नई दिल्ली: कांग्रेस ने रविवार (6 जुलाई) को एक बयान में कहा कि कोई भी देश जिसकी गरीबी दर 28.1% है, जैसा कि विश्व बैंक के अनुसार 2022 में भारत में था, वह दुनिया के सबसे समान समाजों में से एक होने का दावा नहीं कर सकता है.
इसने सरकार से आग्रह किया कि वह देश की आर्थिक वास्तविकता को बेहतर ढंग से प्रतिबिंबित करने के लिए आधिकारिक गरीबी माप को अपडेट करे.
अप्रैल में जारी विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, और 5 जुलाई को केंद्र सरकार की प्रेस विज्ञप्ति में इस पर प्रकाश डाला गया, भारत का उपभोग-आधारित असमानता का गिनी गुणांक 2011-12 में 28.8 से 2022-23 में 25.5 तक गिर गया. केंद्र के अनुसार, इससे भारत स्लोवाक गणराज्य, स्लोवेनिया और बेलारूस के बाद ‘दुनिया का चौथा सबसे अधिक समानता वाला देश’ बन गया है.
वेतन असमानता
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, रविवार को कांग्रेस ने विश्व बैंक की रिपोर्ट के अन्य पहलुओं की ओर ध्यान दिलाया, जिसका सरकारी प्रेस विज्ञप्ति में उल्लेख नहीं किया गया था – भारत में उच्च वेतन असमानता और उपभोग असमानता में गिरावट का एक संभावित कारण.
कांग्रेस ने अपने प्रेस वक्तव्य में अप्रैल की विश्व बैंक की उसी रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा, ‘भारत में वेतन असमानता बहुत अधिक है, 2023-24 में शीर्ष 10% की औसत कमाई निचले 10% की तुलना में 13 गुना अधिक है.’
उपभोग सर्वेक्षण में बदलाव
विश्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘नमूनाकरण और डेटा की सीमाएं बताती हैं कि उपभोग असमानता को कम करके आंका जा सकता है’, यह एक ऐसा तथ्य है जिसका कांग्रेस ने जिक्र किया.
विश्व बैंक ने आगे कहा कि 2022-23 के घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण में प्रश्नावली डिजाइन, सर्वेक्षण कार्यान्वयन और नमूनाकरण में परिवर्तन सुधार हैं, लेकिन साथ ही समय के साथ तुलना करने के लिए चुनौतियां भी पेश करते हैं.
कांग्रेस ने कहा, ‘यह याद रखना ज़रूरी है कि ये बदलाव तब किए गए जब सरकार ने सर्वेक्षण के पिछले संस्करण (2017-18 में आयोजित) को खारिज कर दिया था, क्योंकि इसमें ग्रामीण क्षेत्रों में खपत में गिरावट दिखाई गई थी. एक निम्न मध्यम आय वाले देश के रूप में भारत में गरीबी को मापने के लिए उचित दर 3.65 डॉलर/दिन है.’
इस माप का उपयोग करते हुए विश्व बैंक का कहना है कि 2022 में भारत की गरीबी दर 28.1% होगी.
‘गरीबी रेखा को अपडेट करें’
कांग्रेस के बयान में कहा गया है, ‘कोई भी देश जिसकी गरीबी दर 28.1% है, वह दुनिया के सबसे समान समाजों में से एक होने का उचित दावा नहीं कर सकता है. इसलिए रिपोर्ट स्पष्ट है: गरीबी चिंताजनक रूप से उच्च बनी हुई है और असमानता भी है.’
इस मुद्दे के समाधान के लिए कांग्रेस के कई सुझावों में से एक यह है कि सरकार अपनी आधिकारिक गरीबी रेखा को अपडेट करे, ऐसा कुछ जो 2014 में रंगराजन समिति द्वारा अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के बाद से नहीं किया गया है.
कांग्रेस ने कहा, ‘बढ़ती असमानता अब हमारी आर्थिक वृद्धि की प्रकृति में मजबूती से समाहित हो गई है और मोदी सरकार की नीतियों से इसकी गति और तेज हो गई है तथा विशेषाधिकार प्राप्त लोगों और वंचितों के बीच बढ़ती खाई को अब नकारा नहीं जा सकता.’
‘मोदी सरकार ने बौद्धिक बेईमानी की सारी हदें पार कर दीं’
कांग्रेस ने सोमवार (7 जुलाई) को सरकार के इस दावे को ‘धोखाधड़ी’ और ‘बौद्धिक रूप से बेईमानी‘ करार दिया कि भारत दुनिया के सबसे अधिक समान देशों में से एक है और कहा कि मोदी सरकार ‘डेटा में हेरफेर’ करके बढ़ती असमानताओं की कठोर वास्तविकता को आसानी से नहीं टाल सकती.
कांग्रेस महासचिव और संचार प्रभारी जयराम रमेश ने कहा, ‘आप क्रोनोलॉजी समझिए. विश्व बैंक ने अप्रैल 2025 में भारत के लिए गरीबी और समानता संबंधी अपना संक्षिप्त विवरण जारी किया. इसके तुरंत बाद कांग्रेस ने एक बयान जारी किया, जिसमें विश्व बैंक द्वारा भारत में गरीबी और असमानता के लिए दिए गए कई चेतावनी संकेतों की पहचान की गई – जिसमें सरकारी आंकड़ों में असमानता को कम करके आंकने की चेतावनी भी शामिल थी.’
रमेश ने एक बयान में कहा कि इसके जारी होने के तीन महीने बाद 5 जुलाई को मोदी सरकार की जयकारा मंडली और प्रेस इन्फर्मेंशन ब्यूरो ने एक प्रेस विज्ञप्त जारी कर यह चौंकाने वाला और जमीनी हकीकत से कटा हुआ दावा कर डाला कि भारतीय समाज दुनिया का सबसे समानता वाले समाजों में से एक है.
कांग्रेस ने कहा कि सरकार की व्याख्या उन आंकड़ों पर टिकी है जो न केवल सीमित हैं बल्कि जिनकी गुणवत्ता पर भी भरोसा नहीं किया जा सकता. इसके अलावा सरकार ने गरीबी मापने के लिए पुराने पैमानों का इस्तेमाल किया है जो आज की असली हालात को सही तरीके से नहीं दिखाते.
उन्होंने दावा किया कि अपने निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए मोदी सरकार ने जानबूझकर दो अलग-अलग मानदंडों का उपयोग करना चुना: भारत में उपभोग असमानता और अन्य देशों में आय असमानता.
रमेश ने कहा, ‘दो चीजों की तुलना करने के लिए जरूरी होता है कि उन्हें एक ही मानक पर परखा जाए. यह केवल आर्थिक विश्लेषण का मूल सिद्धांत नहीं है, बल्कि सामान्य समझ की बात भी है.’
उन्होंने कहा कि भारत में उपभोग आधारित आसमनता को मापने का चुनाव भी पूरी तरह से जानबूझकर किया गया. दरअसल उपभोग आधारित आसमनता हमेशा आय आधारित असमानता से कम होती है. क्योंकि अमीर लोग अपनी आय का बड़ा हिस्सा बचा लेते हैं और खर्च नहीं करते.
