मध्य प्रदेश: युवक की हिरासत में मौत के मामले में पुलिस को बचाने के लिए सरकार को कोर्ट की फटकार

मैंगलोर: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (29 अप्रैल) को डिनोटिफाइड पारधी जनजाति के 24 वर्षीय देवा पारधी की हत्या में शामिल पुलिसकर्मियों को बचाने के लिए मध्य प्रदेश सरकार को कड़ी फटकार लगाई. न्यायिक मजिस्ट्रेट की जांच और मेडिकल रिपोर्ट में स्पष्ट सबूतों के बावजूद कि मौत का कारण हिंसा है, गुना पुलिस द्वारा देवा की क्रूर हत्या के लिए जिम्मेदार पुलिसकर्मियों को 10 महीने बाद भी गिरफ्तार नहीं किया गया है.

जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने देवा की मां हंसुराबाई द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य के व्यवहार को ‘हास्यास्पद’ और ‘अमानवीय’ कहा.

जब अतिरिक्त महाधिवक्ता ऐश्वर्या भाटी ने अदालत को बताया कि इसमें शामिल दो अधिकारियों को ‘लाइन हाजिर’ किया गया गया है, जस्टिस संदीप मेहता ने कहा, ‘यह हास्यास्पद है, एक अमानवीय बात है. अपने ही अधिकारियों पर हाथ डालने में आपको 10 महीने लग जाते हैं.’

जस्टिस मेहता ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा, ‘ओह, हिरासत में मौत के मामले में यह बहुत बढ़िया प्रतिक्रिया है! पक्षपात का इससे बेहतर उदाहरण क्या हो सकता है… अपने ही अधिकारियों को बचाने का?’

जस्टिस मेहता ने कहा, ‘इस देश में हालात बहुत दुखद हैं कि इस अदालत के बार-बार फैसले के बावजूद हिरासत में हिंसा की घटनाएं लगातार जारी हैं और अपराधी खुलेआम घूम रहे हैं. भयानक! और आप एकमात्र गवाह को खत्म करने की कोशिश करते हैं, अपराध से बच निकलने का यही सबसे अच्छा तरीका है.’

हिरासत में यातना और मौत

पिछले साल 13 जुलाई को देवा को अपनी बचपन की दोस्त निकिता से शादी करनी थी, लेकिन शादी से पहले की रस्मों के दौरान उसे घर से उठा लिया गया. जब देवा के चाचा गंगाराम ने बीच-बचाव करने की कोशिश की, तो उन्हें भी हिरासत में ले लिया गया और पास की झागर पुलिस चौकी ले जाया गया. बाद में देवा की पुलिस हिरासत में हत्या कर दी गई, जबकि गंगाराम ही इस अपराध का एकमात्र गवाह था.

पिछले साल गुना की यात्रा के बाद द वायर ने इस घटना की रिपोर्ट की थी. देवा की मौत और हिरासत में गंगाराम की लगातार यातना के अलावा पुलिस पर छह साल के बच्चे की पिटाई और देवा की शादी में शामिल एक महिला मेहमान के साथ बलात्कार करने का आरोप है.

देवा और गंगाराम को कुछ समय के लिए झागर पुलिस चौकी में रखा गया, जिसमें तीन चौकियों – झागर, म्याना और रूठियाई के अधिकारी शामिल थे. दोनों को लगभग 40 किलोमीटर दूर म्याना पुलिस चौकी में स्थानांतरित करने से पहले बुरी तरह पीटा गया. परिवार का आरोप है कि पुलिस उन्हें चालू पुलिस चौकी के बजाय एक छोड़े गए और काम में न आ रही पुलिस चौकी में ले गई.

म्याना पुलिस चौकी में देवा और गंगाराम को बांधकर छत से लटका दिया गया, उनके चेहरे काले कपड़े से ढक दिए गए और बेरहमी से पीटा गया. पुलिस ने कथित तौर पर उनके चेहरे पर गर्म पानी फेंका और मारपीट जारी रखी.

गंगाराम की पत्नी शालिनी ने द वायर को बताया था कि उनके मल द्वार में लोहे की छड़ें डाली गईं और उन पर एक तरल पदार्थ डाला गया, जिसके पेट्रोल होने का संदेह है. ये सभी आरोप सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका का हिस्सा हैं.

‘आपराधिक जनजातियां’

घटना के बाद इस रिपोर्टर ने पुलिस उपाधीक्षक (डीवाईएसपी) युवराज सिंह चौहान से मुलाकात की, जिन्हें अपने अधीनस्थ अधिकारियों के खिलाफ आरोपों की जांच करने का काम सौंपा गया था.

चौहान ने पारधी समुदाय के खिलाफ खुलेआम पक्षपात व्यक्त किया, बार-बार उन्हें ‘आपराधिक जनजाति’ कहा. उन्होंने दावा किया कि पुलिस ने शुरू में देवा और गंगाराम को एक फर्जी ‘मुठभेड़’ में मारने की योजना बनाई थी, लेकिन अत्याचार कानून की जटिलताओं के कारण उनकी आरक्षित जाति की स्थिति के कारण हिचकिचाहट हुई. यह बातचीत ऑडियो-रिकॉर्ड की गई थी.

राज्य में पारधी समुदाय के बच्चों और युवाओं के साथ मिलकर काम करने वाली गैर-सरकारी संस्था मुस्कान घटना के बाद से ही परिवार की मदद कर रही है. भोपाल स्थित एक अन्य संगठन क्रिमिनल जस्टिस एंड पुलिस एकाउंटेबिलिटी प्रोजेक्ट (सीपीए) भी मामले की कानूनी लड़ाई में मदद कर रहा है.

अपने पिछले इंटरव्यू में हंसुराबाई ने द वायर से कहा था कि उनके पास अब खोने के लिए कुछ नहीं है. देवा की हिरासत में हत्या के बाद उनके दूसरे बेटे सिंदवाज ने पुलिस के रवैये से निराश होकर और यह सोचकर कि उसके भाई की हत्या के लिए जिम्मेदार लोगों को कभी सज़ा नहीं मिलेगी, खुद को फांसी लगा ली थी.

हंसुराबाई ने द वायर से कहा था, ‘मेरे परिवार के सभी पुरुष सदस्य (उनके पति को भी कई साल पहले पुलिस ने क्रूरता से मारा था) मर चुके हैं. अब मैं समुदाय के अन्य बच्चों के लिए यह लड़ाई जारी रखना चाहती हूं.’

‘हिरासत में सुरक्षित’

गंगाराम को पिछले साल जुलाई में देवा के साथ हिरासत में लिया गया था, उस पर कई मामले दर्ज किए गए हैं. पारधी समुदाय के खिलाफ यह एक बहुत ही आम प्रथा है, जहां एक बार उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है, तो उन पर कई मामले दर्ज कर दिए जाते हैं, जिससे उनकी रिहाई लगभग असंभव हो जाती है.

जब भी अदालतें गंगाराम को जमानत देती हैं, पुलिस उसे किसी दूसरे मामले में हिरासत में ले लेती है.

पुलिस हिरासत में गंगाराम. (फोटो: अरेंजमेंट)

हंसुराबाई के वकील पायोशी रॉय ने हिरासत में हुई मौत के मामले में राज्य सरकार की निष्क्रियता को उजागर किया और सुप्रीम कोर्ट में गंगाराम के लिए ज़मानत की मांग की. रॉय ने तर्क दिया, ‘गंगाराम को प्रताड़ित किया जा रहा है और देवा की हत्या का एकमात्र गवाह होने के कारण उसे लंबे समय तक जेल में रहना पड़ सकता है.’

हालांकि, अदालत ने कहा, ‘वह हिरासत में सुरक्षित है. वह बाहर आ सकता है और एक लॉरी से कुचला जा सकता है, जिसे दुर्घटना कहा जाएगा. आप एकमात्र गवाह खो देंगे.’ उन्होंने आगे कहा कि देश में ऐसी घटनाएं ‘असामान्य नहीं हैं.’

रॉय ने हिरासत में यातना और जेल अधीक्षक से बार-बार अनुरोध के बावजूद पर्याप्त चिकित्सा उपचार न मिलने के कारण गंगाराम की गंभीर स्वास्थ्य स्थिति पर जोर दिया.

अदालत का यह अवलोकन कि गवाहों की अक्सर हत्या कर दी जाती है और बाद में उनकी हत्या को दुर्घटना करार दे दिया जाता है, व्यापक व्यवस्थागत सड़ांध की गंभीर स्वीकारोक्ति है, जिसके बारे में न्यायपालिका भी जानती है. पुलिस हिरासत में हत्याएं आम बात हैं, इसी तरह संदिग्ध परिस्थितियों में गवाहों की मौत भी आम बात है.

सर्वोच्च न्यायालय ने 29 अप्रैल को जेल अधिकारियों को गंगाराम के लिए उचित चिकित्सा उपचार सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था. देवा की हिरासत में हत्या और गंगाराम पर की गई क्रूरता, दोनों को घटना के तुरंत बाद मजिस्ट्रेट नितेन्द्र सिंह तोमर द्वारा की गई न्यायिक मजिस्ट्रेट जांच में विस्तार से दर्ज किया गया है.

दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 176 (1ए) के तहत निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार, न्यायिक मजिस्ट्रेट जांच शुरू की गई थी. तोमर ने गंगाराम के बयान के साथ-साथ देवा की मां हंसुराबाई और शादी के दिन घर में मौजूद अन्य सदस्यों के बयानों को भी सावधानीपूर्वक दर्ज किया था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से भी यह पता चलता है कि देवा की मौत उसके शरीर पर लगी चोटों के कारण हुई थी, जबकि पुलिस ने ‘दिल का दौरा पड़ने से मौत’ का दावा किया था.

शीर्ष अदालत ने इस मामले में राज्य को बार-बार फटकार लगाई है. पिछली सुनवाई में इसी पीठ ने सवाल किया था कि क्या राज्य पारधी समुदाय की दुर्दशा से अवगत है, जो भारत के ऐसे अपराधी समूहों में से एक है, जो सबसे अधिक झूठे आरोपों और अत्याचारों का सामना कर रहा है.

अदालत ने पारधी समुदाय के खिलाफ सामाजिक कलंक के दुरुपयोग और मध्य प्रदेश और अन्य क्षेत्रों, जहां डिनोटिफाइड समुदाय रहते हैं, में आपराधिक मामलों में उन्हें गलत तरीके से फंसाए जाने पर चिंता व्यक्त की.

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