नई दिल्ली: बिहार चुनाव को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने बुधवार (30 अप्रैल) को घोषणा की कि दशकीय जनगणना के साथ-साथ जाति जनगणना भी कराई जाएगी.
केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कैबिनेट ब्रीफिंग में यह घोषणा की. हालांकि, उन्होंने दशकीय जनगणना या उससे संबंधित जाति जनगणना कब कराई जाएगी, इसके लिए कोई समयसीमा नहीं बताई.
पिछली जनगणना 2011 में कराई गई थी और 2021 की जनगणना, जो महामारी के कारण विलंबित हो गई थी, अभी तक नहीं कराई गई है.
वैष्णव ने कहा, ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राजनीतिक मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीपीए) ने आज यानी 30 अप्रैल, 2025 को फैसला किया है कि आगामी जनगणना में जाति गणना को शामिल किया जाना चाहिए. यह दर्शाता है कि हमारी सरकार समाज, देश के मूल्यों और हितों के लिए प्रतिबद्ध है. जैसे कि पहले भी हमारी सरकार ने समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए 10% आरक्षण की शुरुआत की थी, जिससे किसी भी वर्ग पर कोई दबाव नहीं पड़ा.’
देश भर में जाति जनगणना विपक्षी दलों की लंबे समय से मांग रही है और 2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान यह एक प्रमुख मुद्दा था.
वैष्णव ने बुधवार को घोषणा करते हुए इंडिया एलायंस पर जाति जनगणना को ‘राजनीतिक उपकरण’ के रूप में इस्तेमाल करने का आरोप लगाया और कहा कि कांग्रेस सरकारों ने ‘हमेशा जाति जनगणना का विरोध किया है.’
वैष्णव ने कहा, ‘कांग्रेस सरकारें हमेशा जाति जनगणना का विरोध करती रही हैं. आजादी के बाद से अब तक जितनी भी जनगणना हुई हैं, उनमें जाति को शामिल नहीं किया गया. 2010 में दिवंगत प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने लोकसभा को भरोसा दिलाया था कि कैबिनेट में जाति जनगणना पर विचार किया जाएगा. इस पर विचार करने के लिए मंत्रियों का एक समूह बनाया गया था. अधिकांश राजनीतिक दलों ने इसकी सिफारिश की थी. इसके बावजूद कांग्रेस सरकार ने जाति जनगणना के बजाय केवल जाति का सर्वेक्षण कराने का फैसला किया. उस सर्वेक्षण को सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (एसईसीसी) के रूप में जाना जाता है. यह सर्वविदित है कि कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने जाति जनगणना का इस्तेमाल केवल राजनीतिक हथियार के रूप में किया है.’
मंत्री ने कहा कि संविधान के तहत जनगणना एक संघ का विषय है और जहां कुछ राज्यों ने इस तरह के जाति आधारित सर्वेक्षण ‘अच्छे’ तरीके से किए हैं, वहीं अन्य ने इसे ‘गैर-पारदर्शी’ तरीके से किया है.
हालांकि, वैष्णव ने किसी राज्य का नाम नहीं लिया, लेकिन उन्होंने बिहार जाति सर्वेक्षण का हवाला दिया जो नवंबर 2023 में किया गया था, जब नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जद (यू) आम चुनावों से पहले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में लौटने से पहले भारत गठबंधन का हिस्सा थी.
कांग्रेस शासित तेलंगाना में भी इसी तरह की प्रक्रिया अपनाई गई है, जबकि कर्नाटक में सिद्धारमैया सरकार ने 10 साल पुराने जाति सर्वेक्षण को स्वीकार कर लिया है.
वैष्णव ने कहा, ‘भारतीय संविधान के अनुच्छेद 246 के अनुसार, जनगणना विषय को 7वीं अनुसूची में संघ सूची में 69 के रूप में सूचीबद्ध किया गया है. भारत के संविधान के अनुसार, जनगणना एक संघ का विषय है. कुछ राज्यों ने जाति की गणना करने के लिए सर्वेक्षण किए हैं. कुछ राज्यों ने इसे अच्छी तरह से किया है जबकि कुछ अन्य ने गैर-पारदर्शी तरीके से विशुद्ध रूप से राजनीतिक दृष्टिकोण से ऐसे सर्वेक्षण किए हैं. ऐसे सर्वेक्षणों ने समाज में संदेह पैदा किया है.’
वैष्णव ने कहा कि सीसीपीए ने फैसला किया है कि जाति गणना पारदर्शी तरीके से की जानी चाहिए ताकि समाज के ‘सामाजिक ताने-बाने’ को नुकसान न पहुंचे.
उन्होंने कहा, ‘इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए और यह सुनिश्चित करने के लिए कि राजनीति के कारण हमारा सामाजिक ताना-बाना प्रभावित न हो, सर्वेक्षणों के बजाय जनगणना में जाति गणना को पारदर्शी तरीके से शामिल किया जाना चाहिए. इससे हमारे समाज का सामाजिक और आर्थिक ढांचा मजबूत होगा और राष्ट्र निरंतर प्रगति करता रहेगा.’
अमित शाह ने फैसले को ‘ऐतिहासिक’ बताया
एक बयान में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस कदम को ‘ऐतिहासिक’ बताया, लेकिन इसके लागू होने की कोई समयसीमा नहीं बताई.
शाह ने कहा कि यह कदम सामाजिक समानता के प्रति मजबूत प्रतिबद्धता का संदेश है और आगामी जनगणना में जाति जनगणना को शामिल करने का निर्णय लेकर हर वर्ग को अधिकार दिया गया है.
उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस और उसके सहयोगियों ने सत्ता में रहते हुए दशकों तक जाति जनगणना का विरोध किया और विपक्ष में रहते हुए इस पर राजनीति की. यह निर्णय सभी आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों को सशक्त करेगा, समावेश को बढ़ावा देगा और वंचितों की प्रगति के लिए नए रास्ते प्रशस्त करेगा.’
बिहार चुनाव पर नज़र!
उल्लेखनीय है कि वैष्णव की यह घोषणा इस साल के अंत में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले आई है.
ज्ञात हो कि जनता दल (यूनाइटेड) द्वारा राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के साथ गठबंधन में आयोजित 2023 बिहार जाति जनगणना ने राज्य में राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया था.
बिहार सरकार ने 2 अक्टूबर 2023 को जाति सर्वेक्षण के आंकड़े जारी किए थे, जिसके अनुसार, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) राज्य की कुल आबादी का 63 प्रतिशत है, जिसमें अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) सबसे बड़ा हिस्सा (36%) है. आंकड़ों के अनुसार, बिहार की कुल आबादी 13 करोड़ से ज्यादा है, जिसमें पिछड़ा वर्ग 27.13 फीसदी है, अत्यंत पिछड़ा वर्ग 36.01 फीसदी और सामान्य वर्ग 15.52 फीसदी है.
जद (यू)-राजद सरकार ने राज्य विधानसभा में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित 50% की सीमा को तोड़ने के लिए महत्वपूर्ण संशोधन पारित किए. ये संशोधन बिहार में जाति सर्वेक्षण के बाद किए गए, जिसमें पता चला कि बिहार की 65% आबादी इन चार हाशिए के समूहों से संबंधित है, लेकिन सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में उनका प्रतिनिधित्व बहुत कम है.
जून 2024 में पटना उच्च न्यायालय ने आरक्षण की अधिकतम सीमा का उल्लंघन करने के बिहार सरकार के फैसले को खारिज कर दिया था. इस मामले की सुनवाई अब सुप्रीम कोर्ट में चल रही है.
बिहार चुनाव से पहले केंद्र सरकार का यह फैसला 2024 के चुनाव अभियान में भारतीय जनता पार्टी के रुख से एकदम उलट है, जब उसने जाति जनगणना की मांग को समाज को बांटने वाला कदम बताकर खारिज कर दिया था. उस समय भाजपा की बिहार इकाई ने विधानसभा में नीतीश कुमार सरकार का पूरा समर्थन किया था.
