नई दिल्ली: भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) की सेंट्रल कमेटी द्वारा सरकार के समक्ष शांति वार्ता के प्रस्ताव के बाद विभिन्न मानवाधिकार एवं अन्य नागरिक संगठनों के सदस्यों ने एक पत्र जारी कर युद्धविराम और संवाद की अपील की है.
इस पत्र में लिखा है, ‘हम शांति वार्ता के लिए भाकपा (माओवादी) के प्रस्ताव और छत्तीसगढ़ सरकार की प्रतिक्रिया—जिसमें वार्ता के लिए दरवाज़ा खुला रखने की बात कही गई है—का स्वागत करते हैं.’
पत्र आगे कहता है, ‘सरकार को ज़मीन पर चल रहे युद्ध को तुरंत रोककर अपनी मंशा को स्पष्ट रूप से दर्शाना होगा. हम दोनों पक्षों से अपील करते हैं कि वे आदिवासियों और अन्य ग्रामीणों के सर्वोत्तम हितों को ध्यान में रखते हुए, भारत के संविधान की रूपरेखा के अंतर्गत नागरिकों के संवैधानिक, लोकतांत्रिक और मानवाधिकारों को ध्यान में रखकर शांति वार्ता में भाग लें.’
सरकार से अपील करते हुए यह पत्र आगे कहता है, ‘संविधान की दृष्टि और भावना के अनुरूप, सरकार की यह प्रमुख जिम्मेदारी बनती है कि वह इस स्थिति को किसी बाहरी शत्रु के साथ ‘युद्ध’ के रूप में न देखे, बल्कि इसे अपने ही नागरिकों के साथ उत्पन्न एक आंतरिक टकराव के रूप में देखे. इसके लिए जरूरी है कि सरकार बिना किसी पूर्व शर्त के माओवादियों से शांति वार्ता की पहल करे.’
ज्ञात हो कि बुधवार (2 अप्रैल) को प्रतिबंधित संगठन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) की सेंट्रल कमेटी ने सरकार के समक्ष शांति वार्ता का एक प्रस्ताव रखा था. माओवादियों द्वारा यह प्रस्ताव पिछले कई वर्षों में इस तरह का पहला प्रस्ताव है.
नक्सलियों की सेंट्रल कमेटी के प्रवक्ता अभय ने एक बयान में कहा था कि अगर सरकार नक्सलियों के खिलाफ चल रहे अभियानों को रोक देती है, तो वे बिना शर्त शांति वार्ता के लिए तैयार हैं.
इस बयान में प्रवक्ता अभय ने सरकार के समक्ष कुछ मांगे रखी थीं. बयान में कहा गया था, ‘हमारी मांग है कि छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र (गढ़चिरौली), ओडिशा, झारखंड, मध्य प्रदेश और तेलंगाना में ऑपरेशन के नाम पर हत्याएं और नरसंहार बंद हों. नए सशस्त्र बलों के कैंप की स्थापना रोकी जाए.’
उन्होंने आगे कहा कि अगर सरकार इन प्रस्तावों पर सकारात्मक प्रतिक्रिया देती है, तो नक्सली तुरंत युद्धविराम की घोषणा कर देंगे.
इसके जवाब में छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री और गृहमंत्री विजय शर्मा ने कहा कि ‘छत्तीसगढ़ सरकार नक्सल समस्या के समाधान को लेकर पूरी तरह से गंभीर है. सरकार किसी भी प्रकार की सार्थक वार्ता के लिए तैयार है पर इसके लिए कोई शर्त स्वीकार नहीं है.’
नागरिक संगठनों ने अपने पत्र में आंकड़े प्रस्तुत किए गए हैं जिसके अनुसार, सुरक्षा बलों द्वारा 2024 में ‘ऑपरेशन कगार’ शुरू करने के बाद से 400 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं (2024 में 287, 2025 में 113). पत्र में कहा गया है कि मारे गए आम नागरिकों की सही संख्या अज्ञात है, लेकिन यह देखते हुए कि जिन लोगों को माओवादी बताया गया है, उनमें से कई की पहचान ग्रामीणों द्वारा नागरिकों के रूप में की गई है, यह स्पष्ट है कि नागरिक बुरी तरह से प्रभावित हो रहे हैं.
पत्र में एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा गया है कि साल 2018 से 2022 के बीच सुरक्षाकर्मियों (168) और माओवादियों (327) की तुलना में अधिक नागरिक (335) मारे गए हैं.
पत्र कहता है, ‘दक्षिण एशिया आतंकवाद पोर्टल (एसएटीपी) ने 2025 के लिए 15 नागरिकों, 14 सुरक्षा बलों और 150 माओवादियों के मारे जाने का ब्यौरा दिया है. इन हत्याओं के लिए सुरक्षा बलों को 8.24 करोड़ रुपये का इनाम मिला है.’
बस्तर के मौजूदा सैन्यीकरण पर गहरी चिंता जताते हुए पत्र कहता है, ‘एक आधिकारिक अनुमान के अनुसार, पिछले 25 वर्षों में 16,733 लोगों को गिरफ्तार किया गया तथा 10,884 लोगों ने आत्मसमर्पण किया. सरकार का दावा है कि मार्च 2026 तक माओवादियों का खात्मा हो जाएगा और अब केवल 400 सशस्त्र कैडर बचे हैं. अब ‘गंभीर रूप से प्रभावित’ जिलों की संख्या घटकर केवल छह रह गई है. ऐसे हालात में, माओवादी अब कोई ऐसा सुरक्षा खतरा नहीं हैं, जिसके लिए मौजूदा सैन्यीकरण और आक्रामक अभियान को उचित ठहराया जा सके.’
पत्र में यह चिंता व्यक्त की गई है कि ‘स्कूलों, स्वास्थ्य सेवाओं, सार्वजनिक परिवहन और अन्य कल्याणकारी योजनाओं की गति सड़क निर्माण की गति के अनुरूप नहीं रही है. इसके बजाय, सरकार ने कई खनन कंपनियों के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं, जिन्हें लेकर ग्रामीणों को आशंका है कि इससे बड़े पैमाने पर विस्थापन और पर्यावरणीय क्षरण होगा. खनन और अन्य प्रकार के विस्थापन के खिलाफ ग्रामीणों का संवैधानिक संघर्ष लगातार दबाया गया है.. सामान्य स्थिति में भी और माओवाद से लड़ने के बहाने से भी.’
माओवादियों से पत्र में अपील की गई है, ‘उन्हें राज्य बलों के खिलाफ हिंसा और आईईडी के प्रयोग को तुरंत बंद करना चाहिए, क्योंकि ये आम ग्रामीणों, बच्चों और मवेशियों के लिए भी खतरा बनते हैं. जन अदालतों में सुनाई जा रही ‘मृत्युदंड’ की सजाएं भी समाप्त की जानी चाहिए.’
पत्र उन सभी मुद्दों के त्वरित समाधान की मांग करता है, ‘जो केवल शांति और न्याय की स्थिति में ही संभव है.’
‘हम शांति स्थापित करने के लिए हर पहल का स्वागत करते हैं. देश के विभिन्न हिस्सों से जुड़े हम सभी चिंतित नागरिक एक बार फिर भारतीय संविधान के दायरे में शांति वार्ता की मांग करते हैं.’
पत्र में यह भी मांग की गई है कि प्रभावित क्षेत्रों तक स्वतंत्र नागरिक संगठनों और मीडिया को निर्बाध पहुंच दी जानी चाहिए. और राज्य को उन सभी आदिवासियों और कार्यकर्ताओं को तुरंत रिहा करना चाहिए जिन्हें अपने लोकतांत्रिक अधिकारों को लेकर आवाज उठाने और आदिवासियों के विरोधी राज्य नीतियों से असहमति जताने के कारण जेल में डाला गया है, ताकि वे वार्ता प्रक्रिया में बराबर के भागीदार के रूप में भाग ले सकें.
इस पत्र के जरिये मानवाधिकार संगठन ‘सभी लोकतांत्रिक और राजनीतिक ताकतों से अपील करते हैं कि वे इस प्रक्रिया का समर्थन करें और राज्य को उसके संवैधानिक दायित्वों को पूरा करने के लिए बाध्य करें.’
