November 20, 2025 3:25 am

वन परीक्षेत्र मनेन्द्रगढ़ के खिलाफ 25 याचिकाएं होंगी हाईकोर्ट में दाखिल

अश्वनी सोनी-सम्पादक रायपुर(खबर 30 दिन)
  • RTI के जवाब में टालमटोल और भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने का आरोप, लाखों के घोटाले की आशंका

कोरिया/मनेन्द्रगढ़/रायपुर (छत्तीसगढ़), 7 अगस्त 2025 — मनेन्द्रगढ़ वन परीक्षेत्र एक बार फिर विवादों के घेरे में आ गया है। सूचना के अधिकार (RTI) के तहत मांगी गई जानकारी को देने से इनकार करने और धारा 11 एवं 8 की आड़ में भ्रष्टाचार छुपाने की कोशिशों के खिलाफ अब न्यायिक कार्यवाही की तैयारी की जा रही है। वन विभाग की कथित मनमानी और अपारदर्शिता को लेकर 25 जनहित याचिकाएं (PIL) छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में प्रस्तुत की जाएंगी।

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सूचना मांगने पर गोपनीयता की ढाल

वन विभाग से जुड़े मामले में आवेदक अब्दुल सलाम कादरी ने वर्ष 2024-25 के दौरान 25 अलग-अलग आरटीआई आवेदनों के माध्यम से कई महत्वपूर्ण जानकारियां मांगी थीं,

लेकिन इन तमाम जानकारियों को “गोपनीय” करार देते हुए विभाग ने जानकारी देने से साफ इनकार कर दिया। अधिनियम की धारा 8(1)(j) और धारा 11 का हवाला देते हुए अधिकारियों ने यह तर्क दिया कि जानकारी सार्वजनिक करने से “तीसरे पक्ष की निजता का उल्लंघन होगा”, जबकि अधिकांश मांगी गई जानकारी सार्वजनिक महत्व की है।

ईमानदारी होती तो सूचना देने में संकोच क्यों?

जनसूचना अधिकार की इस रवैये पर आरटीआई कार्यकर्ता के  अधिवक्ता व्ही. के. अंसारी ने कहा, “यदि विभाग ईमानदार होता तो जानकारी देने में कोई हिचक नहीं होती। लेकिन जिस प्रकार अधिनियम की गलत व्याख्या कर जानकारियां छुपाई गई हैं, उससे स्पष्ट है कि भीतर कुछ न कुछ बड़ा गड़बड़ है।”

उन्होंने आगे कहा कि सरकारी पैसे का प्रयोग यदि सही तरीके से हुआ होता तो विभाग खुद इन जानकारियों को अपनी वेबसाइट पर डालता। इसके बजाय विभाग सवाल पूछने वालों को “परेशान करने की नीति” अपना रहा है।

25 PIL के जरिए भ्रष्टाचार का होगा पर्दाफाश

मामले को गंभीरता से लेते हुए अब अधिवक्ता अंसारी और उनके सहयोगी अधिवक्ता आरिफ खान, राजकुमार ठाकुर, मोहम्मद मुस्तकीम, अफाक खान और अन्य ने मिलकर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में 25 जनहित याचिकाएं दाखिल करने का निर्णय लिया है। साथ ही छत्तीसगढ़ राज्य सूचना आयोग को भी पार्टी बनाने का निर्णय लिया गया है, यह याचिकाएं मनेन्द्रगढ़ वन विभाग के कार्यों में व्याप्त अनियमितताओं और भ्रष्टाचार को उजागर करने की दिशा में एक बड़ा कदम मानी जा रही हैं।

संवेदनशील जानकारियां क्यों छुपाई जा रही हैं?

नोटिस में यह भी सवाल उठाया गया है कि आम जनता से जुड़ी जानकारियों — जैसे कर्मचारियों के वेतन, कार्य व वन्यजीवों की मौत, कार्य का विवरण, कैम्पा और रेगुलर मद, खरीदी की गई सामग्रियों से जुड़ी रिपोर्ट — को गोपनीय कैसे माना जा सकता है? क्या यह सब किसी बड़े घोटाले को छुपाने का प्रयास है?

आगे की रणनीति

कार्यकर्ता अब इस मामले को जनसुनवाई से लेकर न्यायालय तक पहुंचाने की योजना बना रहे हैं। साथ ही वे चाहेंगे कि उच्च न्यायालय यह तय करे कि किस प्रकार की जानकारियां वाकई “गोपनीय” हैं और किन्हें सार्वजनिक करना नागरिकों का अधिकार है।

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