September 8, 2024 5:52 am

लेटेस्ट न्यूज़

आखरी मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र के आखिरी दिन-इतिहास

अब्दुल सलाम कादरी

बहादुर शाह ज़फ़र के आखिरी दिन क़ैद, देश निकाले और गुमनामी की ज़िंदगी में गुज़रे। 1857 के सितम्बर में, जब अंग्रेज़ों ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया, तो 82 साल के बुज़ुर्ग बादशाह हुमायूं के मकबरे में पनाह लेने के लिए मजबूर हुए। मगर उन्हें पकड़ लिया गया और उनकी बेगम को हवेली में क़ैद कर दिया गया। वहां उन्हें अपने अंग्रेज़ क़ैदियों से बेइज़्ज़ती और बेरुखी* का सामना करना पड़ा।

मशहूर इतिहासकार विलियम डेलरिम्पल ने अपनी किताब “द लास्ट मुग़ल” में इस दौर को बादशाह के लिए “बेपनाह दुःख” का ज़माना बताया है। उन्हें अपनी आंखों से अपने बेटों – मिर्जा मुगल, मिर्जा खिज्र सुल्तान और पोते मिर्जा अबू बख़्त की बेरहमी से क़त्ल होते हुए देखना पड़ा, जिन्हें ब्रिटिश अफसर मेजर विलियम हॉडसन ने अंजाम दिया था।

1858 में उन्हें रंगून (आज का यांगून, म्यांमार) भेज दिया गया, जहां उनकी ज़िंदगी क़ैद और तंगहाली में कटी। इतिहासकार माइकल एडवर्ड्स अपनी किताब “ए हिस्ट्री ऑफ इंडिया” में लिखते हैं कि बादशाह के साथ “पूर्व-सम्राट की तरह नहीं बल्कि एक सियासी क़ैदी” जैसा सलूक किया गया। उन्हें कम संसाधनों वाले छोटे से घर में क़ैद कर दिया गया, जिससे उनकी सेहत और गिर गई। गले में लकवा होने के बाद आखिरकार नवंबर 1862 में 87 साल की उम्र में उनका इंतकाल हो गया। उनकी कब्र बेनाम है, जो उनके पूर्वज मुगल बादशाहों की शानदार क़ब्रों के बिल्कुल उलट है।

हालांकि उनकी ज़िंदगी का अंत दुखद रहा, बहादुर शाह ज़फ़र भारतीय इतिहास में एक अहम शख्सियत बने हुए हैं। 1857 के विद्रोह से उनका जुड़ाव और उनकी दिल छू लेने वाली उर्दू शायरी उन्हें राष्ट्रीय स्मृति में एक खास जगह दिलाती है। वह मुगल साम्राज्य के पतन और ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ संघर्ष की याद दिलाते हैं।
#इतिहास_की_एक_झलक
#mughalempire
#Mughal
#historical
#history

Leave a Comment

Advertisement
  • AI Tools Indexer
  • Market Mystique
  • Buzz4ai