नई दिल्ली: पूर्व आईएएस अधिकारी ईएएस सरमा ने भारतीय निर्वाचन आयोग (ईसीआई) से पूछा है कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘आयोग या आम जनता के प्रति जवाबदेह नहीं हैं.’
यह सवाल उन्होंने अपने द्वारा चुनाव आयोग को लिखे गए एक पत्र का जवाब आयोग द्वारा न दिए जाने पर निराशा व्यक्त करते हुए पूछा. उक्त पत्र में सरमा ने कहा था कि मोदी ने अपने हालिया भाषण में चुनाव प्रचार नियमों का उल्लंघन किया.
रिपोर्ट के मुताबिक, सरमा ने शुक्रवार (22 मार्च) को ईसीआई से एक शिकायत की थी ताकि उसका ध्यान मोदी द्वारा उस सप्ताह के शुरुआत में तमिलनाडु के एक आयोजन में दिए गए एक भाषण की ओर दिलाया जा सके, जिसमें प्रधानमंत्री ने कहा था कि हिंदू नारी शक्ति और मातृ शक्ति में विश्वास करते हैं लेकिन के विपक्षी गठबंधन इंडिया ने शक्ति को नष्ट करने के बारे में बयान दिए और ये हिंदू धर्म का अपमान है.
भाषण के एक वीडियो में उन्हें कहते सुना जा सकता है, ‘मुंबई के शिवाजी पार्क में अपनी रैली में ‘इंडी (इंडिया) गठबंधन’ ने खुले तौर पर घोषणा की कि वह उस शक्ति को नष्ट करना चाहता है जिसमें हिंदू धर्म की आस्था है. तमिलनाडु में हर कोई जानता है कि हिंदू धर्म में शक्ति का क्या मतलब है.’
मोदी ने यह भी कहा कि तमिलनाडु में देवी-देवताओं को समर्पित कई मंदिर ‘यहां की शक्ति’ हैं और कहा कि हिंदू धर्म में, यह शब्द मातृ शक्ति और नारी शक्ति से जुड़ा है.
प्रधानमंत्री ने यह भी कहा, ‘इंडी गठबंधन’ के लोग बार-बार और जानबूझकर हिंदू धर्म का अपमान करते हैं.’
सरमा ने कहा कि इन बयानों ने आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) का उल्लंघन किया है और ईसीआई से आग्रह किया है कि अगर उनके द्वारा उल्लिखित रिपोर्ट सच पाई जाती है तो मोदी के खिलाफ कार्रवाई की जाए.
सरमा ने अपने 22 मार्च के पत्र में कहा था, ‘चुनाव के दौरान किसी राजनेता द्वारा धार्मिक भावनाओं को भड़काना खुलेआम आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन है…अगर यह सही है तो आयोग को इस पर तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए और ऐसा बयान देने वाले व्यक्ति के खिलाफ निवारक, अनुकरणीय कार्यवाही शुरू करनी चाहिए.’
अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलने पर सरमा ने सोमवार (25 मार्च) को आयोग से पूछा कि क्या उसने उनकी शिकायत पर कार्रवाई करने का सोचा है और क्या वह किसी कारण से ‘स्वतंत्रतापूर्वक काम करने से डरता है.’
उन्होंने चुनाव आयुक्तों के चयन संबंधी नए नियमों का हवाला देते हुए तीन सदस्यीय चुनाव आयोग से यह भी पूछा, ‘यह ध्यान में रखते हुए कि आप में से प्रत्येक सत्तारूढ़ राजनीति द्वारा चयन किए जाने के परिणामस्वरूप कार्यालय में बैठा है, तो क्या एक सामूहिक निकाय के रूप में आयोग सत्ता के प्रमुख के लिए किसी शर्मिंदगी का कारण न बनने के लिए स्वयं को बाध्य महसूस करता है?’
उन्होंने कहा कि आयोग को उनके सवालों का सार्वजनिक रूप से जवाब देना चाहिए और उम्मीद करता हूं कि वह ‘ऐसी किसी भी धारणा को दूर कर देगा’ कि वह अराजनीतिक है और स्वतंत्र होने के लिए तैयार नहीं है.
गौरतलब है कि आदर्श आचार संहिता के प्रावधानों में से एक कहता है कि ‘वोट हासिल करने के लिए जाति या सांप्रदायिक भावनाओं की अपील नहीं की जाएगी.’
25 मार्च के अपने पत्र में सरमा ने आयोग से 10 सवाल किए हैं:
1. क्या आयोग किसी राजनेता द्वारा मतदाताओं की धार्मिक भावनाओं को भड़काकर अपनी पार्टी के लिए वोट देने की अपील को आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन मानता है?
2. क्या आयोग को लगता है कि मेरे जैसे सामान्य नागरिक-मतदाता द्वारा की गई शिकायत पर कार्रवाई करने की आवश्यकता नहीं है, और आम मतदाताओं की चिंताओं को आसानी से नजरअंदाज किया जा सकता है?
3. क्या आयोग मानता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एमसीसी के दायरे से बाहर हैं और इसलिए वह आयोग या आम जनता के प्रति जवाबदेह नहीं हैं?
4. क्या चुनावी प्रक्रिया में मोदी के लिए नियम अलग हैं और अन्य सभी के लिए अलग हैं?
5. क्या आयोग ने मेरी उद्धृत शिकायत पर कार्रवाई करने का फैसला किया है या इसे पूरी तरह से नजरअंदाज करने का फैसला किया है?
6. क्या आयोग ने स्वतंत्र स्रोतों से मेरी शिकायत से संबंधित तथ्यों का पता लगाया है और मेरी शिकायत पर तत्काल आदेश पारित किया है? यदि ऐसा है, तो क्या आयोग इसका सार्वजनिक खुलासा कर सकता है?
7. क्या संबंधित शिकायत पर तीन अलग-अलग आयुक्तों के बीच सोच में कोई मतभेद है और आयोग द्वारा असहमति वाले विचारों का सार्वजनिक खुलासा नहीं करने के पीछे कारण क्या हैं?
8. यह ध्यान में रखते हुए कि आप में से प्रत्येक सत्तारूढ़ राजनीति द्वारा चयन किए जाने के परिणामस्वरूप कार्यालय में बैठा है, तो क्या एक सामूहिक निकाय के रूप में आयोग सत्ता के प्रमुख के लिए किसी शर्मिंदगी का कारण न बनने के लिए स्वयं को बाध्य महसूस करता है?
9. क्या आयोग, किसी कारण से, एमसीसी को लागू करने के लिए मेरी शिकायत पर स्वतंत्र रूप से कार्य करने से डरता है?
10. यह देखते हुए कि आयोग के कार्यालय द्वारा किए जाने वाले खर्च सरकारी खजाने से किए जाते हैं, क्या आयोग को जनता के प्रति जवाबदेह महसूस नहीं करना चाहिए?