नई दिल्ली. उत्तरप्रदेश के कुछ शहर के झुग्गी इलाकों में अतिक्रमण हटाने की मुहिम जारी है, लेकिन इस प्रक्रिया में कई गरीब परिवारों का भविष्य दांव पर लग रहा है। हाल ही में सामने आई एक तस्वीर ने इस सच्चाई को उजागर कर दिया, जिसमें एक मासूम बच्ची हाथ में किताबें और एक थैली लिए अपने उजड़ते घर से भागती नजर आ रही है, जबकि पीछे एक बुलडोज़र बस्तियों को जमींदोज़ कर रहा है।
यह तस्वीर सिर्फ एक पल का चित्रण नहीं, बल्कि हजारों गरीब परिवारों की हकीकत बयां करती है, जो हर दिन अपने घर, रोज़गार और बच्चों की शिक्षा बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। प्रशासन का कहना है कि ये अवैध बस्तियां सरकारी जमीन पर बसी हैं और इन्हें हटाना जरूरी है, लेकिन सवाल यह उठता है कि इन लोगों को पुनर्वास के बिना उजाड़ देना कितना न्यायसंगत है?
विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को अतिक्रमण हटाने से पहले इन गरीब परिवारों के लिए वैकल्पिक आवास और सुविधाओं की व्यवस्था करनी चाहिए। शिक्षा के अधिकार और मानवीय मूल्यों की रक्षा के बिना कोई भी विकास अधूरा है।
क्या हम विकास की कीमत समाज के सबसे कमजोर तबके से वसूल रहे हैं? यह एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब नीति-निर्माताओं को जल्द देना होगा।
