अब्दुल सलाम क़ादरी-एडिटर इन चीफ
रायपुर।
छत्तीसगढ़ में मीडिया की आज़ादी पर एक बार फिर सवाल खड़े हो गए हैं। सरकार ने सरकारी अस्पतालों में मीडिया के प्रवेश पर नई पाबंदियों का आदेश जारी किया है—बिना लिखित अनुमति के कोई रिपोर्टिंग नहीं, कोई सवाल नहीं, कोई दस्तावेज़ नहीं। यानी, लोकतंत्र के पहरेदार अब सरकार की ‘इजाजत’ से ही बोलेंगे!
https://x.com/TS_SinghDeo/status/1935215764727910705?t=wKzR9QT8eArRgynhICp_Dg&s=19
लेकिन यह आदेश जितना कागज़ों में ‘गोपनीयता’ के नाम पर सही दिखता है, असल में उतना ही खतरनाक है।
पूर्व उपमुख्यमंत्री टी.एस. सिंहदेव ने इस फैसले को लेकर भाजपा सरकार पर सीधा हमला बोला है—
“ये जनता की आंख पर पट्टी बांधने की कोशिश है।
मीडिया को ‘पास सिस्टम’ में डालना—लोकतंत्र का गला घोंटना है!”
पत्रकारिता को बनाया ‘कंट्रोल रूम’ का हिस्सा?
सरकारी फरमान के अनुसार अब पत्रकारों को अस्पतालों में कवरेज करने के लिए पहले अनुमति लेनी होगी। अनुमति के बाद भी वो क्या, कब और कैसे दिखाएंगे, यह भी प्रशासन तय करेगा।
https://x.com/TS_SinghDeo/status/1935211192995213375?t=guVDRXN2Ll9pPRRil76BcA&s=19
सवाल उठता है:
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क्या अब अस्पतालों में बदहाली नहीं दिखाई जा सकेगी?
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क्या दवा की किल्लत, डॉक्टरों की गैरहाजिरी, या गरीब मरीज की चीख भी अब ‘अनुमति’ के दायरे में होगी?
टी.एस. सिंहदेव का तंज— “सरकार जवाबदेही से डर रही है!”
सिंहदेव ने तीखे शब्दों में कहा कि—
“गोपनीयता ICU या OT तक सीमित हो सकती है।
लेकिन वॉर्ड में तड़पते मरीजों की तस्वीर दिखाना,
यह जनता का हक है, न कि अपराध!”
उनका साफ कहना है कि यह आदेश, स्वास्थ्य प्रणाली की सच्चाई को छिपाने की कोशिश है।
“जब हकीकत जवाब मांगती है, तो सरकार पर्दा डाल देती है।”
सवाल पूछना गुनाह बना दिया गया है?
सरकार भले ही निजता की दुहाई दे, लेकिन इस आदेश के पीछे की मंशा पर संदेह गहराता जा रहा है।
क्योंकि अगर एक पत्रकार को रिपोर्ट करने से पहले इजाजत लेनी पड़े, तो…
🔴 भ्रष्टाचार कौन उजागर करेगा?
🔴 कमीज़ोर स्वास्थ्य सेवाओं पर कौन बोलेगा?
🔴 सरकारी तंत्र की लापरवाही कौन दिखाएगा?
टी.एस. सिंहदेव कहते हैं—
“मीडिया का काम सरकार की छवि चमकाना नहीं,बल्कि जनता की आवाज़ बनना है। और अगर यही रोका गया, तो लोकतंत्र की रीढ़ टूट जाएगी।”
कांग्रेस का एलान— ‘संविधान बचाओ आंदोलन’ की शुरुआत
इस विवाद ने अब सियासी रंग भी ले लिया है।
कांग्रेस ने साफ चेतावनी दी है—
“अगर यह आदेश वापस नहीं लिया गया,
तो कांग्रेस विधानसभा से सड़क तक आंदोलन करेगी।
यह सिर्फ पत्रकारों का नहीं, हर नागरिक का मामला है!”
क्या मीडिया अब सिर्फ प्रेस नोट पढ़ेगा?
छत्तीसगढ़ की जनता के सामने अब असली सवाल खड़ा है—
📌 क्या सरकार अब हर सूचना पर सेंसर लगाएगी?
📌 क्या स्कूलों, थानों, पंचायतों और दफ्तरों में भी मीडिया के कदम रोक दिए जाएंगे?
📌 क्या आने वाले दिनों में केवल ‘सरकारी स्वीकृति’ से रिपोर्टिंग की इजाजत मिलेगी?
यह फैसला नहीं, लोकतंत्र पर कुठाराघात है।
“सच से डरने वाली सरकार, खुद अपनी नाकामी स्वीकार कर रही है!”
जब सरकार व्यवस्था सुधारने के बजाय
रिपोर्टिंग रोकने में व्यस्त हो जाए,
तो समझिए सच्चाई से डर फैल चुका है।
टी.एस. सिंहदेव की बात तीर की तरह चुभती है—
“भय का शासन लाया जा रहा है।
जो सवाल पूछेगा, उसे रोको।
जो रिपोर्ट करे, उसे बंद करो।
क्या यही नया भारत है?”
“जब मीडिया चुप हो जाएगा, तब तानाशाही बोलने लगेगी”
छत्तीसगढ़ की ये नई नीति दरअसल एक ‘पायलट सेंसरशिप प्रोजेक्ट’ है।
आज अस्पताल में मीडिया बंद,
कल शायद विधानसभा की कार्यवाही पर भी ‘अनुमति’ लगे!
लेकिन जनता भी अब समझ रही है—
ये सिर्फ अस्पताल की दीवारें नहीं, लोकतंत्र की आवाज़ हैं,
जिन पर ताला लगाना अब आसान नहीं होगा।
