July 22, 2025 11:27 pm

बिहार: मतदाता सूची में संशोधन को लेकर 71% दलित मतदाताओं को मताधिकार खोने का डर

नई दिल्ली: बिहार में विधानसभा चुनावों से पहले जारी एक नए सर्वेक्षण में खुलासा हुआ है कि राज्य के 71% से अधिक दलित मतदाताओं को विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) प्रक्रिया के चलते अपना वोट छिन जाने का डर सता रहा है.

हालांकि, मताधिकार छिनने के इस डर के बावजूद 51.22% दलित मतदाताओं ने चुनाव आयोग पर भरोसा जताया है, जबकि 27.42% को आयोग पर भरोसा नहीं है.

यह सर्वेक्षण 10 जून से 4 जुलाई के बीच देश की प्रमुख दलित संस्थाओं का संगठन- नेशनल कंफेडरेशन ऑफ दलित एंड आदिवासी संगठन (एनएसीडीएओआर) द्वारा कराया गया.

ज्ञात हो कि साल 2023 की बिहार जातिगत सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, राज्य की कुल आबादी में अनुसूचित जातियों की हिस्सेदारी लगभग 19% है.

सर्वे में बिहार के अनुसूचित जाति (एससी) समुदाय के कुल 18,581 लोगों की राय ली गई. एसईआर के कारण वोट खोने के डर से जुड़े सवाल 8,500 लोगों से पूछे गए.

परिणामों के अनुसार, इन 8,500 में से 5,983 (71.55%) लोगों ने कहा कि उन्हें वोट खोने का डर है, 1,959 (23.43%) ने कहा कि उन्हें ऐसा कोई डर नहीं है और 419 (5.01%) ने इस पर कोई राय नहीं दी.

राज्य के 71% से अधिक दलित मतदाता को विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) प्रक्रिया के चलते अपना वोट छिन जाने का डर सता रहा है.

सर्वे में यह भी सामने आया कि 15,403 (82.89%) दलित मतदाता चाहते हैं कि बिहार में पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों के आरक्षण की सीमा बढ़ाई जाए. वहीं 9.76% ने इसे अनावश्यक बताया और 7.34% ने इस पर कोई राय नहीं दी.

लोकसभा चुनाव 2024 से पहले बढ़ते विपक्षी दबाव के बीच केंद्र सरकार ने अप्रैल में घोषणा की थी कि आगामी जनगणना में जातिगत आंकड़े भी शामिल किए जाएंगे. केंद्र सरकार ने बताया है कि यह जाति-आधारित जनगणना 1 अक्टूबर 2026 से दो चरणों में शुरू होगी.

जब सर्वे के दौरान यह पूछा गया कि जातिगत जनगणना का श्रेय किसे दिया जाना चाहिए, तो 33.15% ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम लिया, 30.81% ने लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी को और 27.57% ने पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को इसका श्रेय दिया.

सर्वेक्षण में यह भी सामने आया कि आगामी चुनावों में दलित मतदाताओं के लिए बेरोजगारी सबसे अहम मुद्दा है. 58.85% ने बेरोजगारी को सबसे बड़ा समस्या बताया, जबकि 14.68% ने स्वास्थ्य और शिक्षा, 11.21% ने भ्रष्टाचार, 9.45% ने कानून व्यवस्था और 5.81% ने पलायन को मुख्य मुद्दा माना.

राष्ट्रीय स्तर पर नेता के रूप में 47.51% लोगों ने नरेंद्र मोदी को प्राथमिकता दी, जबकि 40.30% ने राहुल गांधी को पसंद किया. राज्य स्तर पर तेजस्वी यादव सबसे लोकप्रिय नेता पाए गए, 28.14% मतदाताओं ने उन्हें पसंद किया, 25.88% ने लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता व केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान को चुना और 22.8% ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को समर्थन दिया.

राज्य स्तर पर दलितों के बीच तेजस्वी यादव सबसे लोकप्रिय नेता पाए गए, 28.14% मतदाताओं ने उन्हें पसंद किया है.

जब यह पूछा गया कि नीतीश कुमार सरकार ने राज्य में कैसा प्रदर्शन किया है, तो 45.46% ने ‘अच्छा’ और 48.44% ने ‘खराब’ कहा. हालांकि 6.1% ने कोई राय नहीं दी.

एनएसीडीएओआर के अध्यक्ष अशोक भारती ने द वायर से बातचीत में कहा, ‘यह दलितों का पहला सर्वे है, जिसे दलितों ने ही किया है.’

यह सर्वे द कनवर्जेंट मीडिया के साथ मिलकर किया गया है. भारती ने बताया कि सर्वे की योजना बनाते समय यह पाया गया कि दूसरे सर्वे अक्सर दलितों तक नहीं पहुंचते या फिर वे सच्चाई बताने से डरते हैं.

भारती ने कहा, ‘यह एक अनोखा सर्वे है, जिसमें दलितों ने ही दलितों से बात की है. हमने दलित कार्यकर्ताओं को पहचानकर उन्हें प्रशिक्षण दिया ताकि वे समुदाय की सच्ची राय सामने ला सकें. यही कारण है कि यह एक प्रामाणिक सर्वे है.’

Khabar 30 Din
Author: Khabar 30 Din

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