बाज़ार का अनुमान है कि टैरिफ़ बढ़ने के बाद कंपनियों का मुनाफ़ा प्रभावित होगा.
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने टैरिफ़ की घोषणा करके दुनियाभर के शेयर बाज़ारों में खलबली मचा दी है.
पर क्या इसका मतलब यह है कि दुनिया मंदी की ओर बढ़ रही है?
सबसे पहले इस बात पर ध्यान दिए जाने की ज़रूरत है कि शेयर बाज़ार में जो कुछ भी होता है, वो अर्थव्यवस्था में होने वाले बदलावों से अलग होता है.
यानी, शेयर की क़ीमतों में गिरावट का मतलब हमेशा आर्थिक संकट नहीं होता. लेकिन कभी-कभी ऐसा होता है. किसी कंपनी की स्टॉक मार्केट वेल्यू में गिरावट का अर्थ है कि भविष्य में उसके मुनाफ़े के मूल्यांकन में बदलाव.
दरअसल, बाज़ार का अनुमान है कि टैरिफ़ बढ़ने के बाद चीज़ों की लागत बढ़ेगी. इसकी वजह से कंपनियों के मुनाफ़े में गिरावट आएगी.
लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि मंदी भी आएगी ही. पर ट्रंप की टैरिफ़ घोषणाओं के बाद ऐसा होने की आशंका स्पष्ट रूप से बनी हुई है.
आर्थिक मंदी की क्या परिभाषा है?
जब किसी अर्थव्यवस्था में लगातार दो तिमाहियों तक ख़र्च या निर्यात सिकुड़ जाता है तो माना जाता है कि मंदी आ गई है.
पिछले साल अक्तूबर और दिसंबर के बीच, ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था में 0.1 फ़ीसदी की बढ़त देखी गई थी. पिछले महीने का डेटा बताता है कि जनवरी में इस अर्थव्यवस्था में इतनी ही गिरावट देखी गई.
ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था ने फ़रवरी में कैसा प्रदर्शन किया, इसका पहला अनुमान इस शुक्रवार को जारी किया जाएगा.
तो जहाँ तक ब्रिटेन की बात है, हमें अभी और आंकड़ों का इंतज़ार करना होगा.
शेयर बाज़ार में उठा पटक
Getty Imagesसोमवार को दुनिया भर के शेयर बाज़ार लुढ़क गए.
लेकिन ये तो बिल्कुल साफ़ है कि दुनिया भर के शेयर बाज़ारों में हुई मार धाड़ से चिंताजनक नुकसान हुआ है.
बैंकों को आमतौर पर अर्थव्यवस्था के प्रतिनिधि के तौर पर देखा जाता है.
बाज़ार के एक विशेषज्ञ ने आज मुझसे कहा, “एक बात जिसकी वजह से मेरी सांसें अटकी, वो है बैंकों के शेयरों में गिरावट.”
एचएसबीसी और स्टैंडर्ड चार्टर्ड ऐसे दो बड़े बैंक हैं जो पूर्वी और पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं के बीच सीढ़ी की तरह काम करते हैं.
इन दोनों ही अहम बैंकों में 10 फ़ीसदी की गिरावट आई. बाद में थोड़ी बहुत ख़रीदारी की बदौलत इन दोनों की हालत सुधरी.
लेकिन चिंता सिर्फ़ शेयर बाज़ारों में मची उठा पटक की ही नहीं है. फ़िक्र की बात तो कमोडिटी एक्सचेंजों को लेकर है.
उनमें भी चेतावनी के संकेत दिख रहे हैं. तांबे और तेल की क़ीमतों को वैश्विक आर्थिक सेहत का बैरोमीटर माना जाता है. ट्रंप के टैरिफ़ की घोषणा के बाद तांबे और तेल की क़ीमतों में 15 फ़ीसदी से ज़्यादा की गिरावट आई है.
पहले कब आई थी मंदी
दुनिया में आर्थिक मंदी आना आम घटना नहीं है. दरअसल ‘वास्तविक मंदी’ के दौर काफ़ी कम रहे हैं.
अब तक तीन ऐसे दौर रहे हैं जिन्हें मंदी कहा गया है –
- 1930 के दशक में आई मंदी को ‘द ग्रेट डिप्रेशन’ कहा जाता है
- 2008 में आर्थिक संकट को ‘ग्लोबल फ़ाइनेंशियल क्राइसिस’ का नाम दिया गया
- 2020 में कोविड महामारी के कारण दुनिया भर की अर्थव्यवस्था का पहिया थम गया
इस बार भी ऐसा ही कुछ हो इसकी संभावना फ़िलहाल कम है. लेकिन ज़्यादातर आर्थिक विश्लेषकों की नज़र में अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ में मंदी की आशंका बरक़रार है.
