नई दिल्ली: बीते कई महीनों से मध्य प्रदेश में बाघों की मौत का मामला सुर्खियों में बना हुआ था. अब इस संबंध में कार्रवाई के तौर पर राज्य के वन विभाग के कार्यवाहक प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) शुभरंजन सेन को उनके पद से हटा दिया गया है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, बाघों की मौत के संबंध में गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा उठाए गए मुद्दों के बाद राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने मध्य प्रदेश वन्यजीव विभाग से स्पष्टीकरण मांगा था.
मालूम हो कि शुभरंजन सेन की जगह विजय एन. अंबाडे को नियुक्त किया गया है, जिन्होंने नागपुर में वन उप-महानिदेशक के रूप में कार्य किया है.
मध्य प्रदेश वन विभाग के उप सचिव किशोर कुमार कन्याल द्वारा बुधवार (21 अगस्त) को जारी एक स्थानांतरण आदेश में कहा गया है कि राज्य सरकार द्वारा 1988 बैच के आईएफएस अधिकारी वीएन अंबाडे को अगले आदेश तक तत्काल प्रभाव से अस्थायी तौर पर प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव), मध्य प्रदेश, भोपाल के पद पर नियुक्त किया जाता है.’
इस संबंध में वन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने अखबार को बताया, ‘अंबाडे की तुलना में सेन एक कनिष्ठ अधिकारी थे. वह कार्यकारी प्रमुख के रूप में पीसीसीएफ (वन्यजीव) की देखभाल कर रहे थे. अब उनकी जगह एक अनुभवी अधिकारी को नियुक्त किया गया है. इसका बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व और शहडोल में हुई बाघों की मौत की रिपोर्ट से कोई लेना-देना नहीं है. यह वरिष्ठता का मामला है. सेन विभाग में प्रमुख जिम्मेदारियां संभालते रहेंगे.’
ज्ञात हो कि इससे पहले मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व (बीटीआर) और शहडोल वन मंडल (एसएफसी) में 2021 से 2023 के बीच हुईं 43 बाघों की मौत की जांच कर रहे विशेष जांच दल (एसआईटी) ने अपनी रिपोर्ट में संभावित शिकार के मामलों में अपर्याप्त जांच, पोस्टमॉर्टम के दौरान चूक, और चिकित्सीय लापरवाही के कारण मौतों की बात कही थी.
इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने के बाद एनटीसीए ने वन्यजीव विभाग से स्पष्टीकरण मांगा था.
उस समय सेन ने 9 अगस्त को एनटीसीए को पत्र लिखकर स्वीकार किया था कि कुछ मामलों में यह पाया गया है कि एनटीसीए द्वारा मानक संचालन प्रक्रियाओं (एसओपी) और वन्यजीव मुख्यालय द्वारा जारी दिशानिर्देशों का बाघों की मौत के बाद पूरी तरह से पालन नहीं किया गया था.’
सेन की जगह लेने वाले अंबाडे को बाघों की मौत से निपटने के लिए राज्य भर में एनटीसीए प्रोटोकॉल के पालन को सुनिश्चित करना होगा और चीतों के अगले बैच के स्वागत के लिए गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य भी तैयार करवाना होगा. इन चीतों के इस साल के आखिर में आने की संभावना है.
गौरतलब है कि भारतीय वन सेवा (आईएफएस) में अंबाडे की यात्रा 1988 में शुरू हुई थी. नागपुर जिले से आने वाले अंबाडे को सेवा के शुरुआती सालों में अगस्त 1990 से मई 1991 तक छिंदवाड़ा में सहायक वन संरक्षक (एसीएफ) प्रोबेशनर के रूप में तैनात किया गया था.
इसके बाद 1991 से 1993 तक वे गरीबंद और पूर्वी रायपुर में अनुविभागीय अधिकारी (एसडीओ) और फिर सरगुजा (1993-1994) में प्रभागीय वन अधिकारी (डीएफओ) के रूप में भी कार्यरत रहे. उन्होंने 1994 से 1996 तक माधव राष्ट्रीय उद्यान (शिवपुरी) में डीएफओ के रूप में कार्य किया है.
अंबाडे ने 1996 से 1997 तक बालाघाट के रेंजर कॉलेज में प्रशिक्षक के रूप में और बाद में जगदलपुर में इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान के उप-निदेशक (1997-1998) के रूप में भी कार्य किया है.
उन्होंने वन प्रभागों और वन्यजीव अभयारण्यों में कई प्रमुख पदों पर काम किया है, जहां उन्होंने संरक्षण के प्रयासों और प्रशासनिक जिम्मेदारियों दोनों का प्रबंधन किया है. उन्हें नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य में प्रभागीय वन अधिकारी (डीएफओ) के रूप में पदोन्नत किया गया था. उनकी अन्य तैनातियां भोपाल और जबलपुर में भी हुईं.
2007 में, अंबाडे सिवनी में वन संरक्षक (अनुसंधान और विस्तार) बनाए गए. ये एक ऐसी भूमिका थी, जिसमें अनुसंधान पहल की देखरेख और वानिकी प्रथाओं का प्रसार शामिल था. इसके बाद उन्होंने भोपाल में मुख्य वन संरक्षक (परियोजना) जैसी वरिष्ठ भूमिकाओं में और भारत सरकार के कृषि मंत्रालय में प्रशासनिक पदों पर कार्य किया.
2019 में अंबाडे को नागपुर में क्षेत्रीय कार्यालय में अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक (एपीसीसीएफ) और उप महानिदेशक वन (केंद्रीय) बनाया गया था.