July 22, 2025 11:22 pm

गोपनीयता की आड़ में वन विभाग में घोटाले! आरटीआई एक्ट के दुरुपयोग से बचाई जा रही जानकारी, हाईकोर्ट जाएंगे एक्टिविस्ट

रायपुर/विशेष रिपोर्ट/अब्दुल सलाम क़ादरी।

छत्तीसगढ़ के वन विभाग में सुनियोजित भ्रष्टाचार की एक गंभीर परत सामने आ रही है, जहां गोपनीयता और तृतीय पक्ष की आड़ में घोटालों को छुपाया जा रहा है। आरोप है कि राज्य के हर वन मंडल में मजदूरी भुगतान के नाम पर चहेते लोगों के खातों में पैसा डाला जाता है और बाद में यह रकम उनसे वापस ले ली जाती है। सूचना का अधिकार (RTI) के तहत जब इस पर जानकारी मांगी जाती है, तो जन सूचना अधिकारी RTI की धारा 8(1)(j) और धारा 11 का दुरुपयोग कर जवाब देने से बच रहे हैं।

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि राज्य सूचना आयोग, जो खुद RTI अधिनियम को लागू कराने और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए बना है, वही अब अपीलार्थियों की शिकायतें सुनने की बजाय जन सूचना अधिकारियों के गलत फैसलों को संरक्षण दे रहा है। आयोग के आयुक्तों पर यह गंभीर आरोप है कि वे बिना सुनवाई के मनमाने ढंग से निर्णय सुना रहे हैं और आवेदकों को सूचना से वंचित रखा जा रहा है।

क्या है घोटाले का तरीका?

जानकारी के अनुसार वन विभाग में मजदूरी भुगतान के नाम पर कुछ चहेते व्यक्तियों के बैंक खातों में सरकारी राशि डाली जाती है। ये व्यक्ति वास्तव में कोई काम नहीं करते, केवल नाम मात्र के लिए मजदूर बताए जाते हैं। राशि उनके खातों में ट्रांसफर होने के बाद उससे नकद वापस ले ली जाती है। RTI कार्यकर्ताओं ने जब इस बारे में जानकारी मांगी कि सरकारी भुगतान किन खातों में गया, तो जन सूचना अधिकारियों ने जवाब देने से इनकार कर दिया।

उनका तर्क है कि बैंक खाता और भुगतान की जानकारी ‘निजी सूचना’ है, जो RTI की धारा 8(1)(j) के तहत साझा नहीं की जा सकती। जबकि यह स्पष्ट है कि जब बात सार्वजनिक धन की हो, तो उसकी जानकारी भी सार्वजनिक हित में दी जानी चाहिए।

सूचना आयोग भी कर रहा आंख मूंदकर समर्थन

इस पूरे मामले में राज्य सूचना आयोग की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। आयोग द्वारा बार-बार ऐसी अपीलें खारिज की जा रही हैं, जिनमें विभागों द्वारा धारा 8 और 11 का अंधाधुंध प्रयोग किया गया है। आयोग के रवैये से RTI कार्यकर्ता नाराज हैं और इसे “सूचना का अधिकार कानून का खुला उल्लंघन” मानते हैं।

हाईकोर्ट जाने की तैयारी

RTI कार्यकर्ताओं के एक पैनल ने इस पूरे मामले को हाईकोर्ट तक ले जाने का फैसला लिया है। इसके लिए वे ऐसे सभी मामलों का संकलन कर रहे हैं, जिनमें प्रथम अपील और राज्य सूचना आयोग द्वारा गलत तर्कों के आधार पर सूचना देने से मना किया गया। इन कार्यकर्ताओं का कहना है कि यदि सूचना आयोग खुद पारदर्शिता के रास्ते में बाधा बनेगा, तो लोकतांत्रिक व्यवस्था खतरे में पड़ जाएगी।

RTI का मतलब ही खत्म हो जाएगा

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर सूचना आयोग और जन सूचना अधिकारी ऐसे ही धारा 8 और 11 का गलत उपयोग करते रहे, तो RTI का मकसद ही समाप्त हो जाएगा। सार्वजनिक धन के उपयोग की जानकारी छुपाना, भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने जैसा है।

छत्तीसगढ़ के वन विभाग में चल रहे इस प्रकार के गंभीर अनियमितताओं और राज्य सूचना आयोग की निष्क्रियता ने RTI एक्ट की आत्मा पर ही चोट की है। अब देखना यह होगा कि हाईकोर्ट इस मामले में क्या रुख अपनाता है और क्या पीड़ितों को न्याय मिल पाएगा?

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