी प्लेटफॉर्म को स्वीकारा था.

24 मई को सुनवाई से पहले अदालत को सौंपे गए अपने हलफनामे में आयोग ने यह भी कहा कि डेटा पूरी चुनावी प्रक्रिया को नुकसान पहुंचा सकता है.

आयोग ने कहा, ‘मूल फॉर्म 17सी केवल स्ट्रांग रूम में उपलब्ध है और इसकी एक प्रति केवल उन मतदान एजेंटों के पास है जिनके इन पर हस्ताक्षर हैं. इसलिए, प्रत्येक फॉर्म 17सी और उसके धारक के बीच एक आपसी संबंध होता है. यह प्रस्तुत किया जाता है कि अविवेकपूर्ण खुलासा, वेबसाइट पर डेटा को सार्वजनिक करना तस्वीरों के साथ छेड़छाड़ करने की संभावनाओं को बढ़ा देता है, जिसमें मतगणना परिणाम भी शामिल हैं. इससे पूरी चुनावी प्रक्रिया को लेकर लोगों में व्यापक तौर पर असहज और अविश्वास की स्थिति बन सकती है.’

याचिकाकर्ताओं पर हमलावर होते हुए आयोग ने कहा कि ‘निहित स्वार्थ वाले कुछ तत्व हैं जो आधारहीन और झूठे आरोप लगाते रहते हैं, जिससे संदेह का अनुचित माहौल पैदा होता है.’ आयोग ने आगे कहा कि भ्रामक दावे करके एक दुर्भावनापूर्ण अभियान चलाया जा रहा है.

पारदर्शिता अधिकार कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज ने द वायर को बताया, ‘फॉर्म 17सी के खुलासे के संबंध में ईसीआई द्वारा एससी में दायर हलफनामा चौंकाने वाला है. रिकॉर्ड का खुलासा करने से इनकार करने के लिए इस तरह के रचनात्मक बहाने का इस्तेमाल किया जाता है. इसलिए हम आरटीआई को अलविदा कह सकते हैं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘ऐसा लगता है कि ईसीआई भूल गया है कि हमारे लोकतंत्र में लोगों को सूचना का अधिकार है! वास्तव में चुनाव संचालन नियमों का नियम 93 लोगों को फॉर्म 17सी सहित चुनाव पत्रों का निरीक्षण करने और उनकी प्रतियां मांगने की अनुमति देता है. शायद हमें आरटीआई अधिनियम की प्रतियां ईसीआई को भेजने के लिए एक अभियान चलाने की जरूरत है.’

भारद्वाज ने कहा, ‘चुनाव में सबसे महत्वपूर्ण हितधारक मतदाता होते हैं. यह अजीब बात है कि आयोग मतदाताओं को विवरण प्रकट करने का विरोध कर रहा है. चुनावी प्रक्रिया में जनता के विश्वास के लिए पारदर्शिता महत्वपूर्ण है.’

पूर्व आईएएस अधिकारी कन्नन गोपीनाथन ने भी चुनाव आयोग की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए कहा है, ‘गोपनीयता संदेह के बीज बोती है.’

बता दें कि मतदान प्रतिशत डेटा को प्रकाशित करने में देरी और अंतिम आंकड़ों और मतदान के दिन शुरू में जारी किए गए आंकड़ों के बीच विसंगतियों के लिए आयोग की व्यापक रूप से आलोचना होती रही है.

पहले चरण का अंतिम मतदान प्रतिशत जारी करने में आयोग को 11 दिन लगे, वहीं बादे तीन चरणों के अंतिम आंकड़े जारी करने में इसने चार-चार दिन का समय लिया.

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Author: Khabar 30 Din

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