अब्दुल सलाम क़ादरी-एडिटर इन चीफ
छत्तीसगढ़ की राजनीति इन दिनों बेहद तेज़ उतार–चढ़ाव से गुजर रही है। भाजपा सरकार पर लगातार घोटालों के आरोप लगते रहे हैं, लेकिन हैरान करने वाली बात यह है कि नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत का इस मुद्दे पर अपेक्षाकृत शांत और नरम रवैया कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति और रणनीति पर कई सवाल खड़े कर रहा है। परंपरागत रूप से विपक्ष का काम सत्ता को कठघरे में खड़ा करना होता है, पर कांग्रेस की सक्रियता इस समय कहीं फीकी महसूस होती है।
भाजपा के घोटालों पर कांग्रेस की चुप्पी, जनता में गलत संदेश
राज्य में कोयला, शराब, रेत परिवहन, पीडीएस, और कई विभागीय अनियमितताओं को लेकर विपक्ष के पास पर्याप्त मुद्दे मौजूद हैं, लेकिन कांग्रेस का आक्रामक तेवर दिखाई नहीं देता।
नेता प्रतिपक्ष की भूमिका बेहद अहम होती है—वे पूरे विपक्ष के नेतृत्व का चेहरा होते हैं। ऐसे में चरणदास महंत का बार-बार नरम बयान देना, भाजपा पर सीधे हमले से बचना और कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर खुलकर ना बोलना कांग्रेस समर्थकों और कार्यकर्ताओं को भी असहज कर रहा है।
पार्टी के भीतर यह चर्चा तेज है कि क्या कांग्रेस एक मजबूत विपक्ष की भूमिका निभाने के लिए तैयार ही नहीं है, या फिर नेतृत्व स्तर पर ही समन्वय की कमी है?
कांग्रेस हर मोर्चे पर नाकाम क्यों दिख रही है?
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नेतृत्व का अभाव:
विधानसभा चुनाव के बाद से कांग्रेस नेतृत्व में स्पष्ट रणनीति की कमी नजर आई है। बड़े नेता अपनी-अपनी राजनीतिक जमीन सुरक्षित करने में लगे हैं, जबकि भाजपा सरकार पहले दिन से संगठनात्मक रूप से बेहद सक्रिय दिखाई दी। -
मुद्दों को उठाने में सुस्ती:
जल, जंगल, जमीन—ये वह मुद्दे थे जिन पर कांग्रेस ने वर्षों तक राजनीति की, लेकिन वर्तमान समय में इन पर पार्टी की आवाज कमजोर पड़ गई है।
वन भूमि, पट्टों, आदिवासी अधिकार, खनन नीति जैसे विषय सरकार के लिए चुनौती बन सकते थे, लेकिन विपक्ष इन पर एकजुट नहीं दिखा। -
समीकरणों में उलझी कांग्रेस:
कांग्रेस के कई नेता एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी करते देखे जाते हैं। संगठनात्मक एकजुटता प्रभावित होने से हर बड़ा मुद्दा आधे रास्ते में ही ठंडा पड़ जाता है। -
जमीनी स्तर पर कमजोर सक्रियता:
भाजपा बूथ स्तर पर लगातार सक्रिय है, जबकि कांग्रेस की इकाइयों में ऊर्जा की कमी साफ देखी जा सकती है।
इससे जनता के बीच यह संदेश जाता है कि विपक्ष जमीन पर नहीं, केवल बयानबाजी तक सीमित है।
जनता का उठता भरोसा—कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी
राजनीति में जनता का भरोसा सबसे बड़ा पूंजी होता है।
छत्तीसगढ़ की जनता यह महसूस कर रही है कि:
- कांग्रेस पिछली सरकार के कामों का बचाव भी मजबूती से नहीं कर पा रही,
- न ही वर्तमान सरकार की कमजोरियों को प्रभावशाली ढंग से सामने ला रही है।
इसका सीधा असर कांग्रेस की विश्वसनीयता पर पड़ रहा है।
यदि आम लोग यह महसूस करने लगें कि विपक्ष सक्षम नहीं है, तो वे धीरे-धीरे उससे उम्मीदें छोड़ देते हैं—और यही स्थिति कांग्रेस के लिए गंभीर संकेत है।
जल, जंगल, जमीन—कांग्रेस के परंपरागत मुद्दे गायब
आदिवासी क्षेत्रों में कांग्रेस की हमेशा से मजबूत पकड़ रही है, लेकिन आज वही क्षेत्र सवाल पूछ रहे हैं—
- वनभूमि पट्टों पर ठोस आवाज क्यों नहीं उठ रही?
- खनिज और खनन से जुड़ी नीतियों पर विपक्ष चुप क्यों है?
- आदिवासी अधिकारों से जुड़े कानूनों की सुरक्षा पर कांग्रेस का रुख खोखला क्यों दिखाई दे रहा?
जो मुद्दे कभी कांग्रेस की पहचान थे—वे अब हवा में विलीन होते लग रहे हैं।
आने वाले समय में क्या होगा?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है:
- यदि कांग्रेस इसी तरह फीकी भूमिका निभाती रही
- नेतृत्व स्पष्ट नहीं हुआ
- भाजपा के घोटालों पर सीधे, धारदार सवाल नहीं उठाए गए
- और जमीनी स्तर पर संगठन नहीं मजबूत किया गया
तो आने वाले समय में यही रुझान पार्टी के लिए बहुत बड़ी मुसीबत बन सकता है।
जनता विपक्ष को केवल सत्ता पलटने के लिए नहीं, बल्कि लोकतंत्र में एक मजबूत निगरानीकर्ता के रूप में देखना चाहती है।
कांग्रेस इस भूमिका को जितना देर से निभाएगी, उतना नुकसान उठाना पड़ेगा।
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के सामने चुनौती केवल भाजपा नहीं है—चुनौती खुद अपनी राजनीतिक निष्क्रियता भी है।
नेता प्रतिपक्ष का चौंकाने वाला रवैया, भाजपा पर कमजोर घेराबंदी, और जनता की बदलती धारणा—ये सभी संकेत बताते हैं कि कांग्रेस यदि अभी भी नहीं जागी, तो आने वाला वक्त उसके लिए बेहद कठिन साबित हो सकता है।







