खबर 30 दिन न्यूज नेटवर्क
रायपुर, छत्तीसगढ़ – छत्तीसगढ़ का घना और समृद्ध वन क्षेत्र, जिसे ‘हरा सोना’ कहा जाता है, तेजी से बर्बादी की ओर बढ़ रहा है। प्रदेश के जंगल, जो पर्यावरणीय संतुलन और स्थानीय आदिवासी समुदायों की आजीविका का प्रमुख स्रोत हैं, अवैध कटाई, खनन गतिविधियों और बढ़ती औद्योगिक परियोजनाओं के कारण गंभीर संकट में हैं।
विनाश के प्रमुख कारण
विशेषज्ञों का मानना है कि राज्य के जंगलों के नष्ट होने के पीछे कई कारक जिम्मेदार हैं:
- अवैध कटाई: कई क्षेत्रों में बिना अनुमति के पेड़ों की कटाई जोरों पर है, जिससे जैव विविधता पर बुरा असर पड़ रहा है।








- खनन परियोजनाएं: आदिवासी बहुल इलाकों में खनिज संसाधनों के दोहन के लिए जंगलों का बड़े पैमाने पर सफाया किया जा रहा है।
- शहरीकरण और औद्योगीकरण: नए उद्योगों और बस्तियों के विस्तार के लिए बड़े पैमाने पर जंगलों को उजाड़ा जा रहा है।
- वन्यजीवों पर संकट: जंगल के घटते क्षेत्रफल के कारण वन्यजीवों का प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहा है, जिससे मानव-वन्यजीव संघर्ष के मामले बढ़ रहे हैं।
स्थानीय समुदायों पर प्रभाव
छत्तीसगढ़ के वन क्षेत्रों में निवास करने वाली आदिवासी जनजातियां जंगलों पर अपनी आजीविका के लिए निर्भर हैं। महुआ, तेंदूपत्ता, साल बीज और अन्य वन उत्पाद इन समुदायों की आजीविका का मुख्य साधन हैं। जंगलों के नष्ट होने से उनकी आजीविका भी खतरे में पड़ गई है।
सरकार के प्रयास
हालांकि राज्य सरकार ने जंगलों को बचाने के लिए कई योजनाएं लागू की हैं, लेकिन इनका प्रभाव सीमित रहा है। वन संरक्षण के लिए सामुदायिक सहभागिता बढ़ाने और कठोर कानूनों को सख्ती से लागू करने की आवश्यकता महसूस की जा रही है।
विशेषज्ञों की राय
पर्यावरणविदों का मानना है कि यदि जंगलों की कटाई पर जल्द रोक नहीं लगाई गई तो आने वाले वर्षों में छत्तीसगढ़ का पर्यावरण असंतुलित हो सकता है। वे जंगलों को बचाने के लिए सतत विकास, वृक्षारोपण अभियान और स्थानीय समुदायों की भागीदारी पर जोर दे रहे हैं।
निष्कर्ष
छत्तीसगढ़ का ‘हरा सोना’ प्रदेश की पहचान और समृद्धि का प्रतीक है। इसे बचाने के लिए सरकार, समाज और स्थानीय लोगों को मिलकर ठोस कदम उठाने की जरूरत है, ताकि आने वाली पीढ़ियों को भी ये प्राकृतिक धरोहर सुरक्षित रूप से सौंपी जा सके।
