September 14, 2025 8:26 am

बिलासपुर- राजसात वाहन रिहाई पर बवाल: CCF प्रभात मिश्रा के आदेश से विभाग में मचा हड़कंप, भ्रष्टाचार की बू!

अब्दुल सलाम क़ादरी-प्रधान संपादक

बिलासपुर। अरपा नदी किनारे अवैध रेत उत्खनन में पकड़े गए वाहनों को लेकर बिलासपुर वन वृत्त में बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। विभागीय सूत्रों के अनुसार, अपीलीय अधिकारी एवं मुख्य वन संरक्षक (CCF) प्रभात मिश्रा ने लाखों रुपये की डील के बाद राजसात वाहनों को मुक्त कर दिया। इस आदेश ने न केवल पूरे प्रकरण की गंभीरता पर पानी फेर दिया, बल्कि वन विभाग की निचली टीम की कार्रवाई पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।

कैसे हुआ पूरा मामला?

30 सितम्बर 2024 की रात रतनपुर परिक्षेत्र के वनकर्मियों ने गश्त के दौरान अरपा नदी किनारे भारी मात्रा में अवैध रेत उत्खनन पकड़ा। मौके से हाईवा, ट्रैक्टर और पोकलेन सहित कई वाहन जप्त किए गए। दस्तावेज़ों के अनुसार कुल 10 वाहन और लगभग 28 घन मीटर रेत जप्त की गई थी।

प्रकरण भारतीय वन अधिनियम 1927 की धाराओं के तहत पंजीबद्ध किया गया और IFS अधिकारी (तत्कालीन प्राधिकृत अधिकारी) ने 27 नवम्बर 2024 को स्पष्ट आदेश पारित कर वाहनों को राजसात कर शासकीय संपत्ति घोषित कर दिया।

CCF ने आदेश पलटा – ‘जंगल के भीतर नहीं, किनारे वाहन खड़े थे’

वाहन मालिकों द्वारा की गई अपील पर अपीलीय अधिकारी प्रभात मिश्रा ने पहले आदेश को पलटते हुए कहा कि –

घटना स्थल का सही उल्लेख नहीं है।

जिन वन कक्षों (1050, 2538, 2555) का हवाला दिया गया, वे नक्शे के अनुसार घटना स्थल से दूर हैं।

वाहन जंगल के भीतर नहीं बल्कि किनारे खड़े थे?

यह सिद्ध नहीं होता कि वाहनों में भरी रेत अरपा नदी से ही उत्खनित है। इन्हीं आधारों पर 23 जून 2025 को संशोधित आदेश पारित कर वाहनों को मुक्त कर दिया गया।

विभागीय सूत्रों का बड़ा खुलासा

सूत्रों का दावा है कि –

लाखों रुपये की डील के बाद यह आदेश पारित किया गया।

पहले IFS अधिकारी ने राजसात का ठोस आदेश दिया था, जिसे प्रभात मिश्रा ने पलट दिया।

तकनीकी शब्दों और स्थान की अस्पष्टता को आधार बनाकर अवैध रेत परिवहन के वाहन छोड़ दिए गए।

इस पूरे प्रकरण से यह संदेश गया कि “ऊपरी स्तर पर लेन-देन हो जाए तो राजसात वाहनों को भी छुड़ाया जा सकता है।”

सिंह बंगला की दबंगई और हस्तक्षेप

विभागीय अधिकारियों के बीच चर्चा है कि रायपुर स्थित सिंह बंगला से लगातार दबाव बनाया जाता है –

किस रेंजर, डिप्टी रेंजर या वन रक्षक को हटाना या प्रभार दिलाना है।

कौन-सा ठेकेदार काम करेगा।

विभागीय कार्यों का बंटवारा कैसे होगा।

वरिष्ठ अधिकारियों के मुताबिक अब विभागीय प्रमुख तक मानने लगे हैं कि “हमारे हाथ में कुछ नहीं है, सारे आदेश सिंह बंगला से आते हैं।”

वन मंत्री और मुख्यमंत्री पर सवाल

इस पूरे प्रकरण ने कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं –

क्यों मुख्यमंत्री और वन मंत्री प्रभात मिश्रा जैसे अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं कर पा रहे?

क्या विभाग RSS और राजनीतिक दबाव में बंध गया है?

सिंह बंगला की आधिकारिक स्थिति क्या है — क्या यह सरकारी दफ्तर है या सिर्फ शक्ति का केंद्र?

अगर विभागीय टीम (वन रक्षक से लेकर डिप्टी रेंजर तक) मिलकर कार्रवाई करती है, तो उनके आदेश को क्यों दरकिनार किया जाता है?

निष्कर्ष

यह मामला केवल एक वाहन की रिहाई का नहीं है, बल्कि इसने वन विभाग की कार्यप्रणाली, राजनीतिक हस्तक्षेप और भ्रष्टाचार की परतें खोल दी हैं। अगर हर जप्ती के बाद ऊपरी स्तर पर “डील” के जरिए वाहन छुड़ते रहे, तो निचले स्तर पर काम कर रहे कर्मचारियों का मनोबल टूटना तय है।

Khabar 30 Din
Author: Khabar 30 Din

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