मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में एक हिंदू पत्नी को अपने मुस्लिम पति का अंतिम संस्कार करने की अनुमति दी है। आपको बता दें कि महिला का पति एक मुस्लिम महिला के साथ अवैध संबंध में शामिल होने के बाद इस्लाम धर्म अपना लिया था।
बाद में दोनों का निकाह भी हो गया था। न्यायमूर्ति जीआर स्वामीनाथन की पीठ ने इस मामसे पर सुनवाई करते हुए हिंदू महिला को अंतिम संस्कार की इजाजत दी। आपको बता दें कि एक सरकारी अस्पताल के शवगृह में उसका शव पड़ा हुआ था।
मृतक की हिंदू पत्नी और मुस्लिम बेटे ने शव को अपने-अपने कब्जे में लेने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था। हिंदू पत्नी ने वैध जीवनसाथी के रूप में अपने अधिकारों का दावा करते हुए अंतिम संस्कार करने के अधिकार के लिए तर्क दिया। मुस्लिम बेटे ने तर्क दिया कि उसके पिता ने निधन से पहले इस्लाम धर्म अपना लिया था, जिसके कारण उसका और उसकी मां का अंतिम संस्कार करने का उचित दावा है।
अदालत ने कहा कि हालांकि इस तथ्य पर कोई विवाद नहीं है कि मृतक ने अपने निधन से पहले इस्लाम धर्म अपना लिया था, लेकिन मुस्लिम महिला से उसकी शादी को कानूनी मान्यता नहीं दी जा सकती है।
हाईकोर्ट ने बताया कि मृतक बालासुब्रमण्यम ने 1988 में अपनी हिंदू पत्नी बी शांति से शादी की थी। उस विवाह से एक लड़की का जन्म हुआ। हालांकि, बाद में उनका सैयद अली फातिमा के साथ अवैध संबंध हुआ। इसके बाद उन्होंने इस्लाम धर्म अपना लिया। इसके बाद वह अनवर हुसैन बन गए और 1999 में इस्लामिक रीति-रिवाजों के अनुसार फातिमा से शादी की। उस शादी से एक बेटा पैदा हुआ।
बालासुब्रमण्यम ने 2017 में तमिलनाडु सरकार के राजपत्र के माध्यम से सूचित किया कि उन्होंने 10 मई, 2016 को अनवर हुसैन के नाम से इस्लाम धर्म अपना लिया है। इसके बाद, उन्होंने फैमिली कोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर कर शांति के साथ अपनी शादी को खत्म करने की मांग की। 2021 में अदालत ने उनकी याचिका मंजूर कर ली। उनकी पहली पत्नी ने कोर्ट के फैसले को चुनौती दी। फैसले की समीक्षा करने के बाद अतिरिक्त जिला न्यायाधीश ने आदेश को पलट दिया।
हाईकोर्ट की सुनवाई के दौरान यह माना गया कि अतिरिक्त जिला न्यायाधीश ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को सही ढंग से रद्द कर दिया था। ऐसे में केवल शांति को ही बालासुब्रमण्यम उर्फ अनवर हुसैन की कानूनी रूप से विवाहित पत्नी माना जा सकता है।
हाईकोर्ट ने पुलिस को कहा कि सैयद अली फातिमा और अब्दुल मलिक निश्चित रूप से जमात के सत्ता संभालने के बाद अंतिम संस्कार में भाग लेने के हकदार हैं।