रुस और भारत की दोस्ती हमेशा से ही बहुत मजबूत रही है. अब इस दोस्ती को और गहरा करने के लिए रूस अपनी यूनिवर्सिटीज में हिंदी भाषा को बढ़ावा दे रहा है. रूस की सरकार में विज्ञान और उच्च शिक्षा के उप मंत्री, कॉन्स्टेंटिन मोगिलेव्स्की ने हाल ही में कहा है कि वो चाहते हैं कि रूस के ज्यादा से ज्यादा छात्र हिंदी सीखें.
रूस क्यों चाहता है कि उसके छात्र हिंदी पढ़ें?
उप मंत्री मोगिलेव्स्की ने इसके पीछे एक बड़ी वजह बताई. उन्होंने कहा कि भारत आज दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है और बहुत से भारतीय अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में अंग्रेजी से ज्यादा हिंदी में बात करना पसंद करते हैं. इसलिए, भारत को और करीब से समझने के लिए हिंदी सीखना बहुत जरूरी है.
उन्होंने यह भी बताया कि अब रूस के युवाओं के लिए हिंदी सीखना पहले से कहीं ज्यादा आसान हो गया है. अकेले राजधानी मॉस्को में ही कई बड़ी यूनिवर्सिटीज जैसे MGIMO, RSUH, और मॉस्को स्टेट यूनिवर्सिटी में हिंदी पढ़ाई जा रही है. अच्छी बात यह है कि हिंदी में एडमिशन लेने वाले छात्रों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, और क्लास में छात्रों के ग्रुप्स भी पहले से दो-तीन गुना बड़े हो गए हैं. यह क्रेज सिर्फ मॉस्को तक ही सीमित नहीं है, बल्कि सेंट पीटर्सबर्ग और कजान जैसे बड़े शहरों में भी हिंदी सीखने के मौके बढ़ रहे हैं.
दोस्ती की कसौटी पर भारत-रूस
रूस का हिंदी को यह बढ़ावा ऐसे समय में दिया जा रहा है, जब दोनों देशों की दोस्ती एक बार फिर दुनिया के सामने मिसाल बन रही है. एक तरफ अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस से तेल खरीदने के लिए भारत पर टैरिफ को दोगुना (50 प्रतिशत) कर दिया है. लेकिन भारत किसी भी दबाव के आगे नहीं झुका है और रूस के साथ तेल का व्यापार जारी रखने का फैसला किया है.
भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी कुछ समय पहले कहा था कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद की दुनिया में भारत और रूस के रिश्ते “सबसे स्थिर” रहे हैं. यह दिखाता है कि दोनों देशों का एक-दूसरे पर कितना गहरा भरोसा है.
इस दोस्ती को और मजबूती देने के लिए रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी इसी साल दिसंबर में भारत की यात्रा पर आएंगे.
कुल मिलाकर, रूस का हिंदी को बढ़ावा देना सिर्फ एक भाषा का प्रचार नहीं है, बल्कि यह भारत के साथ अपनी गहरी और समय की कसौटी पर खरी उतरी दोस्ती का एक और सबूत है.
