अब्दुल सलाम कादरी-एडीटर इन चीफ
परिचय
भारत, जो विभिन्न धर्मों, भाषाओं और संस्कृतियों का संगम है, लंबे समय से हिन्दू-मुस्लिम एकता और विभाजन दोनों का गवाह रहा है। लेकिन पिछले कुछ दशकों में धार्मिक ध्रुवीकरण एक गहरी राजनीतिक रणनीति बन गई है। चुनावी फायदे, सत्ता बनाए रखने और जनता का ध्यान असली मुद्दों से भटकाने के लिए हिन्दू-मुस्लिम नफरत को उभारा जाता है। इस रिपोर्ट में हम यह समझने की कोशिश करेंगे कि यह नफरत कैसे राजनीतिक कारणों से बढ़ाई जाती है और इसके पीछे कौन-से कारक काम कर रहे हैं।
इतिहास में हिन्दू-मुस्लिम संबंध
भारत में हिन्दू और मुस्लिम समुदाय का सह-अस्तित्व सैकड़ों वर्षों से रहा है। मुगलों के दौर से लेकर ब्रिटिश शासन तक, दोनों समुदायों ने कला, संस्कृति और व्यापार में योगदान दिया। हालांकि, अंग्रेज़ों की “फूट डालो और राज करो” नीति के कारण हिन्दू-मुस्लिम संबंधों में खटास आई। 1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन ने इस दरार को और गहरा कर दिया, जिसके बाद से समय-समय पर दंगे और सांप्रदायिक तनाव देखने को मिले हैं।
राजनीतिक कारण जो हिन्दू-मुस्लिम नफरत को बढ़ावा देते हैं
1. चुनावी ध्रुवीकरण (Vote Bank Politics)
राजनीतिक दल अक्सर हिन्दू और मुस्लिम समुदायों को अलग-अलग वोट बैंक के रूप में देखते हैं। कुछ पार्टियां खुद को हिन्दू समर्थक बताकर बहुसंख्यक वर्ग को आकर्षित करने की कोशिश करती हैं, जबकि कुछ खुद को मुस्लिम हितैषी दिखाने का प्रयास करती हैं। चुनावों से पहले धार्मिक मुद्दों को उछालना, उग्र भाषण देना और सांप्रदायिक तनाव को भड़काना आम बात हो गई है।
2. धार्मिक मुद्दों का राजनीतिकरण
राम मंदिर, गोहत्या, लव जिहाद, मदरसा शिक्षा जैसे मुद्दों को राजनीतिक रूप से इस्तेमाल किया जाता है। इन मुद्दों को जानबूझकर उभारा जाता है ताकि हिन्दू और मुस्लिम समुदायों के बीच मतभेद बढ़े और राजनेताओं को इसका फायदा मिले।
3. फेक न्यूज़ और सोशल मीडिया प्रोपेगेंडा
आज के डिजिटल दौर में सोशल मीडिया गलत सूचनाओं और अफवाहों को फैलाने का एक बड़ा माध्यम बन गया है। कई राजनीतिक संगठन और आईटी सेल धार्मिक उन्माद फैलाने के लिए झूठे वीडियो, मॉर्फ्ड तस्वीरें और भड़काऊ पोस्ट चलाते हैं। इससे दोनों समुदायों के बीच अविश्वास बढ़ता है और नफरत की दीवारें और ऊंची हो जाती हैं।
4. सांप्रदायिक दंगे और हिंसा
कई बार दंगे और हिंसा राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए भड़काए जाते हैं। चुनाव से पहले या किसी बड़े राजनीतिक घटनाक्रम से पहले अचानक किसी मुद्दे को लेकर दंगे भड़कना संयोग नहीं बल्कि एक सोची-समझी रणनीति होती है। दंगों के बाद राजनीतिक दल खुद को हिन्दू या मुस्लिम समर्थक बताकर फायदा उठाने की कोशिश करते हैं।
5. धार्मिक संगठनों का उपयोग
कुछ कट्टरपंथी हिन्दू और मुस्लिम संगठन भी इस नफरत को बढ़ावा देते हैं। ये संगठन अक्सर राजनीतिक पार्टियों के साथ जुड़े होते हैं और उनके लिए ज़मीन तैयार करते हैं। धार्मिक जुलूसों, सभाओं और प्रचार अभियानों में भड़काऊ भाषण दिए जाते हैं, जिससे तनाव और हिंसा को बढ़ावा मिलता है।
6. असली मुद्दों से ध्यान भटकाना
बेरोजगारी, महंगाई, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी समस्याओं पर चर्चा न हो, इसके लिए हिन्दू-मुस्लिम नफरत को उभारा जाता है। जब भी सरकार पर सवाल उठने लगते हैं, कोई नया सांप्रदायिक मुद्दा खड़ा कर दिया जाता है ताकि जनता असली मुद्दों को भूल जाए और धर्म के नाम पर बंट जाए।
समाज पर प्रभाव
- सांप्रदायिक हिंसा: हिन्दू-मुस्लिम नफरत की वजह से दंगे भड़कते हैं, जिनमें हजारों निर्दोष लोग मारे जाते हैं।
- सामाजिक विभाजन: नफरत की राजनीति के कारण समाज में अविश्वास और दूरी बढ़ती है।
- आर्थिक नुकसान: दंगों और तनाव के कारण व्यापार, उद्योग और निवेश पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- लोकतंत्र पर खतरा: जब धर्म को राजनीति का हथियार बनाया जाता है, तो लोकतांत्रिक मूल्यों का ह्रास होता है और नागरिक स्वतंत्रता पर खतरा मंडराने लगता है।
समाधान: इस नफरत को कैसे रोका जाए?
1. जागरूकता और शिक्षा
जनता को यह समझने की जरूरत है कि धर्म के नाम पर लड़ाई किसी आम नागरिक के लिए नहीं, बल्कि राजनीति के लिए फायदेमंद है। स्कूलों और कॉलेजों में धार्मिक सौहार्द पर ज़ोर देना चाहिए।
2. फेक न्यूज़ की पहचान
सोशल मीडिया पर फैलने वाली अफवाहों से सावधान रहना जरूरी है। किसी भी खबर को शेयर करने से पहले उसकी सच्चाई जांचनी चाहिए।
3. धार्मिक सौहार्द को बढ़ावा
सांप्रदायिक एकता को बढ़ावा देने के लिए हिन्दू और मुस्लिम समुदाय को साथ आकर त्योहार मनाने, सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करने और संवाद स्थापित करने की जरूरत है।
4. राजनीति में जवाबदेही
राजनीतिक दलों को धार्मिक ध्रुवीकरण से दूर रखने के लिए जनता को जवाबदेही तय करनी होगी। नफरत फैलाने वाले नेताओं को चुनाव में हराकर यह संदेश दिया जा सकता है कि देश में सांप्रदायिकता की राजनीति नहीं चलेगी।
निष्कर्ष
हिन्दू-मुस्लिम नफरत का सबसे बड़ा कारण राजनीति है, जिसका इस्तेमाल जनता को बांटने और सत्ता में बने रहने के लिए किया जाता है। लेकिन अगर समाज जागरूक हो जाए और धर्म के नाम पर लड़ने से इनकार कर दे, तो यह खेल खत्म हो सकता है। असली मुद्दों पर ध्यान देना और एकता बनाए रखना ही इसका सबसे बड़ा समाधान है।
अब यह जनता पर निर्भर है कि वह नफरत की राजनीति का शिकार बनती है या एकजुट होकर देश को आगे बढ़ाने का काम करती है।
