November 20, 2025 1:54 am

क्या यही होता है चौथी अर्थव्यवस्था बनने वाले देश में ? आर्थिक तंगी से हरियाणा के पंचकूला में एक ही परिवार के सात लोगों की मौत

  • खबर से हिल गया देश, जिम्मेदार कौन?
  • आर्थिक नीतियां या फिर बेदम योजनाएं
  • स्किल इंडिया और स्टार्टअप योजनाओं के मुंह पर तमाचा है आज की खबर
  • देहरादून के मित्तल फैमली ने बाबा बागेश्वर की कथा सुनने के बाद खाया जहर
  • टूर एंड ट्रेवल का बिजनेस था, नुकसान हुआ और कर्ज के बोझ तले दबता गया परिवार
  • तीन बच्चे, दो बुजुर्ग और प्रवीण मित्तल की मौत

नई दिल्ली। एक तरफ भाजपा की मोदी सरकार देश को विश्व में चौथे नंबर की अर्थव्यवस्था बनने का जश्न मना रहीं है वहीं आर्थिक तंगी से हरियाणा के पंचकूला में एक ही परिवार के सात लोगों की मौत की खबर ने पूरे देश में कोहराम मचा दिया है। यह खबर सिर्फ एक घटना नहीं है यह इस देश के जख्मों पर लगा एक और नमक है, एक और घाव है। एक ही परिवार के सात लोगों ने सामूहिक आत्महत्या कर ली। वे जहर खा गए। धीरे-धीरे तड़पते रहे, मरते रहे और दुनिया चुप रही। कोई उफ्फ तक न कर सका। ऐसा क्या हुआ होगा कि एक पूरा परिवार मौत को गले लगाने को विवश हो गया अब बस सवाल यही है कि जिंदगी की आस में आत्महत्या करते लोगों की इन मौतों का जिम्मेदार कौन है? मोदी सरकार की आर्थिक नीतियां या फिर चमत्कार के जरिये समस्याओं को हल करने में माहिर बाबा बागेश्वर या फिर स्वयं वह परिवार।

चौथे नम्बर की अर्थव्यवस्था पर भी सवाल

हाल ही में भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना है। सरकार इस खुशी में जश्न मना रही है। पीएम मोदी ने कहा है हमने कोरोना से लेकर प्राकृतिक आपदा तक झेली, तब हम दुनिया के चौथे नंबर की अर्थव्यवस्था बने हैं। विपक्ष सवाल पूछ रहा है आर्थिक नीतियों की आलोचना कर रहा है। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी भी यही कह रहे हैं कि योजानाएं सिर्फ चुनिंदा लोगों को लाभ पहुंचा रही है पूरी देश की जनता को नहीं।

क्या वित्त मंत्री को इस्तीफा नहीं देना चाहिए?

जब एक के बाद एक परिवार भूख, बेरोजग़ारी और कर्ज़ में डूब कर आत्महत्या कर रही हैं तब क्या किसी जिम्मेदार का इस्तीफा नहीं बनता? क्या ये सिर्फ आंकड़ों की असफलता है या मानवता की। अगर देश का वित्तीय मॉडल ही ऐसा है कि गरीब और गरीब होता जाए, और अमीर और भी अमीर—तो क्या उस मॉडल को चलाने वालों से कोई सवाल नहीं पूछा जाएगा? क्या वित्त मंत्री को नैतिकता के आधार पर जवाब नहीं देना चाहिए?

टूट गयी आस तो खाया जहर

पुलिस जांच में सामने आया है कि प्रवीण मित्तल और परिवार के अन्य सदस्य सोमवार को बाबा धीरेंद्र शास्त्री की पंचकूला सेक्टर-28 में चल रही कथा में भाग लेने के लिए पहुंचे थे। कथा से लौटते समय सेक्टर-27 में खड़ी एक कार में परिवार के सातों सदस्यों ने ज़हर खाकर जान दे दी। पुलिस को रात करीब 11 बजे सूचना मिली कि एक कार में कई लोग बेहोश पड़े हैं। जब पुलिस मौके पर पहुंची तो सभी को अस्पताल पहुंचाया गया। छह को अस्पताल में मृत घोषित कर दिया गया जबकि एक की हालत गंभीर थी जिसकी बाद में मौत हो गई। मृतकों में प्रवीण मित्तल, उनकी पत्नी, तीन बच्चे और दो बुजुर्ग सदस्य शामिल हैं। प्रारंभिक जांच में आत्महत्या की वजह कर्ज का बोझ और आर्थिक तंगी बताई जा रही है।जानकारी के अनुसार, प्रवीण मित्तल पर कुछ सालों से काफी कर्ज हो गया था। मित्तल ने कुछ समय पहले देहरादून में टूर एंड ट्रैवल्स का व्यवसाय शुरू किया था, लेकिन उन्हें भारी नुकसान हुआ। व्यवसाय में घाटे और बढ़ते कर्ज से मानसिक तनाव में आकर उन्होंने कथित रूप से यह कदम उठाया। देहरादून में उन्होंने टूर एंड ट्रैवल्स का बिजनेस शुरू किया था, लेकिन वह नहीं चला। इसके बाद परिवार कर्ज के तले दबता चला गया। इतनी तंगी हो गई थी कि घर खर्च चलाना मुश्किल हो गया था।

चमकती अर्थव्यवस्था बेदम जनता

सरकार कहती है कि अर्थव्यवस्था तेज़ी से बढ़ रही है। आंकड़े पेश किए जाते हैं। जीडीपी, विकास दर, स्टार्टअप इंडिया, आत्मनिर्भर भारत। लेकिन ज़मीनी सच्चाई क्या है? पंचकूला की घटना बताने के लिए काफी है कि इन योजनाओं का लाभ आम जनता तक नहीं पहुंच रहा है। समाजशास्त्री डी के त्रिपाठी कहते हैं कि मरने वाले परिवार ने जिंदगी के लिए जदृदोजहद की होगी। हर दरवाजे पर गया होगा। वह कहते हैं कि जिस परिवार ने आत्महत्या की वह बाबा बागेश्वर के दरबार में उम्मीद लेकर गए थे। लेकिन वहां भी उम्मीदी हाथ लगी होगी तभी इस प्रकार की हृदविदारक घटना को अंजाम दिया। उनके मुताबिक यह घटना उन धार्मिक प्रवचनों पर भी सवाल उठाती है जो लोगों को कर्म से ज्यादा चमत्कार की ओर मोड़ते हैं। यह धर्म का अपराध नहीं लेकिन एक बीमार समाज की तस्वीर है जो हर गहरी चोट का इलाज आध्यात्मिक मलहम से करना चाहता है।

यह केवल आत्महत्या नहीं व्यवस्था की हार है?

जब लोग मरने को जीने से आसान समझने लगें तो समझिए समाज बीमार है। जब अरबपति और अमीर होते जाएं और आम आदमी चुपचाप मरता जाए तो समझिए देश की आत्मा खतरे में है। और जब धर्म से ज्यादा उम्मीद हो और सरकार से ज्यादा निराशा तो समझिए पुनर्विचार का समय आ गया है। कांग्रेस प्रवक्ता मनीष हिंदवी कहते हैं कि वित्त मंत्री से सवाल पूछा जाना चाहिए कि बजट किसके लिए बनता है? सरकार केवल जीडीपी बढ़ाने पर ध्यान देती है मानव विकास पर नहीं। वह कहते हैं कि भारत में हर 40 सेकेंड में एक व्यक्ति आत्महत्या करता है। लेकिन क्या कभी यह चर्चा संसद में प्राथमिकता से होती है? स्कूली बच्चों पर पढ़ाई और नौकरी का बोझ है। मध्यम वर्ग पर महंगाई का दबाव है और महिलाओं पर घरेलू हिंसा और मानसिक यातना।

ढोल में पोल

सरकार स्टार्टअप इंडिया जैसी योजनाओं का प्रचार करती है। युवाओं को आत्मनिर्भर बनने की सलाह देती है। लेकिन जमीनी हकीकत ये है कि छोटे व्यापारियों को लोन नहीं मिलते जिनके पास थोड़ा पूंजी है वो भी महंगाई की भेंट चढ़ जाती है। पंचकूला की घटना यह बताने के लिए काफी है कि स्वरोजग़ार की यह स्कीमें सिर्फ अख़बारों और विज्ञापनों में अच्छी लगती हैं। असल जिंदगी में न तो ट्रेनिंग है, न समर्थन, न बाजार तक पहुँच।

Khabar 30 Din
Author: Khabar 30 Din

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