लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी ने बंगाल में अपनी पैठ बनाने की पूरी कोशिश की। हालांकि, बुआ-भतीजे की जोड़ी ने बीजेपी की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। तृणमूल कांग्रेस (TMC) की ममता बनर्जी और अभिषेक बनर्जी की जोड़ी ने अपनी रणनीतियों और मेहनत के दम पर धमाकेदार जीत दर्ज की है।
टीएमसी ने एग्जिट पोल्स के नतीजों को गलत साबित कर दिया। लोकसभा चुनाव के नतीजों के रुझान ने एक बार फिर से साबित कर दिया गया है कि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की लोकप्रियता में किसी प्रकार की कमी नहीं आई है। आइए जानते हैं बंगाल में बीजेपी की हार की पांच बड़ी वजह।
बंगाल की 31 सीटों पर टीएमसी को बढ़त
पश्चिम बंगाल में लोकसभा की 42 सीट हैं। ममता बनर्जी के नेतृत्व में टीएमसी को 31 सीटों पर बढ़त मिली है। वहीं बीजेपी को 10 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। कांग्रेस केवल एक सीट पर बढ़त बनाए हुए है। 2019 के चुनाव में भाजपा को 18 सीटें मिली थीं। इस बार बीजेपी की 8 सीटें घट गई हैं और यह घटकर 10 रह गई हैं। कांग्रेस और माकपा के लिए यह चुनाव निराशाजनक साबित हुआ है।
मुस्लिम ध्रुवीकरण का मिला टीएमसी को फायदा
भाजपा ने ममता बनर्जी पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगाकर बहुसंख्यक हिंदू आबादी को रिझाने की कोशिश की। नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और संदेशखाली मुद्दे को उठाकर भाजपा ने हिन्दू वोटों को आकर्षित करने का प्रयास किया। हालांकि, यह दांव बीजेपी पर ही उलटा पड़ गया। बंगाल के 27% मुस्लिम मतदाता भाजपा के खिलाफ एकजुट होकर ममता के पक्ष में खड़े हो गए। यह भी एक बड़ी वजह रही कि बंगाल में बीजेपी 2019 का अपना पुराना प्रदर्शन भी नहीं दोहरा सकी।
एंटी इनकम्बेंसी फैक्टर भी गया बीजेपी के खिलाफ
देश में बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी और बीते 10 सालों के पीएम मोदी की अगुवाई वाली सरकार के खिलाफ बंगाल में एंटी इनकम्बेंसी फैक्टर ने भी बीजेपी के खिलाफ काम किया। हालांकि, राज्य में ममता बनर्जी की अगुवाई वाली टीएमसी सरकार के खिलाफ भी सत्ता विरोधी लहर थी, हालांकि, बीजेपी को इससे ज्यादा फायदा नहीं मिल सका। लोकसभा चुनाव में केंद्र सरकार के खिलाफ मतदाताओं का असंतोष ज्यादा हावी रहा। ममता बनर्जी ने अपने भाषणों में महंगाई और बेरोजगारी का मुद्दा प्रमुखता से उठाया। इसके साथ ही बीजेपी पर संप्रदाय विशेष की बात कर बांटने का आरोप लगाते हुए घेरा। 27% मुस्लिम मतदाता वाले बंगाल में ममता बनर्जी का यह दांव चल गया।
बीजेपी के खिलाफ गया एंटी बंगाली सेंटीमेंट्स
चुनाव से पहले कलकत्ता हाई कोर्ट द्वारा 25,000 शिक्षकों की नौकरी रद्द कर दी। इसके बाद ममता ने इसे भाजपा के खिलाफ बंगाली गौरव के मुद्दे से जोड़ दिया। टीएमसी ने इस मुद्दे को भुनाने में सफल रही और बीजेपी को एंटी बांग्ला करार दिया। हालांकि, बीजेपी ने इस मुद्दे पर डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश की। पीएम मोदी ने अपने भाषण में इस बात का भरोसा दिलाया कि बीजेपी की स्टेट यूनिट कोर्ट के आदेश से प्रभावित हुए इमानदार लोगों की मदद करेगी। लेकिन, इसका बंगाल के लोगों पर ज्यादा असर नहीं हुआ।
भाजपा में स्थानीय चेहरों की कमी का भी हुआ असर
पश्चिम बंगाल में भाजपा के पास स्थानीय नेताओं की कमी रही। भाजपा के कई बड़े नेता तृणमूल कांग्रेस से आए हैं। टीएमसी ने इस बात को भी खूब भुनाया। जब भी टीएमसी से बीजेपी में गए कोई नेता ममता बनर्जी को निशाना बनाने की कोशिश करता, तो ममता बनर्जी यह कहकर पलटवार करती नजर आईं कि वह टीएमसी से ही बीजेपी में गए हैं। स्थानीय नेताओं की कमी के कारण राज्य में चुनावी अभियान का दारोमदार प्रधानमंत्री मोदी और केंद्रीय नेताओं पर था। यह बात बंगाल के मतदाताओं को रास नहीं आया।
लक्ष्मी भंडार योजना का हुआ टीएमसी को फायदा
ममता बनर्जी की लक्ष्मी भंडार योजना ने महिलाओं के बीच भारी लोकप्रियता हासिल की। इस योजना के तहत आर्थिक रूप से कमजोर महिलाओं को नकद वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। इस योजना के तहत टीएमसी सरकार राज्य में गरीब परिवार की महिलाओं को हर महीने 1200 रुपए की आर्थिक मदद देती है। यही वजह रही कि संदेशखाली मुद्दे के बावजूद, लक्ष्मी भंडार की लाभार्थी महिलाओं का समर्थन टीएमसी को मिला।
नबजौर अभियान का भी मिला लाभ
अभिषेक बनर्जी ने ‘नबजौर’ अभियान के तहत पूरे राज्य की यात्रा की, जिसमें उन्होंने लोगों की शिकायतों को सुना और पार्टी के अंदरूनी मुद्दों को हल किया। इसके साथ ही इस दौरान अभिषेक बनर्जी ने पार्टी को जमीनी स्तर पर काफी मजबूत किया। अभिषेक ने इस दौरान बीजेपी के खिलाफ माहौल बनाने की भरपूर कोशिश की। अभिषेक की जमीनी स्तर पर की गई रणनीति ने टीएमसी की जीत में अहम भूमिका निभाई।