अब्दुल सलाम कादरी-एडिटर
कटघोरा/पसान।
छत्तीसगढ़ का कटघोरा वनमंडल इन दिनों चर्चा में है — वजह? जंगल की वह जमीन, जो राजस्व रिकार्ड में वन विभाग के नाम दर्ज है, अब भू-माफिया के कब्जे में जा चुकी है। सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि जिस ज़मीन पर खुद DFO नॉर्थ डिवीजन बिलासपुर का नाम दर्ज है, वहां अब माफिया दुकानें और मकान खड़ी कर रहे हैं — और वन विभाग आंखें मूंदकर बैठा है।
🧾 सरकारी रिकार्ड में DFO के नाम, ज़मीन पर माफिया का नामो-निशान
खसरा नंबर 181/2, रकबा 0.2020 हेक्टेयर ज़मीन।
स्थान — पसान बस स्टैंड के पास, वन विभाग का पुराना आवासीय परिसर।
रिकॉर्ड में यह ज़मीन आज भी DFO North Division Bilaspur के नाम दर्ज है। यानी स्पष्ट रूप से यह वन विभाग की संपत्ति है।
लेकिन ज़मीनी हकीकत?
वहां अब भू-माफिया ने कब्ज़ा जमा लिया है, पुराना भवन तोड़ दिया गया है, और अब दुकान-मकान के निर्माण का काम धड़ल्ले से चल रहा है।
🏗️ बाउंड्री वॉल के अंदर माफिया राज!
कानून की धज्जियां उड़ाकर माफिया सरकारी बाउंड्री वॉल के भीतर दाखिल हुए। पुराना वन विभागीय भवन गिरा दिया गया। अब उस जगह पर दुकानें बन रही हैं, मानो वह ज़मीन उनकी पुश्तैनी हो।
क्या सरकार को ये नजर नहीं आ रहा?
या फिर ये सब कुछ जानबूझकर नज़रअंदाज़ किया जा रहा है?
🔇 DFO की चुप्पी, रेंजर की मिलीभगत — किससे उम्मीद करें?
वन विभाग के सबसे बड़े अधिकारी DFO — जिनके नाम पर ज़मीन दर्ज है — वे इस पूरे मामले पर चुप हैं।
रेंजर पर मिलीभगत के आरोप लग रहे हैं।
और पूरा सिस्टम इस कदर चुप है, मानो कुछ हुआ ही न हो।
क्या यह सिर्फ लापरवाही है?
या फिर इस कब्जे की पटकथा अंदर ही अंदर विभागीय अफसरों ने ही लिखी?
📜 कानून गया कहां? 1927 का वन अधिनियम सिर्फ कागज़ पर?
वन अधिनियम 1927 की धारा 26(1) साफ कहती है कि कोई भी व्यक्ति वन भूमि पर अतिक्रमण नहीं कर सकता — और भवन निर्माण तो बिल्कुल ही नहीं।
लेकिन यहां तो उल्टा मंजर है —
न कानून की परवाह, न शासन-प्रशासन की मौजूदगी।
सवाल है —
क्या वन कानून सिर्फ आम जनता के लिए है?
माफिया और अफसरों के लिए नहीं?
🚨 यह सिर्फ ज़मीन पर नहीं, व्यवस्था की आत्मा पर हमला है!
यह मामला सिर्फ एक प्लॉट पर कब्ज़े का नहीं है, बल्कि पूरे विभाग की साख पर एक बड़ा और संगीन हमला है।
अगर विभाग खुद अपनी ज़मीन नहीं बचा पा रहा — या नहीं बचाना चाहता — तो आम लोगों से क्या उम्मीद की जाए?
✊ अब सवाल सरकार से है:
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क्या सरकार इस माफिया कब्जे को वैधता देगी?
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क्या चुप DFO और संदिग्ध रेंजर पर कोई कार्रवाई होगी?
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या फिर यह भी एक और “फाइल बंद” मामला बनकर रह जाएगा?
अब जनता पूछ रही है —
कहां है मुख्यमंत्री का निर्देश, कहां है अफसरों की जवाबदेही?
📢 हमारा सवाल सरकार और वन मंत्री से:
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क्या माफिया के डर से वन विभाग की ज़मीनें छोड़ दी जाएंगी?
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क्या DFO की चुप्पी को सहमति समझा जाए?
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क्या अब हर जिले में भू-माफिया ऐसे ही विभागीय संपत्तियां हड़पते रहेंगे?
🔚 अब वक्त है कि सरकार जागे और माफियाओं को सीधी भाषा में जवाब दे।
❗ कब्जा खत्म हो — जिम्मेदारों पर हो सख्त कार्रवाई।
❗ वनभूमि की रक्षा हो — अफसरों की जवाबदेही तय हो।
