अब्दुल सलाम कादरी-प्रधान सम्पादक
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लखनऊ. 69000 शिक्षक भर्ती पर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव यूपी सरकार पर हमलावर हैं। इसे लेकर अखिलेश और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य आमने-सामने आ गए हैं। दोनों नेताओं ने सोशल मीडिया पर बयानों के जरिए एक-दूसरे पर हमला बोला।
69000 शिक्षक भर्ती मामले में हाईकोर्ट के दिए गए निर्णय को अभ्यर्थियों के संघर्ष की जीत बताने वाले उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के बयान को सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आड़े हाथों लिया है जिसके बाद उन्होंने सोशल साइट एक्स पर लिखा कि दर्द देने वाले, दवा देने का दावा न करें। इस पर केशव प्रसाद ने भी पलटवार किया है।
बता दें कि हाईकोर्ट ने शिक्षक भर्ती में आरक्षण नियमावली का पालन न करने पर सरकार द्वारा बनाई गई चयन सूची रद्द कर दी थी जिसके बाद से अखिलेश यादव यूपी सरकार पर लगातार हमलावर हैं। रविवार को अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया पर उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद पर तंज कसते हुए लिखा कि दर्द देनेवाले, दवा देने का दावा न करें!
69000 शिक्षक भर्ती मामले में उत्तर प्रदेश के एक ‘कृपा-प्राप्त उप मुख्यमंत्री जी’ का बयान भी साज़िशाना है। पहले तो आरक्षण की हक़मारी में ख़ुद भी सरकार के साथ संलिप्त रहे और जब युवाओं ने उन्हीं के ख़िलाफ़ लड़कर, लंबे संघर्ष के बाद इंसाफ़ पाया, तो अपने को हमदर्द साबित करने के लिए आगे आकर खड़े हो गये।
दरअसल ये ‘कृपा-प्राप्त उप मुख्यमंत्री जी’ शिक्षक भर्ती के अभ्यर्थियों के साथ नहीं हैं, वो तो ऐसा करके भाजपा के अंदर अपनी राजनीतिक गोटी खेल रहे हैं। वो इस मामले में अप्रत्यक्ष रूप से जिनके ऊपर उँगली उठा रहे हैं, वो ‘माननीय’ भी अंदरूनी राजनीति के इस खेल को समझ रहे हैं।
शिक्षा और युवाओं को भाजपा अपनी आपसी लड़ाई और नकारात्मक राजनीति से दूर ही रखे क्योंकि भाजपा की ऐसी ही सत्ता लोलुप सियासत से उत्तर प्रदेश कई साल पीछे चला गया है।
इस पर उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने जवाब दिया कि सपा बहादुर कांग्रेस मोहरा अखिलेश यादव का पीडीए बहुत बड़ा धोखा है। झूठ बोलने की आटोमैटिक मशीन बनी सपा लोकसभा चुनाव में जैसे संविधान ख़त्म हो जाएगा का दुष्प्रचार किया, उसी प्रकार पीडीए का झूठ फैला रहे हैं।
भाजपा ही वर्तमान भाजपा ही भविष्य, 2027 में 2017 दोहरायेंगे।
बता दें कि शिक्षक भर्ती में अभ्यर्थी लंबे समय से आरक्षण नियमों का पालन न करने का आरोप लगा रहे थे। इस मुद्दे पर कई याचिकाएं कोर्ट में दी गई थीं। शुक्रवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने चयन सूची रद्द कर सरकार को नई सूची जारी करने के लिए तीन महीने का समय दिया है।