नई दिल्ली: विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ ब्लॉक के सांसदों ने केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव को लिखे पत्र में डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (डीपीडीपी) अधिनियम की धारा 44 (3) को निरस्त करने की मांग की है और कहा है कि यह प्रावधान सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम को नष्ट करके नागरिकों के अधिकारों और प्रेस की स्वतंत्रता पर ‘प्रतिकूल प्रभाव’ डालता है.
इस संबंध में गुरुवार (10 अप्रैल) को गौरव गोगोई (कांग्रेस), एमएम अब्दुल्ला (द्रविड़ मुनेत्र कषगम), प्रियंका चतुर्वेदी (शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट)), जावेद अली (समाजवादी पार्टी), जॉन ब्रिटास (भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी)) और नवल किशोर (राष्ट्रीय जनता दल) द्वारा संबोधित एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में सांसदों ने कहा कि मंत्री को लिखे पत्र पर पहले से ही 120 हस्ताक्षर शामिल हैं और इसे आने वाले दिनों में भेजा जाएगा.
द वायर द्वारा देखे गए इस पत्र पर कांग्रेस, डीएमके, शिवसेना (यूबीटी), समाजवादी पार्टी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार) के सदस्यों ने हस्ताक्षर किए हैं. इसमें लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव के हस्ताक्षर भी शामिल हैं और वैष्णव से आरटीआई अधिनियम में संशोधन करने वाली धारा 44(3) को निरस्त करने का आग्रह किया गया है.
इस पत्र कहा गया है, ‘इस संशोधन से लोगों की आरटीआई अधिनियम के तहत महत्वपूर्ण जानकारी तक पहुंचने की क्षमता को कम करने का गंभीर खतरा पैदा हो गया है. विशेष रूप से, आरटीआई अधिनियम की धारा 8(i)(j) में संशोधन, जैसा कि डीपीडीपी अधिनियम की धारा 44(3) द्वारा पेश किया गया है, सभी व्यक्तिगत सूचनाओं को प्रकटीकरण से छूट देने का प्रयास करता है.’
पत्र में कहा गया है कि धारा 44(3) आरटीआई अधिनियम की धारा 8(i)(j) के भीतर अपवादों को हटा देती है.
इसके अनुसार, ‘पहले, व्यक्तिगत जानकारी को केवल तभी रोका जा सकता था जब वह सार्वजनिक गतिविधि या हित से संबंधित न हो या यदि उसके प्रकटीकरण से निजता का अनुचित उल्लंघन हो. इसके अलावा संशोधन धारा 8(1) के महत्वपूर्ण प्रावधान को हटाता है, जिसमें कहा गया था कि ‘जो जानकारी संसद या राज्य विधानमंडल को देने से इनकार नहीं की जा सकती, उसे किसी भी व्यक्ति को देने से इनकार नहीं किया जाएगा.’
पत्र में कहा गया है, ‘डीपीडीपी अधिनियम के माध्यम से किए गए संशोधन आरटीआई अधिनियम को काफी कमजोर करते हैं और इसका नागरिकों के सूचना के मौलिक अधिकार पर हानिकारक प्रभाव पड़ेगा. हमारा मानना है कि गोपनीयता और डेटा संरक्षण के लिए कानूनी ढांचे को आरटीआई अधिनियम का पूरक होना चाहिए और किसी भी तरह से इसे कमजोर नहीं करना चाहिए.’
इस बारे में कांग्रेस नेता गौरव गोगोई ने कहा कि यह विधेयक ऐसे वक्त पारित किया गया जब पूरा देश मणिपुर के संदर्भ में लाए गए अविश्वास प्रस्ताव को देख रहा था. इस वजह से इस अहम विधेयक पर विचार-विमर्श किया जाना चाहिए था.
गोगोई ने कहा, ‘हालिया संशोधनों का नागरिकों के अधिकारों और प्रेस की स्वतंत्रता पर खतरनाक प्रभाव पड़ा है.’
उन्होंने कहा, ‘अगर आप जानना चाहते हैं कि बिहार में जो पुल ढह गए, उनके टेंडर अधिकारियों ने किस ठेकेदार को दिए थे, तो इस कानून के ज़रिए आप ऐसा नहीं कर पाएंगे. ‘
उन्होंने आरोप लगाया कि डीपीडीपी एक्ट के तहत बहुत ही गोपनीय, दुर्भावनापूर्ण तरीके से लोगों के सूचना के अधिकार को छीन लिया गया है.
ब्रिटास ने कहा कि आरटीआई अधिनियम ‘भारत के आधुनिक लोकतंत्र बनने की दिशा में एक मील का पत्थर है – प्रशासन में पारदर्शिता लाने और नागरिकों और कार्यकर्ताओं को सशक्त बनाने के लिए.’
उन्होंने कहा, ‘मोदी सरकार ने एक ही झटके में आरटीआई को खत्म कर दिया है. इससे प्रेस की स्वतंत्रता पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा.’
ब्रिटास ने कहा कि अधिनियम के कई प्रावधान कानून का अध्ययन करने वाली संयुक्त संसदीय समिति की रिपोर्ट के विपरीत हैं.
इससे पहले विपक्षी सांसद, जो संचार और सूचना प्रौद्योगिकी पर विभाग-संबंधित संसदीय स्थायी समिति के सदस्य थे, ने द वायर को बताया कि समिति ने 26 जुलाई, 2023 को ‘नागरिकों की डेटा सुरक्षा और गोपनीयता’ शीर्षक वाली एक रिपोर्ट को अपनाया था, जिसमें डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक की जांच की गई थी और उसी पर समिति की सिफारिशें शामिल थीं.
हालांकि, समिति में विपक्षी सदस्यों ने कहा कि वे रिपोर्ट को मुख्य रूप से इसलिए स्वीकार नहीं करते क्योंकि उनके अनुसार, इसे संसदीय प्रक्रिया को दरकिनार करके समिति द्वारा तैयार किया गया था. अगस्त 2023 में जब विधेयक संसद में पेश किया गया था, तब विपक्षी सदस्यों ने आरटीआई अधिनियम पर कानून के प्रभाव के बारे में भी चिंता जताई थी. आखिर में इसे विपक्षी सदस्यों के वॉकआउट के कारण इसे पारित कर दिया गया.
अली ने गुरुवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि जब मोदी सरकार ने 2019 में आरटीआई एक्ट में संशोधन किया था, तब कानून को कमजोर कर दिया गया था.
उन्होंने कहा, ‘अब इस डेटा प्रोटेक्शन एक्ट के जरिये सरकार जनता के बचे हुए अधिकारों को भी खत्म करने जा रही है. इस सरकार को जानकारी छुपाना बहुत पसंद है, वह नहीं चाहती कि जनता को जानकारी मिले.’
प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि इस संशोधन से सूचना के अधिकार को ‘अज्ञानता की राह’ पर ले जाया जा रहा है.
उन्होंने कहा, ‘आप सूचना के अधिकार को अज्ञानता की राह पर ले जा रहे हैं, ताकि लोगों को किसी भी भ्रष्टाचार के बारे में पता न चले. 2019 में डीपीडीपी अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं था; 2021 में, जब यह जेपीसी [संयुक्त संसदीय समिति] के पास गया, तो ऐसा कोई प्रावधान नहीं था. 2023 में, वे ये प्रावधान लाए. हमने अपने पत्र में जिन बदलावों का संकेत दिया है, वे इसलिए किए गए हैं ताकि प्रेस की स्वतंत्रता और कम न हो.’
